आशु भटनागर । 2025 के अंतिम पखवाड़े में कुछ ही दिन शेष हैं, ऐसे में एनसीआर खबर ने इस वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और अधूरे सपनों पर आधारित एक विशेष श्रृंखला शुरू की है। इसके पहले एपिसोड में, हम यमुना प्राधिकरण, नोएडा प्राधिकरण और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर चर्चा कर चुके हैं आज अगले एपिसोड में हम जिला प्रशासन के उन पांच जन समस्याओ/ मुद्दों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें 2025 में भी लोगो के लिए समाधान पाना दूर की कौड़ी रही I वर्ष के बीच में जिला अधिकारी मनीष वर्मा की जगह मेधा रूपम को लाया गया I कितुं शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमाफिया , रजिस्ट्री कार्यलय समेत कई मुद्दों पर अभी भी समस्याए जस की तस हैं
निजी स्कूलों की मनमानी फीस और एडमिशन व्यवस्था पर अभिभावकों की उमड़ रही है नाराजगी
निजी शिक्षा संस्थानों की बढ़ती फीस और शिक्षा के अधिकार (RTE) के तहत एडमिशन व्यवस्था ने गौतम बुद्ध नगर में अभिभावकों के बीच नाराजगी की लहर दर्ज कर ली है। हालांकि जिला प्रशासन ने कुछ स्कूलों पर फीस मनमानी पर जुर्माना लगाया है, लेकिन समस्या के व्यापक हल का अभाव है, जबकि RTE एडमिशन में अवैध प्रथाएं जारी हैं। स्थानीय अभिभावक संघों के अनुसार, अब भी प्रत्येक वर्ष 15-20 फीस बढ़ाने वाले निजी विद्यालयों के खिलाफ शिकायतें आ रही हैं। एक अहम उल्लेखनीय कार्रवाई में जिला शुल्क नियामक समिति (DFRC) ने 66 स्कूलों पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया है, लेकिन यह कदम “उदाहरण बनाने वाला” है। एक शिक्षा विशेषज्ञ के बयान के मुताबिक, “यह समाधान तात्कालिक है, मौजूदा व्यवस्था में बैंक के जरिए धन लेनदेन की अनुमति देने के कारण फीस वसूली में पारदर्शिता नहीं है।”
RTE एडमिशन में आनाकानी
शिक्षा के अधिकार के तहत मिलने वाले तालमेल एडमिशन में अव्यवस्था की ओर हर बार गैरी के अभिभावक उठे। स्कूलों में गरीब बच्चों के एडमिशन के लिए ‘आवेदन नोटिस लौटो’ या ‘फॉर्म अमान्य’ कर दिए जाते हैं। जिला शिक्षा अधिकारी ने बताया कि “RTE के तहत एडमिशन प्रक्रिया प्रक्रियागत है, हमारे पास शिकायतों की जांच करने की शक्ति नहीं है।” इसे लेकर प्रतिनिधि मंडलों ने लॉबिंग की, लेकिन समाधान को छोड़ दिया है।
अभिभावकों का असंतोष बढ़ा
सोशल मीडिया पर पर हेशटैग #स्कूलमनमानी और अखबारों में शिकायतें प्रकाशित होने के बावजूद प्रशासन बार-बार अपनी उत्तरदायित्व ज़िम्मेदारी से मुक्त दिख रहा है। नोएडा अभिभावक-शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने कहा, “हमने पांच बार विरोध जताया, लेकिन जवाब जुर्माना ही किसी दो-चार स्कूलों पर है।” उत्तर प्रदेश सरकार ने RTE एडमिशन के लिए स्कूलों के अनुदान की दर ₹450/माह (₹5400/वर्ष) तय की है, जिसे कुछ स्कूल बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। समिति ने यह बैठक बुलाई, लेकिन फैसला अटकल में है।

