संधिवार्ता : अवैध ठेली-पटरी लगाने वालों पर कार्यवाही के नाम पर चल रही प्राधिकरण की ही लाखो रूपए की अवैध वसूली का सच क्या ?

आशु भटनागर
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दिल्ली समेंत नोएडा ग्रेटर नोएडा जैसे शहरो में सड़कों पर अवैध ठेली-पटरी लगाने वालों की समस्या कोई नयी नहीं है, इसमें दूर गाँवों से आये लोगो द्वारा किया अतिक्रमण ही नहीं बल्कि उनके जीवन की जद्दोजहद, संघर्ष और उनके पीछे छिपे रहस्यों की कथा भी है। शहर की सुंदरता, यातायात, और सुरक्षा सब कुछ इस अवैध धंधे के कारण पीछे छूटते जा रहे थे। लेकिन क्या ये केवल एक समस्या भर है? या फिर इसके पीछे निर्धनों के जीवन यापन के साथ साथ धनवानों को और धनवान बनाने वाली एक बड़ी घृणित अर्थव्यवस्था भी फलती फूलती है जिसके कई सामाजिक आर्थिक पहलु भी हैं।

हैलो दोस्तों! मैं आशु भटनागर, एनसीआर खबर पर संधिवार्ता में आपका स्वागत करता हूँ इसमें हम बात करेंगे हर बार एक ऐसे मुद्दे की जो नोएडा ग्रेटर नोएडा की हर सड़कों पर गूंज रहा है। हम इन मुद्दों के दोनों पक्षों पर बात करंगे।

तो पहले ग्रेटर नोएडा से आये आज के समाचार पर ध्यान देते हैं!

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी मुकेश कुमार सिंह के अनुसार अर्बन सर्विसेज विभाग की तरफ से सोमवार को ग्रेटर नोएडा वेस्ट के चार मूर्ति चौक से एक मूर्ति चौक तक अवैध रूप से लग रही ठेली-पटरी, झुग्गी व अस्थायी दुकानों को हटवाया गया। करीब 12 ठेली-पटरी को जब्त कर लिया गया है। वरिष्ठ प्रबंधक सन्नी यादव के नेतृत्व में हुई इस कार्रवाई में मैनेजर शुभांगी तिवारी, सहायक मैनेजर नरेश गुप्ता सहित अर्बन सर्विसेस विभाग की पूरी टीम शामिल रही।

प्रथम द्रष्टया ये समाचार एक अच्छा समाचार है और इससे प्राधिकरण कि शहर को व्यवस्थित रखने कि मंशा प्रकट होती है और प्राधिकरण समय समय पर ऐसे अभियान चलता है किसी निर्णय पर पहुँचने के पहले दोनों का पक्ष समझना भी आवश्यक है।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का पक्ष

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का कहना है कि कि सड़कों के किनारे अवैध ठेली-पटरी लगने से यातायात बाधित होता है। प्रतिदिन लोग सोशल मीडिया से लेकर अधिकारियो से जाम की शिकायत करते हैं अर्बन सर्विसेज विभाग के अनुसार इस जाम का मुख्य कारण ऐसे ठेली-पटरी, झुग्गी व अस्थायी दुकाने होती हैं जिसके कारण इसे ध्यान में रखते हुए सीईओ एनजी रवि कुमार के निर्देश पर यह अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने सड़कों के किनारे ठेली-पटरी लगाकर यातायात को बाधित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई जारी रखने की बात कही है।

प्राधिकरण का विपक्ष यानी जनता का पक्ष

किन्तु इसका दूसरा पक्ष ये है कि क्या ये कार्यवाही बस दिखावा मात्र है क्योंकि ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में लगभग 5000 रेहड़ी पटरी वाले हैं , कहा जाता है कि इनको इस शहर में स्थानीय माफिया, प्राधिकरण के ही कथित कर्मचारियों द्वारा संरक्षण दिया जाता है और इसके बदले में लगभग 2000 मासिक वसूली तक की जाती है ऐसे में देखा जाए तो ये लगभग लाखो रूपए महीने का खेल है और इस खेल में शीर्ष अधिकारियो की नाक के नीचे सब कुछ हो रहा है। अर्बन सर्विसेज विभाग ऐसे ठेली-पटरी, झुग्गी व अस्थायी दुकाने सच में हटाता तो कैसे ये सब फिर शुरू हो जाता है।

