आशु भटनागर । 2025 के अंतिम पखवाड़े में केवल 10 दिन शेष हैं, ऐसे में एनसीआर खबर ने इस वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और अधूरे सपनों पर आधारित एक विशेष श्रृंखला शुरू की है। इसके पहले एपिसोड में, हम यमुना प्राधिकरण पर चर्चा कर चुके हैं, आज दुसरे एपिसोड में हम नोएडा प्राधिकरण के उन पांच महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें 2025 के अंत तक पूर्ण होने जाना चाहिए था था ।अपनी स्थापना के 50 वर्ष मना रहे नोएडा प्राधिकरण ने सीईओ डा लोकेश एम् के नेतृत्व में डेटा सेंटर्स, फिनटेक हब्स और एआई क्लस्टर बनाने में तेजी दिखाई है। लेकिन जहां बुनियादी सुविधाओं का निर्माण रुका हुआ है, वहां शहर की गुणवत्ता-स्थिरता की संदेहजनक आधारशिला बनी है। मनोरंजन, यातायात, स्वास्थ्य — ये सपने सच होने के बजाय, 2025 के अंत में एक नए वादे के लिए इंतजार कर रहे हैं।
नोएडा हेबिटेट तथा कंवेंशन सेंटर
नोएडा हेबिटेट तथा कंवेंशन सेंटर एक अति महत्वाकांक्षी परियोजना थी जिसे दिल्ली एनसीआर में नोएडा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा था। इस परियोजना के लिए लगभग 700 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित था, लेकिन अब नोएडा प्राधिकरण ने पीपीपी मॉडल पर बनवाने का निर्णय लेकर इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की है।
पहले इस परियोजना में सेक्टर 94 में एक विशाल हेबीटेट एवं कन्वेंशन सेंटर बनाए जाने की योजना थी। इसके लिए दो भूखंड संख्या 4 व 5 आरक्षित किए गए थे, जिन पर लगभग 97000 वर्ग मीटर भूमि पर हेबिटेट क्लब तथा कंवेंशन सेंटर बनाया जाना प्रस्तावित था। इस परियोजना में 5 हजार, 2 हजार तथा 5-5 सौ लोगों के बैठने की क्षमता वाले चार विशाल ऑडिटोरियम, एक मॉल, फूड कोर्ट, आर्ट गैलरी, ऑफिस तथा आवासीय फ्लैट भी बनाए जाने थे।
हालांकि, इस परियोजना के लिए 2019 में डिजाइन आदि बनवाकर स्वीकृत कर लिया गया था, लेकिन इसके बाद इसके निर्माण के लिए टेंडर जारी किया गया और उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम द्वारा 443 करोड़ रुपये के सिविल निर्माण कार्य के टेंडर को पांच प्रतिशत कम दर पर हासिल कर लिया गया। प्राधिकरण के सूत्रों कि माने तो इसमें हुए कार्य के क्वालिटी को लेकर तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऋतू माहेश्वरी के अड़ियल रवैये से नोएडा प्राधिकरण और निगम के बीच विवाद शुरू हो गया, जिसके बाद यह परियोजना आर्बिट्रेशन में फंस गई और आज तक उसी में फंसी हुई है।

वर्तमान सीईओ डॉ. लोकेश एम के प्रयासों के बावजूद, इस परियोजना को शुरू करने की संभावना नहीं दिख रही है। अप्रैल 2025 में इसके लिए बोर्ड बैठक में एक प्लान रखा गया था, जिसमें इसे पीपीपी मॉडल पर बनाए जाने का रास्ता दिया गया था, लेकिन 2026 तक इसके शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं है।
नोएडा प्राधिकरण का नया ऑफिस
नोएडा प्राधिकरण के नए ऑफिस की योजना 2019 में पूरी होने वाली थी, लेकिन इसके लिए कभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस ऑफिस में नोएडा प्राधिकरण के सभी विभागों को एक ही छत के नीचे लाने की योजना थी, जिससे नागरिकों को सुविधा हो और प्रशासनिक कार्यों में तेजी आ सके। किंतु यहां भी पूर्व सीईओ के कार्यकाल में इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। दरअसल कोई भी सीईओ इसकी खामियों को देख कर इसमें कुछ करना ही नहीं चाहता था। कहा जाता है 2019 में आई ऋतू माहेश्वरी भी इस प्रोजेक्ट से दूर ही रही और प्राधिकरण के अपने ही कार्यालय को लेकर कई कहानियां कही जाने लगी I लोगो ने पूछा जब प्राधिकरण का अपना कार्यालय भी समय से नहीं बनाया जा सकता है तो प्राधिकरण के अधिकारी किस मुंह से अन्य निजी बिल्डर परियोजनाओं में देरी पर पेनेल्टी लगाने का दंभ भरते हैं।
