गौतम बुद्ध नगर की राजनीति में हलचल तेज हो गई है, बुधवार को लखनऊ में समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनावों की तैयारी को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई। बैठक में जिले की तीन विधानसभा सीटों—दादरी, नोएडा, और जेवर—पर संभावित प्रत्याशियों के नामों पर गहन चर्चा की गई। बैठक में हुए घटनाक्रम और बदलती प्रतिक्रियाओ के चलते सपा के भीतर के अंतर्विरोधों ने यह दिखाया है कि पार्टी में सब कुछ सही नहीं है। क्या सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव वर्तमान स्थानीय नेतृत्व पर विश्वास नहीं कर पा रहे है या फिर नेताओ की आपसी खींचतान का परिणाम कुछ और होने जा रहा है ?
जानकारी के अनुसार बैठक में अखिलेश यादव ने दादरी विधानसभा से राजकुमार भाटी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने पर पूर्ण विराम लगा दिया। इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ कि सपा नेतृत्व एक नए चेहरे को तरजीह देने के लिए तैयार है, और दादरी सीट के लिए प्रताप चौहान, फकीर चंद नगर, और वर्तमान गौतम बुद्ध नगर जिलाध्यक्ष सुधीर भाटी ने अपनी दावेदारी पेश की। खासकर गौतम बुद्ध नगर जिलाध्यक्ष सुधीर भाटी ने 9,000 वोट बनाए जाने का उल्लेख किया, जिससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी बदलाव का मन बना चुकी है और गतिशील नेताओं पर दांव लगाने की योजना बना रही है।
दिलचस्प है कि जहाँ अखिलेश यादव ने राजकुमार भाटी के इस बार चुनाव लड़ने पर स्वयं विराम लगाया वहीं सोशल मीडिया पर इसके उलट दिनेश पटेल नामक यूजर ने लिखा कि राजकुमार भाटी जी ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जी से स्पष्ट कह दिए कि मैं 2027 का चुनाव नहीं लडूंगा मुझे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुज्जर व पीडीए समाज के लोगों को संगठित करके उनके अंदर चेतना पैदा करके समाजवादी पार्टी की तरह ले आना है और सपा में उनकी ठीक ठाक भागीदारी दिलवाना है, लेकिन इस पर राजकुमार भाटी का यह कहना कि “उस्तरे जिन पर चले हैं मान्यवर वे हमारे ही गले हैं” यह बताता है कि दादरी विधान सभा सीट पर राजनीतिक बागडोर को लेकर तनाव बढ़ रहा है और अखिलेश यादव के फैसले से राजकुमार भाटी खुश तो बिलकुल नहीं है।
उस्तरे जिन पर चले हैं मान्यवर
वे हमारे ही गले हैं मान्यवर https://t.co/6CTPcVqyEn
— Rajkumar Bhati (@rajkumarbhatisp) September 17, 2025
दावा है कि बैठक में नोएडा से तीन बार चुनाव हार चुके सुनील चौधरी और वर्तमान अध्यक्ष आश्रय गुप्ता के साथ अखिलेश के संवाद में भी स्पष्टता थी। सुनील को टिकट देने के मुद्दे पर अखिलेश ने स्पस्ट कहा कि कितनी बात टिकट ले चुके हो वहीं अखिलेश ने यह कह कर सबको चौका दिया कि नोएडा महानगर अध्यक्ष आश्रय गुप्ता ने बूथ एजेंट बनाने के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। उनके अध्यक्ष रहते नोएडा में सपा 2 लाख १4 वोट से हारे । आश्रय द्वारा दिए गए आंकड़े भी विवाद का विषय बने, जिसमें उन्होंने नोएडा की जनसंख्या की स्थिति का आकलन किया। किन्तु सपा के भीतर से ही उनकी जानकारी को गलत ठहराया गया। यह स्थिति दर्शाती है कि पार्टी में स्थानीय नेताओं के साथ नेतृत्व में एकीकृत संवाद की कमी है।
चर्चा है कि नोएडा महानगर अध्यक्षआश्रय गुप्ता ने नोएडा विधान सभा को लेकर दावा किया कि नोएडा में 150000 वैश्य, 140000 ब्राह्मण ,50000 यादव 40000 गुर्जर और 75000 मुस्लिम वोटर है I सपा के ही अन्य मौजद लोगो ने महानगर अध्यक्ष द्वारा गलत जानकरी दिए जाने की बात कही लोगो ने कहा कि नोएडा शहरी सीट है इसमें शहरी जनसंख्या पंजाबी, कायस्थ, राजपूत, उत्तराखंडी, पूर्वांचली और दलित वोटर्स को नजरअंदाज किया है जिसके बाद अखिलेश ने आश्रय को जानकारी ना होने की बात कह कर कहा कि नोएडा के बारे में कुछ और सोचते हैं
नोएडा से एक प्रश्न ये भी उठा कि 150000 वैश्य मतदाताओ की बात कर टिकट लेने के आकांक्षी विपिन अग्रवाल, गौरव सिंघल, मनोज गोयल और गौरव छाछरा जैसे वैश्य नेता मीटिंग में पहुंचे ही नहीं थे वहीं एक चर्चा ये भी थी कि उनको इस बैठक की जानकारी तक नहीं दी गयी ऐसे में नेताओं का टिकट को लेकर हुई मीटिंग तक ही नहीं जा पाना बताता है कि पार्टी में इनकी स्थिति क्या है ?
बैठक के दौरान कुछ स्थानीय नेताओं ने पार्टी संगठन की कमजोर स्थिति पर भी चर्चा की और सुझाव दिया कि सपा को कुछ सीटों जैसे नोएडा, जेवर, गाज़ियाबाद महानगर, और साहिबाबाद पर कांग्रेस या आम आदमी पार्टी को जगह देने पर विचार करना चाहिए।
ऐसे में लखनऊ में हुई इस बैठक के बाद क्या वास्तव में सपा के लिए 2027 के चुनाव की तैयारी में सपा की रणनीति का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है? यदि सपा अपनी ताकतवर पहचान को बनाए रखना चाहती है, तो उसे स्थानीय नेताओं और उनकी वास्तविक स्थिति पर ध्यान देना होगा। यदि यह सब हुआ, तो सपा आगामी चुनावों में इन सीटो पर विजय पा सकती है, लेकिन यदि धारणाएँ नहीं बदलीं तो परिणाम स्पष्ट रूप से चौंकाने वाले हो सकते हैं। क्या पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव जिले में मठाधीश बने स्थानीय चेहरो को बदलने का साहस दिखाएंगे या फिर पार्टी एक बार फिर पुराने नेतृत्व पर भरोसा करके चुनावी मैदान में उतरेगी?