तो फिर प्रश्न ये है कि आखिर सच क्या है ? यहीं पर बात होगी आज संधिवार्ता यानी नेगोशिएशन में

देखा जाए तो ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का कहना सही भी हैं क्योंकि लगभग 10 लाख कि आबादी वाले इस शहर में बड़े मार्किट, माल और शोपिंग कामप्लेक्स बनाये गए हैं फिर सिर्फ गरीबो के नाम पर शहर का सिस्टम और सुन्दरता बिगड़ने वाले ऐसे लोगो पर कार्यवाही क्यूँ ना हो ? सडको के किनारे बेतरकीब लगे इन ठेलो पर कई अपराधिक गतिविधियों को संरक्षण मिलता है, साथ ही ये यातायात को भी प्रभावित करते हैं I शहर में कमाई के लिए आने वाले लोग असल में ना सिर्फ सडको पर अतिक्रमण और अपराध के लिए ज़िम्मेदार हैं बल्कि यही लोग शहरो में बन रही झुग्गियो और बस्तियों में रह कर स्लैम का निर्माण करते हैं। प्रश्न ये हैं कि क्या प्राधिकरण के ही अधिकारियो द्वारा उगाही के आरोप लगा देने से इनको ठेले लगाने का लाइसेंस मिल जाता हैं ? या फिर सिस्टम और शहर कि सुन्दरता को बनाये रखने कि आड़ में हो रहे चयनात्मक (selectively) न्याय पर प्रश्न उठते हैं।

मैंने सोचा, “ये व्यक्ति, जो अपनी जीविका के लिए ठेलियां लगाते हैं, क्या वे सच में अपराधी हैं? या वे हालातों के साए में जीवन यापन कर रहे हैं?” मैंने कुछ स्थानीय ठेलीवालों से बात की। उनमें से एक, राहुल यादव, अल्फ़ा कमिर्शियल बेल्ट के सामने छोले कुलचे बेचता है, ने बताया कि कैसे उसे हर महीने प्राधिकरण के गुंडों को पैसे देने पड़ते हैं।

गौर सिटी में कार्ट लगाने वाले प्रखर जुनेजा के अनुसार “सर, हम तो बस अपने परिवार का पेट भरने के लिए ये कर रहे हैं। लेकिन हमें हमारी मेहनत का हिस्सा इन्हें दे देना पड़ता है। सैटलमेंट के नाम पर कभी 3000 तो कभी 5000 महीना माँगा जाता है । क्या कभी कोई हमारी सुनेगा?”

सोशल मीडिया पर विकास जैन नामक यूजर ने लिखा ठेला ढेली वाले पर जो कार्यवाही कर रहे है , क्या यही कार्यवाही उन सड़कों के किनारों को घेरे हुए होटल माफिया तंत्र पर भी करेंगे जो इन लोगों पर कार्यवाही आपके द्वारा करा कर आपने 50 रुपए के खाने को 150 से 200 रुपए में कस्टमर को परोसते है , साथ ही एडिशनल बीडी सिगरेट और कोल्डड्रिंक के जरिए 100 से 200 रुपए अलग से कमाते है। हमारा देश बहुत अंदर तक भ्रष्टाचार में लिप्त है। आप सबको और सरकारी तंत्र को इस पर ईमानदार कार्यवाही करनी चाहिए।

ग्रेटर नोएडा के समाज सेवी राहुल शर्मा के अनुसार शहर की सड़कों पर केवल ठेली वालों की ही गलती नहीं है। इसमें स्थानीय माफिया, प्राधिकरण के कर्मचारी और कई बार तो एक्टिविस्ट, समाजसेवी और पुलिस के कर्मचारी भी इसके पीछे के खेल में शामिल जोते है।