जुलाई 2023 में आये वर्तमान सीईओ डॉ. लोकेश एम. के आने के बाद पुनः कार्य शुरू हुआ, सीईओ ने पहले लक्ष्य को पुनुर्स्थापित किया और कार्यालय के प्रथम फेज के लिए स्वयं खड़े होकर नोएडा प्राधिकरण के अपने कार्यालय की बड़ी खामियों को दूर करने में दिन-रात एक किया, जिसके सितंबर 2025 तक पूरा होने की उम्मीद थी। हालांकि पहले की समय-सीमा में देरी हुई है और अब लागत बढ़कर ₹390 करोड़ हो गई है। नोएडा प्राधिकरण का दावा है कि सिविल और इलेक्ट्रिकल काम लगभग पूरा हो चुका है, ऑडिटोरियम भी बन चूका है और सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा उद्घाटन की तैयारी है, फिर भी इसको 2026 की पहली तिमाही तक ही पूरा होने की आशा है।
विवरण:
- अपेक्षित समय: 2019 फिर 2023 में बदलाव के कारण सितंबर 2025
- प्रगति: सिविल कार्य 98% और इलेक्ट्रिकल कार्य 95% पूरा हो चुका है।
- लागत: बढ़ी हुई लागत ₹390 करोड़ है (मूल ₹304 करोड़ से)।
- विशेष: यह नया परिसर नोएडा की प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने और बेहतर सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया जा रहा है, और इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री द्वारा किया जा सकता है।
MP-1 एलीवेटेड रोड: यातायात के सपने को ऊंचाई कभी न मिली
लाल फीताशाही और अधिकारियो की सरकार की हाँ में हाँ करने का सबसे सटीक उदाहरण है — एमपी-1 एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट। 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उपस्थिति में इसका शिलान्यास कर दिया गया। त्वरित दिखावे के लिए तो कुछ काम भी शुरू कर दिया गया था। लेकिन 2017 के बाद जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार आई, तो प्राधिकरण की प्राथमिकताओं में बदलाव आया।2017 से 2019 के बीच प्राधिकरण में अस्थिरता के दौर में आने-जाने वाले कई सीईओ ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। 2019 में सीईओ ऋतू माहेश्वरी आयीं किन्तु कहा जाता है कि अखिलेश यादव सरकार का प्रोजेक्ट होने के चलते उन्होंने भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
वर्तमान सीईओ डा लोकेश एम् के समय चौड़ा मोड़ पर इसके शिलान्यास पट्ट को लेकर मीडिया में इसके समाचार प्रकशित हुए तो इस कार्य शुरू होने के दावे हुए पर अब भी, इस परियोजना की प्रारंभिक दस्तावेज़ीकरण प्रक्रिया चल रही है। चर्चा है कि IIT रुड़की को लगभग 600 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाले प्रोजेक्ट की DPR (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) और फीजिबिलिटी अध्ययन के लिए नियुक्त किया गया है। योजना अगर समय से समाप्त होती तो संभवत: 2019 में ही सेक्टर 3 के रजनीगंधा अंडरपास से लेकर सेक्टर 57 चौराहे तक एक सिग्नल-फ्री, 5 रेड लाइट्स से मुक्त, और यात्रा का समय 30 मिनट से घटाकर 10 मिनट कर देने वाला एलीवेटेड कॉरिडोर नोएडा वासियों को मिल जाता। किन्तु गलतियों का वही अधिकारिक पैटर्न दोहराया गया है। राजनीतिक परिवर्तन या लापरवाही ने इसे धरती में दबा दिया। 2025 में भी पूरा होने का लक्ष्य अब केवल एक और वायदा बचा है।
छिजारसी फ्लाईओवर: जाम के बीच अधूरा सपना
