प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष में प्रदूषण की गंभीर समस्या को देखते हुए दिल्ली एनसीआर में ग्रेप 3 को लागू कर दिया गया । इसके साथ ही प्रत्येक वर्ष की तरह अखबारों में दिल्ली नोएडा ग्रेटर नोएडा गाजियाबाद फरीदाबाद गुड़गांव के शहरो का एक्यूआई 500 और कहीं-कहीं 800 तक भी पहुंचने के समाचार छापे जाने लगे ।
किंतु अन्य वर्षो की तरह “इस बार प्रदूषण का दोष किसको दें” का पेंच फस गया है । सामान्यता हर वर्ष यह प्रदूषण दिवाली के पटाखे से अगले दिन दिखाई देता है । किंतु इस बार पंजाब में तथाकथित अन्नदाताओं द्वारा जलाई गई पराली के चलते प्रदूषण करवा चौथ से अगले दिन ही आ गया है ।
सैटेलाइट इमेज के अनुसार पंजाब में प्रतिदिन 1900 से ज्यादा जगह पर पराली जलाए जाने के संकेत दिखाई दिए वहीं हरियाणा में 40 से 45 जगह पर परली जलाई गई तो उत्तर प्रदेश के भी कुछ जगह पर पराली को जलाए जाने की सूचनाये मिली ।
ऐसे में प्रत्येक वर्ष पटाखे को प्रदूषण का कारण बताकर छाती पीटने वाले विशेषज्ञों की समझ चकरा गई है कि अब वह किस मुंह से अन्नदाताओं को इस प्रदूषण का जिम्मेदार बताएं । एक किसान समर्थक नेता ने एनसीआर खबर से बातचीत में इसको ठंड के कारण घनत्व ज्यादा होना बताया किंतु वह यह नहीं बता सके कि अगर मौसम में बदलाव की वजह से आद्रता और घनत्व बढ़ रहा है तो ऐसे समय पर किसान रूपी स्वयंभू अन्नदाताओं को पराली जलाने की सलाह कौन देता है और उनको रोके जाने से कौन पीछे हटता है?
क्या देश के लिए अन्न उगाने का एहसान इतना बड़ा है कि वह उनकी सांसों पर भी भारी पड़ जाए । क्या अन्न उगाने के एहसान के बदले तथा कथित अन्नदाता रूपी किसान करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खेलने को तैयार हैं क्या इस देश में किसान और मासूमियत का आवरण पहनकर कुछ भी अपराध करने की छूट देनी चाहिए । या फिर प्रदूषण फैलाना देश में अपराध की श्रेणी में ही नही है ।
आखिर यह विमर्श क्यों नहीं खड़ा हो कि इस देश में प्रत्येक वर्ष आने वाले प्रदूषण की समस्या का एक बड़ा कारण पराली जलाने का है और उसको जलाने वाले तथा कथित किस रूपी अन्नदाता है इसके जिम्मेदार हैं और इसको कभी भी गरीबी और मासूमियत की आड़ लेकर नहीं छोड़ा जा सकता है। यह विशुद्ध रूप से किसान रूपी अन्नदाता की व्यावसायिक दो बार फसल लेने की चाहत के अंतर्गत आता है और इसके लिए दिल्ली से लेकर पंजाब तक की सरकारों पर ब्लेम करने की जगह केंद्र सरकार द्वारा कठिन नियम और दंड के प्रावधानों को स्थापित करने की आवश्यकता है ।
किंतु महज 3 वर्ष पूर्व कोरोना जैसी महामारी के समय भी किसान आंदोलन के नाम पर भीड़ जमा कर आम जनता में आतंक फैलाने वाले इन अन्नदाताओं के ठेकेदारों क्षमा कीजिए किसान नेताओं समक्ष घुटने टेकने वाली केंद्र की मोदी सरकार से ऐसी अपेक्षाएं की जानी भी अपने आप में यक्ष प्रश्न हैं।
ऐसे में एक वरिष्ठ पत्रकार का एक डिबेट में यह कहना कि “अब अगर भगवान थोड़ी बारिश कर दे तो ही ज्यादा सही है” उनकी बेबसी को दर्शाता है । जहां वह चाह कर भी किसानों के गलत को गलत नही कहना चाहते और चाहते है कि बस भगवान किसी तरीके से इस समस्या से निकाल दे, और कमोवेश प्रत्येक वर्ष की भांति उनकी ही तरह सरकारे भी यही सोच कर 10 से 15 दिन निकाल देती हैं और फिर से हम इन बातों को अगले वर्ष तक के लिए किनारे रख देते हैं प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारों और आम जनता के अधिकारों और कर्तव्यों पर आपका क्या कहना है आप हमें कमेंट बॉक्स में कह सकते हैं