बुधवार को भारत ने अमेरिका के द्वारा लगाए गए 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा के बाद स्पष्ट संकेत दिया है कि वह इस मुद्दे पर दीर्घकालिक संघर्ष के लिए तैयार है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस टैरिफ को अनुचित, अकारण और तर्कहीन बताते हुए एक बयान जारी किया, जो स्थानीय निवासियों के लिए महत्वपूर्ण घटनाक्रम को दर्शाता है।
इस टैरिफ वृद्धि के संदर्भ में सरकार के सूत्रों ने कहा है कि भारत इस संघर्ष में वैसी ही दीर्घकालिक रणनीति अपनाने के लिए तैयार है जैसी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ बनाई गई थी। यह देखा जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन ने कार्यकारी आदेश को तत्काल लागू नहीं करने का निर्णय लिया है, जो कि बातचीत के द्वार खुला रखने और विभिन्न मुद्दों पर भारत पर दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है।
हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिरता
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था आज अमेरिका और अन्य विकसित देशों के मुकाबले स्थिर है। वर्तमान में, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर से अधिक है और जीडीपी में व्यापार का हिस्सा महज 45 फीसदी है, जो कि यूरोपीय संघ के 92 फीसदी और अन्य विकसित देशों की तुलना में आधा है। ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका भी इस स्थिति को समझता है।
जवाबी कार्रवाई नहीं, लेकिन पलटवार जारी रहेगा
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अमेरिका की अतिरिक्त टैरिफ नीति के खिलाफ न तो कोई जवाबी टैरिफ लगाएगा और न ही ट्रंप प्रशासन के दबाव में रूस से तेल आयात बंद करने के लिए तैयार है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रंप की घोषणा पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अपनी स्थिति को स्पष्ट किया है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि अमेरिका की इच्छा भारत के डेयरी और कृषि क्षेत्रों में सीधा प्रवेश करने की है, जो कि किसी भी सरकार के लिए स्वीकार्य नहीं है। ये क्षेत्र भारत में 40 फीसदी रोजगार का सृजन करते हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में अमेरिकी प्रवेश से बेरोजगारी की स्थिति पैदा हो सकती है, जिसे कोई भी सरकार गंभीरता से नहीं लेगी।
ट्रंप की स्थिति पर नजर
इस टैरिफ संघर्ष में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी घरेलू मोर्चे पर दबाव का सामना कर रहे हैं। उनके द्वारा की गई घोषणाओं के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं, और कई अमेरिकी हस्तियों ने ट्रंप को सलाह दी है कि वे भारतीय रिश्तों को खराब न करें।
भारत के मुक्त व्यापार समझौते
भारत ने कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महीने जापान और चीन की यात्रा इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकती है। अगर चुनौतियों में इजाफा होता है, तो भारत नए विकल्पों की तलाश करने में पीछे नहीं हटेगा।