आशु भटनागर । भारत के सबसे तेजी से विकसित होते औद्योगिक और आवासीय हब में से एक, गौतमबुद्धनगर, ने पिछले तीन वर्षों में कानून व्यवस्था के मोर्चे पर एक अभूतपूर्व परिवर्तन देखा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूरदर्शी नेतृत्व में लागू की गई कमिश्नरेट प्रणाली और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी लक्ष्मी सिंह के कुशल संचालन ने जनपद को अपराध मुक्त और सुरक्षित बनाने की दिशा में नए मानक स्थापित किए हैं। यह परिवर्तन न केवल आंकड़ों में परिलक्षित होता है, बल्कि आम जनमानस की धारणा और व्यापारिक समुदाय के विश्वास में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: योगी सरकार का दूरदर्शितापूर्ण निर्णय
गौतमबुद्धनगर, जिसमें नोएडा और ग्रेटर नोएडा जैसे महत्वपूर्ण शहर शामिल हैं, दशकों से अपनी तीव्र शहरीकरण और आर्थिक गतिविधियों के कारण संगठित अपराधों के लिए एक आकर्षक लक्ष्य रहा है। भूमि विवाद, धोखाधड़ी, शराब और नशीले पदार्थों की तस्करी, और संपत्ति संबंधी अपराध यहां एक बड़ी चुनौती पेश करते रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में, तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने गौतमबुद्धनगर जैसे संवेदनशील और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जिलों में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया। इस प्रणाली का मूल उद्देश्य पुलिस को कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान कर उसे अधिक स्वायत्तता और जवाबदेही देना था, ताकि वह अपराध नियंत्रण और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में अधिक प्रभावी हो सके। यह निर्णय पुलिस-प्रशासनिक समन्वय की पारंपरिक जटिलताओं को दूर कर, पुलिस बल को त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करने में सक्षम बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम था।

नेतृत्व का हस्तांतरण: लक्ष्मी सिंह की महत्वपूर्ण नियुक्ति
कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के बाद, गौतमबुद्धनगर को पहले पुलिस आयुक्त के रूप में आलोक सिंह मिले, जिन्होंने इस नई व्यवस्था की नींव रखी। नवंबर 2022 के आखिरी सप्ताह में, योगी सरकार ने इस महत्वपूर्ण पद पर एक और रणनीतिक परिवर्तन करते हुए, वर्ष 2000 बैच की तेज तर्रार महिला आईपीएस अधिकारी लक्ष्मी सिंह को दूसरे पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त किया। उन्होंने 1 दिसंबर, 2022 को अपना कार्यभार संभाला, और मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में ही उन्होंने गौतमबुद्धनगर पुलिस के सामने आने वाली चुनौतियों और अपनी अपेक्षाओं के बारे में स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने संगठित अपराधों पर लगाम लगाने, जन सुरक्षा सुनिश्चित करने और “जीरो टॉलरेंस” की नीति अपनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की, जो उनके आने वाले तीन वर्षों के कार्यकाल का आधार बनी। लक्ष्मी सिंह का आगमन एक ऐसे समय में हुआ जब कमिश्नरेट प्रणाली को अपनी प्रभावशीलता सिद्ध करनी थी और यह दिखाना था कि यह न केवल एक प्रशासनिक परिवर्तन है, बल्कि कानून व्यवस्था में सुधार का एक सशक्त माध्यम भी है।
