ये प्रचार का युग का है, पहले दौर में सरकारें काम करती है मगर आज काम से अधिक काम के प्रचार को करती है । वर्तमान मोदी सरकार इसमें पीछे नहीं है। इस खेल का आरंभ ईमानदारी का कम्बल ओढ़ कर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार से हुआ पर अब भाजपा इसमें तेजी से प्रथम स्थान पर दिखाई दे रही है।
याद करिए सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई 2023 को दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को रीजनल रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के लिए 415 करोड रुपए देने का निर्देश दिया था दरअसल दिल्ली सरकार के बीते 3 वर्षों का विज्ञापन खर्च 1100 करोड रुपए था किंतु जन सुविधाओं के लिए दिल्ली सरकार पैसों के न होने का रोना रो रही थी ।
ताजा मामला जीएसटी सुधार के नाम पर जीएसटी के चार स्लैब में से दो स्लैब्स को हटाने का है । केंद्र की मोदी सरकार इस मामले को लेकर बेहद उत्साहित है । अमेरिकी प्रतिबंधों के संदर्भ में सरकार इसको बाजार में तेजी लाने का मास्टर स्ट्रोक मान रही है । यद्यपि सरकार के विरोधी इसको लेकर कई मामलों में सरकार की आलोचना कर रहे हैं कई छोटे उद्योगपति भी दबी जुबान में एक कह रहे हैं कि सिर्फ खाने पीने की वस्तुओं को छोड़ दें तो अधिकतर उद्योगों को जीएसटी के सुधरो के नाम पर बदले गए स्लैब से कोई फायदा नहीं हो रहा है ऐसे में सरकार अब इसको बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक प्रचारित करने में लग गई है।
इसी क्रम में प्रदेश भर में प्रदेश सरकारी और लम्बे समय से देश और प्रदेश में अपना अध्यक्ष तक ना चुन पाने वाला भाजपा का संगठन लगातार ऐसे आयोजन कर रहा है जिसमें जीएसटी के सुधारों के महत्व लोगों को समझाइए जा सके या फिर यूँ कहे कि सरकारी पैसे से होने वाले आक्रामक प्रचार के जरिये इस पर उठने वाले प्रश्नों की धार को कुंद किया जा सके किंतु इस पर होने वाला खर्च किसके अकाउंट में जा रहा है यह प्रश्न विचारणीय है।
उत्तर प्रदेश के बाकी जिलो की तरह बुधवार को गौतम बुध नगर के वाईएमसीए यानी यंग मैन क्रिश्चियन एसोसिएशन स्थित रेस्तरां में बताया जा रहा है इस कार्यक्रम भाजपा के जिला अध्यक्ष और अन्य कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भाजपा के सांसद विधायक और जिला प्रभारी कुबेर बृजेश सिंह की उपस्थित रहने की जानकारी आ रही है ।
ऐसे में प्रश्न फिर से वही है कि होटल में होने वाले इन कार्यक्रमों और प्रेस कॉन्फ्रेंस का खर्चा कौन उठा रहा है क्या इसे सरकारों की तरफ से किया जा रहा है या फिर भाजपा संगठन इसको कर रहा है या फिर भाजपा के नेताओं को इसकी जिम्मेदारी दी गई है और यदि तीनों में से कोई भी कर रहा है तो क्या इसे संसाधनों का दुरुपयोग नहीं कहा जाएगा। आखिर ऐसे अघोषित खर्चो को बाद में कैसे और किस्से वसूला जाएगा ?
क्या केंद्र की भाजपा सरकार इस देश की जनता को इतना नासमझ समझ रही है कि उसको जीएसटी के सुधार प्रधानमंत्री के टीवी चैनलों पर लाइव आ चुके भाषण के बाद भी नहीं समझ आ रहा है। या फिर भाजपा भी अब अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की तरह कम से ज्यादा प्रचार के मॉडल पर आ गई है और अगर ऐसा है तो यह देश के लिए न सिर्फ दुखद है बल्कि देश के पैसे की बर्बादी भी है ।