छिजारसी गांव, जो एनएच-9 और फरीदाबाद-नोएडा-गाजियाबाद (FNG) मार्ग के चौराहे पर स्थित है, लंबे समय से भारी ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रहा है। प्राधिकरण ने इस समस्या का समाधान एक फ्लाईओवर बनाकर करने की घोषणा की थी। हालांकि, 2025 के अंत तक इसका निर्माण शुरू तक नहीं हो पाया है। यहां साप्ताहिक बाजार और सब्जी मंडी लगने से भी यातायात बाधित होता है। इसके अलावा छिजारसी में सड़क पर अतिक्रमण व गड्ढों की वजह से भी यहां जाम की स्थिति बनी रहती है।
प्राधिकरण के सूत्रों के अनुसार, सर्वेक्षण पूरा हो चुका है और डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार की जा रही है। लेकिन स्थानीय निवासी आशंका जता रहे हैं कि यह प्रोजेक्ट अगले कुछ वर्षों तक टलता रहेगा। लोगों का कहना है कि प्राधिकरण की हीलाहवाली के चलते रोज घंटों जाम में फंसना पड़ता है। सिर्फ सर्वे करना ही कोई समाधान नहीं है। ऐसे में सच यही कि ये योजना भी 2025 में कागजों में ही घुमती रही अब अगले वर्ष के लिए इंतज़ार बढ़ गया है
नोएडा सेंट्रल हॉस्पिटल
2020 में घोषित नोएडा सेंट्रल हॉस्पिटल (NCH) एक सुपर-स्पेशलिटी सुविधा के रूप में बड़ी उम्मीदों के साथ शुरू हुआ था। प्राधिकरण का दावा था कि यह नोएडा की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को क्रांतिकारी बना देगा। लेकिन आज, पूरे परिसर में केवल पहले चरण के 400 बेड्स आंशिक रूप से सक्रिय हैं। बाकी का हिस्सा इंजीनियरिंग और प्रशासनिक कार्यालयों में बदल चुका है। चर्चा तो यह भी है कि NCH को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया है। नोएडा निवासियों का कहना है का मानना है कि बुनियादी ढांचे में कमी, निजीकरण के प्रस्ताव और निरंतर प्रबंधन संकट ने इस परियोजना को विफल बना दिया है।
नोएडा के सुपर स्पेशियलिटी पीडियाट्रिक अस्पताल (चाइल्ड पीजीआई) जैसी सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं सीवेज रिसाव, खराब रखरखाव और अव्यवस्था के शिकार हैं। सरकार को भी इन चिंताजनक हालात पर नोटिस लेना पड़ा है और अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है।
जहां सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं धीमी गति से बढ़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा 2025 में, मेदांता (सेक्टर 50) और राज्यपाल द्वारा शारदा केयर हेल्थ सिटी (ग्रेटर नोएडा) जैसे विशाल निजी अस्पतालों का उद्घाटन हुआ। हालात ये हैं कि स्वयं नोएडा प्राधिकरण को अपने कर्मचारियों के लिए निजी अस्पतालों से स्वास्थ्य कैम्प लगवाने पड रहे है और निजी अस्पतालों के बिलों को क्लियेर करवाने के विवाद भी सामने आ रहे है I नोएडा प्राधिकरण के सीईओ डा लोकेश एम् अगर निजी अस्पतालों में बिलों की जगह की जगह उतना ही पैसा नोएडा सेंट्रल हॉस्पिटल पर लगाने की सोचे तो सम्भवत आम लोगो के साथ साथ नोएडा प्राधिकरण के कर्मचारियों और अधिकारियो को भी अच्छी सुविधाओं के लिए कहीं नहीं जाना पड़ता और प्राधिकरण का खर्च भी कम होता।
आगे का रास्ता: 2026 में क्या?
2025 की अधूरी यात्रा के बाद, यह आवश्यक है कि नोएडा प्राधिकरण इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए तेजी से काम करे और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
अगले एपिसोड में — ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के लक्ष्यों पर विशेष विश्लेषण।
पिछले एपिसोड में— यमुना प्राधिकरण के रुके हुए प्रोजेक्ट्स पर विशेष विश्लेषण।



