सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों और जमीन मालिकों के बीच मिलीभगत के मामलों को लेकर कठोर कदम उठाते हुए एक विशेष जांच दल (SIT) के गठन का आदेश दिया है। साथ ही, अदालत ने यह सुनिश्चित किया है कि नोएडा में सभी नई परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय और ग्रीन बेंच की अनुमतियाँ अनिवार्य होंगी। इस फैसले ने स्थानीय निवासियों और सरकारी अधिकारियों के बीच हलचल मचा दी है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जायमाल्या बागची की पीठ ने सोमवार को यह फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि पहले से गठित SIT की रिपोर्ट के आधार पर नई SIT में तीन IPS अधिकारियों के साथ-साथ फॉरेंसिक ऑडिट और आर्थिक अपराध शाखा के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। यह निर्णय पिछली सुनवाई के दौरान प्रस्तुत तथ्यों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिसमें जमीन मालिकों को निर्धारित दर से अधिक मुआवजा दिए जाने के आरोप शामिल हैं।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देशित किया कि वह पहले से गठित SIT की रिपोर्ट को राज्य मंत्रिपरिषद के समक्ष पेश करें, ताकि नोएडा में आवश्यक बदलाव को तुरंत लागू किया जा सके। अदालत ने नोएडा अथॉरिटी में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए मुख्य सतर्कता अधिकारी की तत्काल नियुक्ति भी की आवश्यकता जताई है। यह अधिकारी आईपीएस या नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के पद से हो सकता है।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में नागरिकों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए एक नागरिक सलाहकार बोर्ड के गठन का भी सुझाव दिया है। इस बोर्ड में आम जनता की राय और शिकायतों को सुना जा सकेगा, जिससे प्रशासनिक गतिविधियों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
अदालत के आदेश के बाद, नोएडा अथॉरिटी में खलबली मच गई है। अधिकारियों के पीछे कार्यवाही की प्रक्रिया को गति प्रदान करने का दबाव बढ़ गया है। सूत्रों के अनुसार, इस निर्णय का प्रभाव नोएडा में विकासशील परियोजनाओं और भूमि अधिग्रहण के मामलों पर पड़ेगा, जिससे स्थानीय निवासियों को भी लाभ हो सकता है।
नोएडा, जो कि दिल्ली के निकट एक प्रमुख औद्योगिक हब के रूप में विकसित हुआ है, पिछले कुछ समय से भूमि अधिग्रहण और मुआवजे से संबंधित विवादों का सामना कर रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश स्थानीय निवासियों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में माना जा रहा है, जो लंबे समय से उचित मुआवजे और संवैधानिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं।