उत्तर प्रदेश सरकार ने 2015 के मोहम्मद अखलाक भीड़ हत्या (Mob Lynching) मामले के सभी आरोपितों के खिलाफ चल रहे अभियोजन को वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार ने इस संबंध में अपर सत्र न्यायाधीश त्वरित न्यायालय प्रथम के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 321 के तहत एक औपचारिक प्रार्थना पत्र दाखिल किया है।
सरकार ने तर्क दिया है कि यह कदम ‘सामाजिक सद्भाव की बहाली’ को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।

12 दिसंबर को होगी सुनवाई
राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता ने 15 अक्टूबर को यह प्रार्थना पत्र अदालत में दायर किया। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता भाग सिंह भाटी के अनुसार, यह अनुरोध 26 अगस्त को राज्य सरकार द्वारा जारी एक निर्देश पत्र के बाद किया गया है। आवेदन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने अभियोजन वापस लेने की लिखित मंजूरी दे दी है। इस मामले में अब 12 दिसंबर को सुनवाई होने की संभावना है।
क्या था अखलाक हत्याकांड?
यह मामला 28 सितंबर 2015 का है, जब गौतमबुद्ध नगर के दादरी क्षेत्र के बिसहाड़ा गांव में 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। भीड़ को संदेह था कि अखलाक के घर में गोमांस रखा गया है। यह घटना कई महीनों तक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में बनी रही थी, जिसने देश में बढ़ती असहिष्णुता की बहस को जन्म दिया था।

अखलाक हत्याकांड में मृतक की पत्नी इकरामन ने शुरुआती तौर पर 10 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
जांच और आरोप पत्र
विवेचना के दौरान, चश्मीद गवाहों, जिनमें अखलाक की पत्नी इकरामन, मां असगरी, बेटी शाहिस्ता और बेटे दानिश शामिल थे, के बयान दर्ज किए गए। गवाहों के बयानों में 16 अन्य नाम भी जोड़े गए थे।
पुलिस ने मामले में कुल 18 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें तीन नाबालिग भी शामिल थे। पुलिस ने 22 दिसंबर 2015 को आरोप पत्र दाखिल किया था। हालांकि, अक्टूबर 2016 में, हिरासत में लंबी बीमारी के चलते आरोपितों में से एक, रवि, की मौत हो गई थी।
परिवार के अधिवक्ता ने कहा- दस्तावेज नहीं मिले
सरकार द्वारा मुकदमा वापस लेने के कदम पर अखलाक परिवार के अधिवक्ता यूसुफ सैफी ने प्रतिक्रिया दी है। अधिवक्ता सैफी का कहना है कि उन्होंने अभी तक सरकार के इस कदम से संबंधित कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं देखा है। उन्होंने कहा कि सोमवार को विस्तृत जानकारी हासिल करने के बाद ही वे इस मामले में कोई विस्तृत टिप्पणी दे पाएंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत, राज्य सरकार सार्वजनिक हित, सामाजिक सद्भाव या न्याय के हित में किसी भी आपराधिक मुकदमे को वापस लेने का अनुरोध अदालत से कर सकती है। हालांकि, अंतिम निर्णय न्यायालय का होता है।