निजी अस्पतालों के ‘मुफ्त OPD’ के दावों पर उठे सवाल, जनता शोषण की शिकार
नोएडा में निजी अस्पतालों द्वारा “मुफ्त OPD” की सुविधा उपलब्ध कराने के दावों के बीच जमीनी हकीकत चिंताजनक है। जनता की ओर से लगातार शिकायतें आ रही हैं कि ये अस्पताल न तो वास्तविक मुफ्त सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और न ही रोगियों के लिए यथोचित सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। इस मामले पर अब विशेषज्ञों ने जिला प्रशासन की निष्क्रियता और निजी स्वास्थ्य संस्थानों पर नियंत्रण के अभाव पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
एक बड़ी शिकायत यह है कि कई अस्पताल OPD को बेसमेंट में चला रहे हैं हैरत कि बात ये है कि दिल्ली के एक संसथान के बेसमेंट में बारिश के दिनों में पानी बहरने के बाबजूद जिला प्रशसन इन निजी अस्पतालों के बेसमेंट में चल रही OPD पर कोई संज्ञान लेते नहीं दिखा I
समाजसेवियों के कहना है कि यहां ‘5-स्टार अस्पतालों’ के नाम पर स्थापित प्रभाव ने स्वास्थ्य नियामक ढांचे को कमजोर कर दिया है। कई मामलों में ये संस्थान अपने प्रभाव के जरिए जिला प्रशासन पर भी दबाव डाल रहे हैं। आरोप हैं कि ये अस्पताल मुख्यमंत्री या राज्यपाल स्तर तक पहुंच बनाकर निगरानी से बच रहे हैं, जिसके कारण जिलाधिकारी (DM) भी प्रभावी कार्रवाई से हिचकिचाते नजर आते हैं।
“मुफ्त OPD के नाम पर दिखावा करना और फिर महंगे टेस्ट, गैर-आवश्यक भर्ती व ओवरबिलिंग के माध्यम से आम आदमी का शोषण करना इस निजी अस्पतालों में आम बात है जिसे कानूनी और नैतिक दोनों ही तोर पर गलत कहा जा सकता है
लोगो का यह भी मानना है कि जब तक निजी स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही स्थापित नहीं होगी, सामान्य नागरिकों को सस्ती, पारदर्शी और गुणवत्तापूर्ण देखभाल उपलब्ध कराना संभव नहीं होगा। अब आम जनता जिलाधिकारी से सीधे हस्तक्षेप की उम्मीद कर रही है।
प्रदूषण रोकथाम पर ठहराव: नोएडा‑गौतम बुद्ध नगर में नीति‑अभाव की जड़ें
नोएडा, जो गौतम बुद्ध नगर (GBN) का प्रमुख आर्थिक केंद्र है, यहाँ वायु‑प्रदूषण की दर लगातार राष्ट्रीय मानकों को पार कर रही है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के 5‑महीने के “स्मॉग‑सीजन” में औसत पीएम 2.5 स्तर 180 µg/m³ तक पहुँच जाता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफ़ारिश 10 µg/m³ है। इस बढ़ते संकट के पीछे तीन प्रमुख औद्योगिक प्राधिकरण के बीच जिला प्रशसन के साथ समन्वय की है, जिसके कारण इनकी कार्रवाई आम जनजीवन में महसूस नहीं होती।
औद्योगिक प्राधिकरण एक्केट 1976 के कारण , जिला प्रशासन को इन प्राधिकरणों पर “लगाम” लगाने की अधिकारिक शक्ति नहीं दी गई है। औद्योगिक प्राधिकरणों को “आर्थिक शोरूम” के रूप में वर्गीकृत किया जा रहा है, जहाँ विकास को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि पर्यावरणीय अनुपालन को वैकल्पिक माना जाता है। साथ ही दिल्ली सरकार के स्टेटस कोड और भारतीय पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA) के तहत निर्धारित मानदंडों को NCR में लागू करने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।