ऐसे आरोप लगाये जाते हैं कि ठेली वालों से मासिक वसूली की जाती है, जो कि इस अवैध धंधे को सुरक्षित बना देती है। यानि, यह एक घृणित खेल है जिसमें हर किसी का हाथ है और लोगो के ऐसे आरोप असल में रेहड़ी पटरी वालो के साथ साथ प्राधिकरण के सम्बंधित विभाग के अधिकारियो पर प्रश्न खड़े करता है। एक अनुमान के अनुसार प्राधिकरण के रिकार्ड में लगभग एक लाख रूपए का चालान का टारगेट रहता है। ऐसे में इन अवैध दुकानों को संरक्षण देने वाले अधिकारी कर्मचारी ही अक्सर कुछ लोगो के चालान करके दोनों तरफ खेलते हैं इससे जहाँ एक और प्राधिकरण के शीर्ष अधिकारियो को इन विभागों की कार्यवाही दिखती है वहीं अधिकारियो की वसूली भी सतत जारी रहती है। यही पुरे प्रकरण में सबसे बड़े आक्रोश का कारण है और रोचक तथ्य ये है कि प्राधिकरण के सरंक्षण में छिपे हुए ठेकेदारों द्वारा संचालित इन ठेले वालो को कार्यवाही वहीं होती हैं जो इस अघोषित सिस्टम में नहीं आता है या जो विद्रोह करता है।

बीते माह गौर सिटी २ में ऐसे ही अवैध ठेला ढेली वालो के चलते एक डम्फर से टकरा कर एक महिला की मृत्यु भी हो गयी थी जिसके बाद प्राधिकरण के सीईओ एन जी रवि कुमार ने तत्कालीन वरिष्ठ प्रबंधक को ने को हटा दिया था, अवैध ठेली-पटरी का दावा है कि पहले से विवादित रहे नए वरिष्ठ प्रबंधक ने कुछ माह तक सिस्टम समझा और अब एक बार फिर से शहर में वही कुछ होने लगा है ऐसा लगता है जैसे नए लोगो के साथ इस सिस्टम के पुराने नियम फिर से स्थापित हो गए हैं।

नहीं है कोई वेंडिंग जोन नहीं है कोई पालिसी ?

शहर में चल रही इस कारगुजारी का एक पहलु और भी है वो हैं वेंडिंग जोन का ना होना और ना ही इसके लिए अभी तक कोई पालिसी ग्रेटर नॉएडा में बनाई गयी हैं दरअसल बीते २० वर्षो में प्राधिकरण ने शहर में प्लाट तो काटे हैं किन्तु शहर वासियों के लिए समुचित योजनाओं पर काम नहीं किया है। ऐसे में प्लानिंग से बसाये गए शहर का दावा असफल दिखाई देता है और ऐसे अवैध रेहड़ी पटरी वाले सडको पर दिखाई देते है और प्राधिकरण के समानान्तर नया खेल शुरू हो गया है।

अपुष्ट सूत्रों कि माने तो प्राधिकरण के वर्तमान सीईओ रवि एनजी ने शहर में हो रही इस अव्यवस्था को व्यवस्थित रूप देने के लिए एक सलाहकार को नियुक्त भी किया है जो इन सभी समस्याओ पर एक विस्तृत रिपोर्ट देगा, जिसेक शहर में वेंडिंग जोन, बस स्टॉप, साप्ताहिक बाज़ार के स्थान नयमित हो सकेंगे। संभवत: उसके बाद कुछ तस्वीर बदलेगी पर क्या उसके बाद भी शहर में प्राधिकरण के कमर्चारियो के संरक्षण में चल रहे इस खेल पर कोई रोक लगेफी या फिर नयी वयवस्था में भी लोग भ्रष्टाचार के नए तरीके खोज लेंगे।

संधिवार्ता का ये एपिसोड आपको कैसा लगा हमें ज़रूर बताये, नोएडा ग्रेटर नोएडा की समस्याओ पर आप अगर चाहते हैं कि हम उसे सबके सामने लाये तो हमें हमारे नीचे दिए नम्बरों पर ज़रूर भेजे हम समस्या के सभी पक्षों को निष्पक्ष होकर रखने का प्रयास करेंगेI

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आशु भटनागर बीते 15 वर्षो से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(रु999) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे