आशु भटनागर। लोकतंत्र में आम धारणा है कि स्वस्थ लोकतंत्र मजबूत सरकार के साथ-साथ मजबूत विपक्ष के भरोसे पल्लवित होता है । उत्तर प्रदेश की जनता ने 2007 से ही मजबूत सरकारों के लिए वोट किया इसके साथ ही विपक्ष को भी मजबूत बनाए रखने में पूरा योगदान दिया है। इसी का परिणाम हुआ कि 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत की बसपा सरकार में मुख्यमंत्री बनी पर 2012 में उनसे नाराज जनता ने समाजवादी पार्टी के युवा नरेश अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की सत्ता सौंप दी I बाद में उससे भी जनता का सरोकार पूर्ण नहीं हुआ तो 2017 में भाजपा से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनाया।
किंतु 2017 के बाद विपक्ष बने पूर्व दलों के नेता ऐसा लगता है, अपने कर्तव्य भूलते जा रहे हैं । वर्तमान भाजपा की योगी सरकार से दो बार चुनाव हार चुके विपक्ष के सबसे बड़े मजबूत नेता अखिलेश यादव 2027 में होने वाले तीसरे महायुद्ध के लिए पीडीए (पिछड़ा दलित अगड़ा और अकलियत यानी अल्पसंख्यक या सीधे सीधे मुस्लमान) के नाम पर आम जनता को अपनी पार्टी के प्रति भरोसा जगाने की कोशिश कर रहे हैं । यह भरोसा कितना जग पाया है इस पर चर्चा करने से पहले यह आवश्यक है कि क्या अखिलेश यादव के योद्धा उनकी इस लड़ाई में उनके साथ हैं या फिर उत्तर प्रदेश की बरसों पुरानी जातीय नफरत की राजनीति अखिलेश यादव को लगातार नुकसान पहुंचा रही है।

यह प्रभाव उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में ज्यादा दिखाई दे रहा है जहां मायावती अभी भी अपने दलित वोटर के बीच मजबूत है और अखिलेश यादव उसे अपने पाले में करने के लिए भागीरत प्रयास करने में लगे हैं पर वो सफलता नहीं पा रहे है। दरअसल बीते कुछ दिनों में हुई घटनाओं पर नजर डालें तो सहारनपुर से लेकर मुरादाबाद और मेरठ से लेकर गौतम बुद्ध नगर तक ऐसे ही प्रकरण सामने आए है । जहां अखिलेश यादव ने तो लखनऊ से मुद्दों की संवेदनशीलता को देखते हुए आवाज उठाई किंतु पश्चिम में सपा की कमान संभाले हुए PDA के बड़े नेताओं ने अपने जातीय प्रेम में आंखें बंद कर लिए। ताजा प्रकरण मेरठ में भाजपा के एक नेता द्वारा पीडीए के एक हिस्सा अगड़े समाज के वैश्य समुदाय के व्यापारी के साथ किए गए प्रताड़ना गाली गलौज और नाक रगड़वाने ओर गौतम बुध नगर जिले के जेवर विधानसभा में एक दलित युवक की हत्या का है ।
दोनों ही प्रकरणों में समाजवादी पार्टी के बड़े नेता बनने की होड़ में लगे राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी वर्तमान विधायक अतुल प्रधान, गौतम बुध नगर में लोकसभा चुनाव लड़ चुके डॉक्टर महेंद्र नागर और जिला अध्यक्ष से विधानसभा चुनाव में टिकट का सपना देख रहे सुधीर भाटी जैसे नेताओं पर आंदोलन की जगह शांत बैठ जाने को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं ।

मेरठ प्रकरण में जहां एक और अखिलेश यादव भाजपा नेता की दबंगई और गुंडागर्दी पर भाजपा को घेरते नजर आए वहीं आरोपी के की जाति के सामने आने के बाद अखिलेश यादव के यह सभी धुरंधर प्रकरण पर सड़कों पर उतरने की जगह मुंह छुपाते नजर आए। पूरे प्रकरण में अतुल प्रधान के समर्थक होने का दावा करने वाले समाजवादी पार्टी के दादरी से नेता विपिन नागर ने पीड़ित के साथ खड़ा होने की जगह अपनी जाति के आरोपी के पक्ष में लंबा चौड़ा लेख लिख दिया और यह साबित करने की कोशिश करने वालों की भाजपा उनके समुदाय के खिलाफ काम कर रही है। जबकि विपक्ष के नेता के तौर पर आरोपी की जाति के आधार पर उसको बचाना गलत था । और यह प्रक्रिया विपक्ष के तमाम ऐसे ही नेताओं के बयानों से सोशल मीडिया पर भी दिखाई दी । सभी एक तरीके की बात कहते दिखाई दिए कि आरोपी अगर दोषी है तो उसकी सजा मिलनी चाहिए किंतु उसकी फसाया नहीं जाना चाहिए। जिसके चलते मेरठ जैसी महत्वपूर्ण जगह आम जन का समाजवादी पार्टी में विश्वाश कम हुआ है।