नीति‑अभाव के कारण
- प्राधिकरणों का स्वायत्तता – औद्योगिक प्राधिकरणों को स्वतंत्र बोर्ड के रूप में स्थापित किया गया है, जिनके पास वित्तीय एवं नियामक अधिकार अधिक हैं, जबकि स्थानीय स्वच्छता एजेंसियों को केवल “सलाहकार” माना जाता है।
- डेटा‑प्रकाशन में कमी – सार्वजनिक रूप से वास्तविक समय वायु‑गुणवत्ता डेटा का अभाव, जिससे नागरिकों को मुद्दे की गंभीरता समझ में नहीं आती।
प्रस्तावित समाधान
- एकीकृत नियामक मंच – एक “NCR पर्यावरणीय समन्वय समिति” का गठन, जिसमें जिला प्रशासक, औद्योगिक प्राधिकरण, और राज्य‑सेंट्रल पर्यावरण विभाग के प्रतिनिधि शामिल हों।
- डेटा‑साझाकरण पोर्टल – रियल‑टाइम एपीएम (Air Pollution Monitoring) डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना, जिससे नागरिक जागरूक हों और दबाव बन सके।
- कड़े प्रतिबंध और प्रोत्साहन – 2025 तक सभी उद्योगों को ISO‑14001 प्रमाणन अनिवार्य करने के साथ‑साथ, स्वच्छ तकनीक अपनाने वाले इकाइयों को वित्तीय सब्सिडी देना।
नोएडा‑GBN के प्रदूषण संकट का मूल कारण नियामक ढाँचे की विखंडितता है, जो औद्योगिक विकास को पर्यावरणीय संरक्षण से अलग करती है। यदि जिला प्रशासन को प्राधिकरणों पर प्रभावी लगाम लगाने का अधिकार नहीं दिया गया, तो वायु‑गुणवत्ता सुधार के किसी भी दीर्घकालिक प्रयास की सफलता अत्यधिक सीमित रहेगी। पेशेवर वर्ग, नीति‑निर्माता और नागरिक समाज को मिलकर एक समग्र, डेटा‑आधारित और अधिकारिकता‑सशक्त मॉडल अपनाना आवश्यक है—ताकि NCR की “स्मॉग‑सीजन” को केवल एक वार्षिक घटना नहीं, बल्कि स्थायी स्वास्थ्य जोखिम बनना बंद कर सके।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट में नया रजिस्ट्री कार्यालय: कागजो में राहत की किरण, लेकिन भूमि पर क्यों नहीं?
ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लाखों निवासियों और रियल एस्टेट निवेशकों के लिए लंबे समय से लंबित मांग पर इस वर्ष भी कागजों में कार्यवाही के बाबजूद कोई प्रगति नहीं दिख रही है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट, जहां आबादी लगभग 7 लाख के करीब पहुंच चुकी है, एक विकासशील हब के रूप में उभरा है। फिर भी, अब तक कोई स्थानीय रजिस्ट्री सुविधा उपलब्ध नहीं थी। नतीजतन, निवासी अपने फ्लैट या प्लॉट की रजिस्ट्री के लिए नोएडा या दादरी की यात्राएं करने को मजबूर थे। यह प्रक्रिया न केवल समय लेने वाली थी, बल्कि अक्सर विभागीय देरी और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण भी अटक जाती थी।
फिलहाल, दादरी सब-रजिस्ट्रार कार्यालय(दादरी 2) ग्रेटर नोएडा वेस्ट के मामलों का निपटारा कर रहा है, लेकिन कर्मचारियों की कमी और भारी कामकाज के चलते सेवाएं धीमी हैं। इसी कारण रजिस्ट्री में देरी होती है, जिससे निवासी और डेवलपर दोनों प्रभावित होते हैं। ऐसे में 2025 में क्षेत्र के लिए नया उप-निबंधन कार्यालय (सब-रजिस्ट्रार ऑफिस) किसान चौक और मूर्ति गोलचक्कर के बीच स्थापित किए जाने की तैयारी चल रही है। यह ऑफिस सेक्टर 1-4, 10, 15, 16B, 16C, 17, 20 और टेक जोन क्षेत्रों को कवर करेगा।