तीन साल का रिपोर्ट कार्ड: अपराध पर निर्णायक प्रहार
आईपीएस लक्ष्मी सिंह के मार्गदर्शन में, गौतमबुद्धनगर पुलिस कमिश्नरेट ने बीते 1155 दिनों (लगभग तीन वर्षों) में संगठित अपराधों पर निर्णायक कार्रवाई करते हुए एक प्रभावशाली रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत किया है। यह रिपोर्ट कार्ड न केवल पुलिस की सक्रियता और दक्षता को दर्शाता है, बल्कि योगी सरकार की अपराध के प्रति “जीरो टॉलरेंस” नीति की सफलता का भी प्रमाण है।

बदमाशों का जिलाबदर और थाना हाजिरी: रोकथाम की प्रभावी रणनीति
कानून व्यवस्था बनाए रखने में निवारक कार्रवाई का महत्वपूर्ण स्थान होता है। गौतमबुद्धनगर पुलिस ने इस सिद्धांत का बखूबी पालन करते हुए ‘गुंडा अधिनियम’ के तहत कुख्यात अपराधियों को जिले से बाहर करने और उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कदम उठाए।
कुल जिलाबदर: बीते 1155 दिनों में कुल 568 बदमाशों को गुंडा अधिनियम के तहत जिलाबदर किया गया है। यह कार्रवाई सुनिश्चित करती है कि ऐसे अपराधी जिले में अशांति फैलाने में सफल न हों।
वर्षवार आंकड़े:
2023 में 280 अपराधियों को जिलाबदर किया गया।
2024 में 133 अपराधियों को जिलाबदर किया गया।
चालू वर्ष में 155 बदमाशों को जिलाबदर किया गया है।
थाना हाजिरी: इसके अतिरिक्त, 265 अपराधियों की थाना हाजिरी सुनिश्चित की गई है। यह प्रक्रिया उन अपराधियों के लिए है जिन पर पुलिस लगातार निगरानी रखना चाहती है। उन्हें नियमित अंतराल पर संबंधित थाने में उपस्थित होकर अपनी गतिविधियों की जानकारी देनी होती है।
वर्षवार आंकड़े:
2023 में 30 व्यक्तियों को थाना हाजिरी पर रखा गया।
2024 में 146 व्यक्तियों को थाना हाजिरी पर रखा गया।
चालू वर्ष में 89 व्यक्तियों को थाना हाजिरी पर रखा गया है।
गैंगस्टर अधिनियम के तहत संपत्ति जब्ती: अपराधियों की आर्थिक कमर तोड़ना
अपराध और अपराधियों पर नकेल कसने का सबसे प्रभावी तरीका उनकी आर्थिक रीढ़ को तोड़ना है। गौतमबुद्धनगर पुलिस ने गैंगस्टर अधिनियम का व्यापक उपयोग करते हुए अपराधियों की अवैध रूप से अर्जित संपत्ति को जब्त करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
कुल संपत्ति जब्ती: इस अवधि में, गैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत कुल 65 मामलों में 3 अरब 33 करोड़ 84 लाख 79 हजार 465 रुपये (लगभग ₹333.85 करोड़) की संपत्ति ज़ब्त की गई है। यह आंकड़ा अपराधियों के नेटवर्क को ध्वस्त करने और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर करने की पुलिस की रणनीति को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
वर्षवार आंकड़े और वृद्धि:
2023: कुल 39 मामलों में 81 करोड़ 87 लाख 70 हजार 319 रुपये की संपत्ति कुर्क की गई।
2024: कुल 16 मामलों में 1 अरब 32 करोड़ 39 लाख 90 हजार 323 रुपये की संपत्ति कुर्क की गई। यह वर्ष सबसे अधिक संपत्ति जब्ती वाला रहा, जो पुलिस की बढ़ती आक्रामकता और प्रभावी रणनीति का संकेत है।
चालू वर्ष: कुल 10 मामलों में 1 अरब 19 करोड़ 57 लाख 18 हजार 823 रुपये की संपत्ति कुर्क हुई है।
यह डेटा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पुलिस ने न केवल अपराधियों को उनकी गतिविधियों से रोका है, बल्कि उनके अवैध आर्थिक स्रोतों पर भी गहरा प्रहार किया है। संपत्ति जब्ती की यह कार्रवाई यह संदेश देती है कि अपराध से अर्जित धन किसी भी कीमत पर सुरक्षित नहीं रहेगा।