इसके साथ ही जेवर मामले पर दलित की हत्या पर शुरू में उसे सवर्ण बनाम दलित बताने के प्रयास का सच जैसे ही सामने आया, समाजवादी पार्टी के नेता घटना से मुंह चुराने लगे। पीडीए चौपाल के नाम पर पुरे पश्चिम में अलख जगा रहे जिले के प्रमुख सपा नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी और अतुल प्रधान तक इस प्रकरण में क्षेत्रीय स्तर पर बड़ा आन्दोलन बनाने की बात तो दूर, आवाज़ उठाने में नाकाम रहे। जानकारी के अनुसार दलित युवक अनिकेत की हत्या में आरोपी ओबीसी समाज के मीणा समुदाय से थे । इस पूरे मामले में हुई एफआईआर एफआईआर पढ़कर पता चलता है कि 15 अक्टूबर को जब सुमित और अनिकेत उसके जन्मदिन पर घूमने के लिए सयद पोखर गए थे तभी वहाँ आसिफ नाम का लड़का आया और उन्हें देखकर गया। इसके बाद ही युवराज, जीतू, रचीत, सुनील समेत कई लड़के आए और लाठी डंडे से दोनों को मारा गया। इस दौरान उनके साथ गाली-गलौच भी हुई। उन्हें जातिसूचक शब्द भी कहे गए। एफआईआर में युवराज, जीतू, रचीत, भरत, अंकित, पवन, सुनील को नामजद किया गया है। इनके अलावा 10-12 लोग अज्ञात पर केस दर्ज हुआ है। ऐसे में जेवर में भी दलित उत्पीडन को लेकर समाजवादी पार्टी के लिए आन्दोलन के जरिये गौतम बुद्ध नगर की तीन विधानसभाओ पर 2 दशको से अपनी हार को जीत में बदलने का जो सपना पूरा हो सकता था वो फिर से अधुरा रह गया है ।


विपक्ष के जातीय प्रेम पर कर्तव्य भूल जाने के इन उदाहरणों से ऐसा लगता है कि दशको पूर्व मुंशी प्रेमचंद की लिखी गई कहानी “पंच परमेश्वर” के अलगू चौधरी से जुम्मन की खाला का वो प्रश्न अब शायद ही किसी नेता को याद होगा कि “क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?”
क्या अखिलेश यादव के दलित, पिछड़ों और पीड़ित अगड़ों की लड़ाई लड़ रहे राजकुमार भाटी, अतुल प्रधान जैसे लोग अपनी जाति से बिगाड़ के डर में विपक्ष का कर्तव्य भूल रहे हैं, क्या इन लोगों की अंतरात्मा अलगू चौधरी की अंतरात्मा की तरह जाग पाएगी जिससे 27 के चुनाव में सरकार के सिस्टम से प्रताड़ित लोग विपक्ष में अपनी नई आशा की किरण देख सके।
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि लोकतंत्र में विपक्ष की स्वस्थ अवधारणा के बनिस्पत क्या समाजवादी पार्टी के नेता अपनी जाति विशेष की के प्रेम में विपक्ष का कर्तव्य भूलते जा रहे हैं? क्या उत्तर प्रदेश में जातीय नफरत इस स्तर पर आ गई है जहां पर पीड़ित के साथ विपक्ष तब तक खड़ा होता है या तब तक खड़ा नहीं होता है जब तक आरोपी उनके राजनीतिक उद्देश्यों के अनुरूप न हो। अगर ऐसा है तो दोनों ही प्रकरणों में मौजूद पीड़ित दलित, वैश्य या सवर्ण समाज किस आधार पर 27 में समाजवादी पार्टी के लिए वोट देने को अपना मन बनाएगा ।
मशहूर लेखक शेक्सपियर ने अपने नाटक “जूलियस सीजर” में कहा कि विपक्ष जनता के हर दुख के साथ खड़ा होता है उसके लिए आंदोलन करता है । किंतु अगर वर्तमान में उत्तर प्रदेश में की राजनीति में पीड़ितों के साथ लड़ने के लिए अखिलेश यादव के PDA के नेताओ का जातीय दुराग्रह और प्रेम बड़ा कारण बन रहा है तो अखिलेश यादव को 2027 के चुनाव में एक बार फिर से जीतने की आशा छोड़ देनी चाहिए ।



