ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में फूट ओवर ब्रिज को लेकर क्या प्राधिकरण और ठेकेदार अब बस पैसा कमाने पर लग गए है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को जनता की सुविधा के लिए एक बेहतर विकल्प माना गया था किंतु ग्रेटर नोएडा में इन फुटओवर ब्रिज के हालात देख कर तो ऐसा नही लग रहा है कि पीपीपी मॉडल से जनता को कोई फायदा हो रहा है।
दरअसल ग्रेटर नोएडा में सीईओ रवि एन जी की पहल पर प्राधिकरण ने 2 वर्ष पूर्व 8 फुट ओवर ब्रिज के लिए पीपीपी मॉडल पर निर्माण और 20 वर्ष तक मेंटेनेंस का कार्य कुछ कंपनियों को दिया था। कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार निर्माण कार्य पूरे होने के बाद प्राधिकरण से ओक मिलने के बाद ही इस पर विज्ञापन लगाकर कमाई की जा सकती थी और उसी के हिसाब से ठेकेदार को प्राधिकरण को वार्षिक शुल्क देना था।

इनमें ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बने फुट ओवर ब्रिज तो समय से बनकर तैयार हो गए थे । किंतु ग्रेटर नोएडा में बनने वाले अन्य पांच फुट ओवर ब्रिज पर ठेकेदारों द्वारा लंबे समय तक निर्माण नहीं हो सके। जनता की लंबी शिकायतों और दबाव के बाद किसी तरीके से कलेक्ट्रेट और कैलाश हॉस्पिटल के आगे फुट ओवर ब्रिज बनने शुरू तो हुए किंतु अब लोगों ने शिकायत करी है कि लंबे समय से बन रहे ब्रिज भले ही पूरे तो ना हुए हो पर कलेक्ट्रेट के सामने बन रहे फूट ओवर ब्रिज पर काम पूरा किए बिना ही ठेकेदार ने उस पर विज्ञापन लगाकर कमाई शुरू कर दी है ।
लोगों का कहना है कि ग्रेटर नोएडा की जनता ने प्राधिकरण से फुट ओवर ब्रिज की मांग ठेकेदारों को सिर्फ विज्ञापन लगाकर कमाई करने के लिए नहीं की गई थी । उसकी जरूरत सड़क पर करने वाले आम लोगों की सुविधा के लिए थी । किंतु ठेकेदारों ने बिना कार्य पूर्ण किए ही वहां पर विज्ञापन लगाकर अपनी कमाई शुरू कर दी जो न सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन है बल्कि नैतिक तोर पर भी गलत है । ऐसे में प्राधिकरण को लंबे समय से पूर्ण नहीं हुए इन ब्रिज के लिए या तो ठेकेदारों को ब्लैक लिस्ट या पेनल्टी लगानी चाहिए या बिना तैयार हुए ब्रिज से विज्ञापन से कमाई कर रहे इन ठेकेदारों से शर्तों के उल्लंघन और जनता को हो रही असुविधा के लिए फटकार लगानी चाहिए।

वहीं प्राधिकरण सूत्रों के अनुसार इस पूरे प्रकरण पर ठेकेदारों को सूचित तो किया गया किंतु उसके बावजूद भी ठेकेदारों ने ढीटता दिखाते हुए विज्ञापन नहीं हटाए है ।



