नोएडा स्थित चाइल्ड पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (चाइल्ड पीजीआई) का बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट फिलहाल अधर में लटक गया है। 100 किलोमीटर की परिधि में ड्रोन के माध्यम से रक्त और रक्त घटकों को स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचाने का यह अभिनव प्रोजेक्ट बजट की कमी के चलते अभी तक कागजों से बाहर नहीं निकल पाया है। संस्थान को इस परियोजना के सफल संचालन और वैज्ञानिक परीक्षण के लिए आवश्यक धनराशि अभी तक आवंटित नहीं की गई है, जिसके चलते महत्वपूर्ण ट्रायल शुरू नहीं हो सका है।
इस प्रोजेक्ट को केवल त्वरित परिवहन तक सीमित नहीं रखना था, बल्कि ड्रोन उड़ान के दौरान रक्त की गुणवत्ता पर होने वाले प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन भी किया जाना था। इस देरी से उन दूर-दराज के मरीजों को तत्काल लाभ मिलने की संभावना क्षीण हुई है, जो समय पर रक्त उपलब्धता न होने के कारण सीधे नोएडा स्थित संस्थान का रुख करते हैं।

जीवनदायी रक्त की समय पर उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती
चाइल्ड पीजीआई पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा सहित आसपास के राज्यों से आने वाले हजारों बच्चों का केंद्र है, जो रक्त संबंधी गंभीर बीमारियों, जैसे थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हैं। संस्थान में 1000 यूनिट क्षमता वाला अत्याधुनिक ब्लड बैंक भी मौजूद है।
डॉक्टरों के अनुसार, ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले मरीजों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि उनके निकटतम अस्पतालों या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आपात स्थिति में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती। समय की कमी को देखते हुए, ये मरीज अक्सर स्थानीय अस्पतालों के बजाय सीधे चाइल्ड पीजीआई तक पहुंचने को मजबूर होते हैं। इस समस्या को कम करने और जीवनरक्षा के समय को बचाने के उद्देश्य से ही संस्थान प्रशासन ने यह ड्रोन आधारित वितरण प्रणाली विकसित करने पर काम शुरू किया था।

बजट की कमी बनी बाधा
परियोजना को गति प्रदान करने के लिए, संस्थान को विशेष बुनियादी ढांचे और उपकरणों की आवश्यकता थी, जिसके लिए अलग से बजट तैयार किया गया था। इस पायलट प्रोजेक्ट के सफल संचालन और डाटा रिकॉर्डिंग के लिए तापमान नियंत्रित परिवहन बॉक्स (Temperature Controlled Boxes), विशेष उड़ान योजनाओं (Special Flight Planning), व्यापक परीक्षण किट, डेटा रिकॉर्डिंग सिस्टम, और रक्त की गुणवत्ता विश्लेषण के लिए एक विशेष प्रयोगशाला (Quality Analysis Lab) की स्थापना की जानी थी।
इसके अतिरिक्त, ड्रोन ऑपरेटरों, तकनीकी सहायता टीम और लॉजिस्टिक सपोर्ट टीम के प्रशिक्षण और तैनाती के लिए भी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता थी। अधिकारियों ने बताया कि चूंकि अभी तक परियोजना को आधिकारिक बजट आवंटन प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए आवश्यक उपकरणों की खरीद और टीम की तैयारी ठप पड़ी है।
गुणवत्ता पर सूक्ष्म वैज्ञानिक निरीक्षण था मुख्य उद्देश्य
देश के कुछ हिस्सों में ड्रोन के माध्यम से रक्त परिवहन के सफल प्रयोग पहले भी किए जा चुके हैं, लेकिन चाइल्ड पीजीआई के इस प्रोजेक्ट को खास बनाने वाली बात इसका वैज्ञानिक अनुसंधान घटक था।
इस योजना के तहत, न केवल रक्त को ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास भेजा जाना था, बल्कि उसे नियंत्रित तापमान वाले बॉक्स में एक से दो दिनों तक स्टोर करके उसकी गुणवत्ता पर गहन वैज्ञानिक अध्ययन भी किया जाना था।
डॉक्टरों द्वारा की जाने वाली जांच में रक्त के घटकों—प्लाज्मा, प्लेटलेट्स, लाल रक्त कोशिकाएं (RBCs), श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBCs), और हीमोग्लोबिन—की गुणवत्ता का सूक्ष्म स्तर पर विश्लेषण होना था। इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि लंबी दूरी और अधिक ऊंचाई पर ड्रोन की उड़ान रक्त के इन नाजुक घटकों पर क्या और कितना प्रतिकूल या अनुकूल असर डालती है। इस डाटा से भविष्य की ब्लड सप्लाई चेन के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश तैयार किए जा सकते थे।
निदेशक ने जताई चिंता
चाइल्ड पीजीआई के निदेशक डॉ. अरुण कुमार सिंह ने परियोजना में देरी की पुष्टि की। उन्होंने बताया, “यह प्रोजेक्ट मरीजों की जान बचाने और रक्त परिवहन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण माइलस्टोन साबित हो सकता था। हम जानते हैं कि दूरदराज के क्षेत्रों में तत्काल रक्त की आवश्यकता होती है। दुर्भाग्य से, अभी तक इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक बजट नहीं मिल पाया है। इस वजह से इस महत्वपूर्ण योजना को शुरू होने में लगातार देरी हो रही है।”
संस्थान अब जल्द से जल्द बजट की स्वीकृति मिलने की उम्मीद कर रहा है ताकि परियोजना का ट्रायल चरण शुरू किया जा सके और पश्चिमी यूपी के दूरस्थ क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण रक्त की आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाया जा सके।