कमिश्नरेट पुलिस की संगठित अपराध पर रणनीति
पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह ने जोर देकर कहा है कि अपराध एवं अपराधियों के प्रति “जीरो टॉलरेंस” के तहत कार्रवाई हो रही है। उन्होंने बताया कि गैंगस्टर और जिलाबदर करने के साथ ही अपराधियों की अवैध संपत्ति को भी कुर्क और जब्त किया जा रहा है। संगठित अपराध, माफिया जैसी गतिविधियों और जन शांति भंग करने वाले अपराधियों के खिलाफ जिले की पुलिस आगे भी इसी प्रकार की कार्रवाई करती रहेगी।
गौतमबुद्धनगर का तेजी से विकास, विशेष रूप से रियल एस्टेट और उद्योग क्षेत्रों में, इसे भू-माफिया, स्क्रैप माफिया, और विभिन्न प्रकार के चोर गिरोहों के लिए एक उपजाऊ जमीन बना देता था। कमिश्नरेट प्रणाली लागू होने के बाद, पुलिस ने इन चुनौतियों का सीधे मुकाबला किया। बीते तीन साल में, एक हजार से ज्यादा अपराधियों का न केवल नेटवर्क तोड़ा गया है, बल्कि गिरोह के सरगना समेत अन्य सदस्यों पर गैंगस्टर भी लगाया गया है।
निशाने पर कौन से अपराधी?
गौतमबुद्धनगर कमिश्नरेट पुलिस के मुताबिक, विभिन्न प्रकार के संगठित अपराधी, जिनके नेटवर्क को ध्वस्त किया गया है, उनमें शामिल हैं:
- भूमाफिया: अवैध रूप से भूमि पर कब्जा करने वाले और धोखाधड़ी करने वाले।
- मोबाइल टावर से उपकरण चोर: तकनीकी उपकरणों की चोरी कर बड़े नुकसान पहुंचाने वाले गिरोह।
- स्क्रैप माफिया: औद्योगिक इकाइयों और निर्माण स्थलों से स्क्रैप चुराने वाले।
- वाहन चोर, मोबाइल चोर व झपटमार, चेन झपटमार: आम जनता को निशाना बनाने वाले छोटे-मोटे अपराधों से लेकर संगठित गिरोह।
- घरों में चोरी करने वाले: आवासीय क्षेत्रों में सेंधमारी करने वाले।
- धोखेबाजी कर संपत्ति खरीद-फरोख्त करने वाले: रियल एस्टेट में धोखाधड़ी करने वाले।
- नशाखोरी करने वाले, शराब तस्कर, गांजा तस्कर: मादक पदार्थों के व्यापार से जुड़े गिरोह।
- अन्य तरीके से संगठित अपराध करने वाले अपराधी: सभी प्रकार के संगठित अपराधों में लिप्त व्यक्ति।
इन सभी पर गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई की गई है, जिससे न केवल उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया है, बल्कि उनके आर्थिक साम्राज्य को भी ध्वस्त किया गया है।
चुनौतियाँ बरकरार: जन-संवाद और माइक्रो-लेवल क्राइम
जहां एक ओर कमिश्नरेट प्रणाली ने संगठित अपराध के मोर्चे पर शानदार सफलता हासिल की है, वहीं दूसरी ओर, आम नागरिक के दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर पूरी तरह से नियंत्रण पाना बाकी है। गौतमबुद्धनगर की पेशेवर आबादी और निवासी अब भी कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार की अपेक्षा रखते हैं:
सतत छोटा अपराध (Petty Crime)
आँकड़े बताते हैं कि बड़े अपराधी तो जिला बदर हो रहे हैं, लेकिन चोरी और छीनैती (स्नैचिंग) की घटनाओं में अपेक्षित कमी नहीं आई है। सोसाइटियों के बाहर, सड़कों पर मोबाइल और चेन छीनने की घटनाएं लगभग रोज की बात है। यह वह क्षेत्र है जहां नागरिक सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कई निवासियों का मानना है कि पुलिस का ध्यान बड़े मामलों पर केंद्रित रहने के कारण, स्थानीय गश्त और छोटे अपराधियों पर लगाम कसने में कमजोरी दिखाई देती है।