एक्सपर्ट विश्लेषण के अनुसार, नए रजिस्ट्री कार्यालय के खुलने से न केवल सामान्य नागरिकों को राहत मिलेगी, बल्कि लंबे समय से अटकी आवासीय परियोजनाओं की कागजी प्रक्रियाएं भी तेज होंगी। इससे रियल एस्टेट क्षेत्र में विश्वास बढ़ेगा और निवेशकों के लिए ग्रेटर नोएडा वेस्ट और आकर्षक बन जाएगा। लेकिन एक बड़ी चिंता यह है कि इस प्रस्तावित कार्यालय के खुलने के लिए लगभग एक साल से अधिक समय बीत चुका है, जबकि शासन स्तर पर मंजूरी तो सवा साल पहले ही आ चुकी थी। अगर यह कार्यालय 2025 के मध्य तक सक्रिय हो जाता है, तो यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होटा। लेकिन फिलहाल 2025 में इसके ना होने से आने वाले वर्ष में भी निवासियों को अभी भी दादरी और नोएडा के चक्कर लगाने पड़ेंगे।
गौतम बुद्ध नगर — 2025: भूमि‑माफिया पर नकेल कसने में जिला प्रशासन असफल
2025 में भी गौतम बुद्ध नगर (GBN) के ज़िला प्रशासन ने भूमि‑माफिया के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में झूठे वादों के पीछे रह गया है। वर्ष‑भर के डेटा और स्थानीय रिपोर्टों से पता चलता है कि न तो स्पष्ट नीति बनायी गयी, न ही माफिया‑प्रभावित अवैध कॉलोनी‑जमीनों पर प्रभावी कारवाई हुई। पिछले पाँच वर्षों में GBN के गाँवों में लगभग 1,800 हेक्टेयर ज़मीनी टुकड़े अवैध बस्तियों में बदल गये।
इन बस्ती‑क्लस्टरों में अक्सर बिना प्लॉट‑सर्टिफ़िकेट के घर बनाये गये, जो स्थानीय भूमि‑क़ानून के खिलाफ हैं। इस पुरे प्रकरण में जिला पंचायत कार्यलय की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। आरोप है कि जिला पंचायत कार्यलय ने बीते एक वर्ष में ही न जाने कितने गाँवों में अवैध नक़्शे पास कर दिए जिससे ऐसी कालोनियों को अधिकृत संरक्षण भी गया I सच तो ये है कि जिला प्रशासन के तमाम दावो के बाबजूद “भू‑माफिया की जड़ें स्थानीय राजनीति और सिस्टम में में गहराई से बैठी हुई हैं। जब तक इन्हें राजनीतिक प्रशसनिक छत्र नहीं मिलना बंद नहीं होगा, तब तक कोई भी प्रशासनिक कारवाइयां सतही रहेंगे।
आगे का रास्ता: 2026 में क्या?
2025 की असंतुष्टि भरी यात्रा के बाद, यह आवश्यक है कि ज़िला प्रशासन इन मुद्दों पर सख्त कार्यवाही करने के लिए तेजी से काम करे और शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमाफिया , रजिस्ट्री कार्यालय को लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
अगले एपिसोड में — जिला पंचायत के लक्ष्यों पर विशेष विश्लेषण।
पिछले एपिसोड में — नोएडा प्राधिकरण के लक्ष्यों पर विशेष विश्लेषण।
— ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के लक्ष्यों पर विशेष विश्लेषण।
— यमुना प्राधिकरण के रुके हुए प्रोजेक्ट्स पर विशेष विश्लेषण।



