उत्तर प्रदेश की राजनीति में मंगलवार को एक बड़ा भूचाल आ गया, जब रामपुर की एक स्थानीय अदालत ने समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान और उनके बेटे, पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम खान को ‘दो पैन कार्ड’ और जन्मतिथि में हेरफेर से जुड़े एक गंभीर धोखाधड़ी मामले में दोषी ठहराते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई। अदालत ने दोनों पिता-पुत्र पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इस कठोर फैसले के तुरंत बाद, दोनों नेताओं को न्यायिक हिरासत में ले लिया गया।
यह फैसला सपा नेता और उनके परिवार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जो पहले ही कई कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इस सजा के कारण, आजम खान और अब्दुल्ला आजम की राजनीतिक भविष्य की राहें और भी कठिन हो गई हैं।

फैसले के बाद तनाव और सुरक्षा के कड़े इंतजाम
यह मामला राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील था, जिसकी वजह से मंगलवार को रामपुर कचहरी परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। अदालत के फैसले को देखते हुए, परिसर और उसके आसपास बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया था।
सुनवाई के दौरान, इस मामले के वादी, भाजपा विधायक आकाश सक्सेना, भी कोर्ट में मौजूद रहे। जैसे ही सजा का ऐलान हुआ, कचहरी के बाहर भाजपा और सपा कार्यकर्ताओं की बड़ी भीड़ जमा हो गई, जिससे परिसर के आसपास कुछ देर के लिए तनाव का माहौल बन गया। हालांकि, पुलिस की मुस्तैदी के चलते कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।

भाजपा विधायक आकाश सक्सेना ने फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि यह सत्य की जीत है।
क्या था ‘दो पैन कार्ड’ का मामला?
यह पूरा मामला अब्दुल्ला आजम के विधानसभा चुनाव नामांकन से जुड़ा है और इसमें जानबूझकर धोखाधड़ी कर गलत जन्मतिथि का इस्तेमाल करने का आरोप शामिल है।
शिकायतकर्ता, भाजपा विधायक आकाश सक्सेना ने सिविल लाइंस कोतवाली पुलिस को दी अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि अब्दुल्ला आजम के पास दो अलग-अलग पैन कार्ड थे, जिनमें जन्म तिथियां भिन्न थीं।
- पहला पैन कार्ड: इस पैन कार्ड में जन्मतिथि 1 जनवरी 1993 दर्ज थी। यह तिथि उनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों पर आधारित थी और इसी के आधार पर उन्होंने आयकर रिटर्न दाखिल किए थे।
- दूसरा पैन कार्ड (विवादित): यह वह पैन कार्ड था जिसका इस्तेमाल उन्होंने 2017 के स्वार-टांडा विधानसभा चुनाव के नामांकन के दौरान किया था। इसमें जन्मतिथि 30 सितंबर 1990 दर्शाई गई थी।
आरोप यह था कि 2017 के विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अब्दुल्ला आजम की उम्र पूरी नहीं थी। न्यूनतम आयु संबंधी अयोग्यता को छिपाने के लिए, आजम खान और अब्दुल्ला ने एक सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र के तहत बैंक पासबुक में कूटरचना (Forgery) कर हाथ से लिखी गई जन्मतिथि के आधार पर दूसरा पैन कार्ड बनवाया। इस कूटरचित दस्तावेज का मक़सद केवल यह था कि वह कानूनी रूप से चुनाव लड़ सकें और आयु पूर्ण करने संबंधी लाभ प्राप्त कर सकें।
सक्सेना ने तर्क दिया था कि अब्दुल्ला आजम ने जानबूझकर मिथ्या दस्तावेज तैयार किए और प्रस्तुत नामांकन पत्र को स्वीकार कराकर विधानसभा का चुनाव जीता, जो कि अवैध था।
इन धाराओं के तहत दर्ज हुई थी एफआईआर
आकाश सक्सेना की तहरीर के आधार पर, सिविल लाइंस कोतवाली पुलिस ने मोहम्मद आजम खान (तत्कालीन सांसद) और अब्दुल्ला आजम (तत्कालीन विधायक) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की गंभीर धाराओं के तहत रिपोर्ट दर्ज की थी:
- धारा 420 (धोखाधड़ी)
- धारा 467 (मूल्यवान सुरक्षा की कूटरचना)
- धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से कूटरचना)
- धारा 471 (कूटरचित दस्तावेज को असली के रूप में इस्तेमाल करना)
- धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र)
न्यायालय ने यह माना कि दोनों पिता-पुत्र ने मिलकर चुनाव जीतने के लिए धोखाधड़ी और कूटरचना की थी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सात साल की अधिकतम सजा सुनाई गई।
आजम खान का कानूनी इतिहास और इस फैसले का महत्व
आजम खान, जिनके खिलाफ कुल 104 मामले दर्ज हैं, के लिए यह फैसला कानूनी झटकों की एक लंबी श्रृंखला में सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
अभी तक, आजम खान के खिलाफ दर्ज 104 मामलों में से 12 में फैसले आ चुके हैं। इनमें से उन्हें सात मामलों में सजा मिली है, जबकि पांच मामलों में उन्हें बरी किया गया है। सात साल की कैद की सजा, विशेष रूप से कूटरचना और आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों में, उनके राजनीतिक करियर पर दूरगामी प्रभाव डालेगी।
यह ध्यान देने योग्य है कि इससे पहले भी अब्दुल्ला आजम की विधानसभा सदस्यता को जन्मतिथि संबंधी इसी विवाद के कारण रद्द किया जा चुका है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अब्दुल्ला की नामांकन स्वीकार किए जाने को ही अवैध ठहराया था, जिसके बाद उनकी विधायकी चली गई थी। यह नया आपराधिक फैसला उस कानूनी चुनौती की दूसरी कड़ी है, जिसमें अब उन्हें जेल की सजा मिली है।