पुलिस-पब्लिक इंटरफेस और व्यवहार
कमिश्नरेट प्रणाली का एक प्राथमिक लक्ष्य पुलिस को अधिक जन-केंद्रित और उत्तरदायी बनाना था। हालांकि, जमीन पर, एसएचओ (SHO) स्तर तक पुलिस का व्यवहार कई लोगों के लिए फ्रेंडली या सहयोगी नहीं है। यह गंभीर शिकायत है कि आपातकालीन संपर्क के लिए जारी किए गए सीयूजी (CUG) नंबरों पर भी अक्सर जवाब नहीं दिया जाता है। पुलिस स्टेशनों में पारदर्शी और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की कमी, कमिश्नरेट की बड़ी सफलताओं को नागरिक संतुष्टि के पैमाने पर कमजोर करती है।
रेगुलेटरी कमजोरियाँ: अतिक्रमण और बिल्डर विवाद
गौतमबुद्धनगर का शहरी विकास बिल्डरों और अवैध अतिक्रमण के जटिल तंत्र पर निर्भर करता है। अक्सर पुलिस कमिश्नरेट पर आरोप लगते है कि सड़कों पर बढ़ते अतिक्रमण और बिल्डरों पर नकेल कसने में अपेक्षित सख्ती नहीं बरती गई है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम बिल्डर-पीड़ित निवासियों के मामलों में देखा गया है। जब सैकड़ों सोसाइटी निवासियों ने बिल्डरों की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाई, तो पुलिस ने कई मामलों में बिल्डरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के बजाय, परेशान निवासियों के खिलाफ शांति भंग करने जैसी प्रशासनिक कार्यवाही कर दी। पेशेवर निवासियों के बीच इस कदम को न्याय की विफलता के रूप में देखा गया, जिससे पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हुए। इसके अलावा, अवैध कॉलोनियों का बढ़ना भी एक संकेत है कि स्थानीय स्तर पर लैंड माफिया और अतिक्रमणकारी अब भी मजबूत बने हुए हैं, जिसे कमिश्नरेट को तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है।
देखा जाए तो गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली का कार्यान्वयन, और विशेष रूप से आईपीएस लक्ष्मी सिंह के नेतृत्व में संगठित अपराध के खिलाफ की गई कार्रवाई, उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। तीन अरब रुपये से अधिक की संपत्ति जब्त करना और 568 गुंडों को जिलाबदर करना यह सिद्ध करता है कि बड़े माफिया समूहों को ध्वस्त करने के लिए सिस्टम को आवश्यक शक्ति और राजनीतिक इच्छाशक्ति प्राप्त हुई है।
किन्तु कमिश्नरेट मॉडल की पूर्ण सफलता के लिए, इसे अब अपने उच्च-स्तरीय रणनीतिक सफलताओं को जमीनी स्तर पर रूपांतरित करना होगा। सड़क पर चोरी-छीनैती पर नियंत्रण, पुलिसकर्मियों के व्यवहार में सुधार, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से, बिल्डर-खरीददार विवादों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर निष्पक्ष और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।
गौतमबुद्धनगर कमिश्नरेट प्रणाली उत्तम कानून व्यवस्था के अपने वादे पर खरी उतर रही है, बशर्ते वह संगठित अपराध पर अपने विजय को माइक्रो-लेवल पुलिसिंग में भी दोहरा सके और आम नागरिक के लिए एक सहज एवं उत्तरदायी पुलिस व्यवस्था सुनिश्चित करे। यह एक निरंतर विकसित हो रहा मॉडल है, जिसकी सफलता का अंतिम मापदंड बड़े आँकड़े नहीं, बल्कि आम जनता का सुरक्षित महसूस करना होगा।



