आशु भटनागर। दुर्गा सप्तशती के पांचवें अध्याय में लिखा है कि शुंभ और निशुंभ नामक दो राक्षसों ने देवताओं के सभी अधिकार छीनकर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। तब देवताओं की स्तुति पर माता पार्वती के शरीर से अंबिका देवी प्रकट हुई और उन्होंने शुंभ निशुंभ और उसके धूम लोचन जैसे तमाम दैत्य साथियों का वध कर दिया और जो बचे थे वो पाताल चले गए। शुंभ निशुंभ के वध का एक बड़ा कारण यह भी था कि वह महिलाओं को बेहद कमजोर समझता था और हिमालय पर बैठी मां अंबिका को भी अपने पास आने का प्रस्ताव दे दिए था ।
इस पूरी कथा की समानता एक बार फिर से गौतम बुद्ध नगर में खुली पार्किंग में एक महिला के बलात्कार के आरोप से फंसे स्क्रैप माफिया रवि काना की थाईलैंड से गिरफ्तारी करने वाली गौतम बुद्ध नगर की लेडी सिंघम के नाम से प्रसिद्ध कमिश्नर लक्ष्मी सिंह से स्वत स्थापित हो जाती है । जो आजकल इसी केस में रवि काना की अनुपस्थिति में उसके गिरोह के लिए पत्रकारिता की आड़ में उगाही और संचालन कर रहे एक पत्रकार पंकज पाराशर ओर उसके कई साथियों की गिरफ्तारी के कारण फिर से चर्चा में है।
कदाचित रवि काना के बाद उसके गिरोह के संचालन और उगाही के लिए एक पत्रकार के नाम आने के बाबजूद एक खास पक्ष द्वारा इसे महज पत्रकारिता पर पुलिस की सख्त कार्यवाही से जोड़ा जाने लगा, पर क्या यही सच है ? क्या पंकज पाराशर सिर्फ पुलिस के खिलाफ समाचार छापने के कारण या कमिश्नर लक्ष्मी सिंह की व्यक्तिगत रंजिश के कारण गिरफ्तार किया गया, ऐसे तमाम सवाल न सिर्फ इस शहर की फिजाओं में बीते 20 दिन से गूंज रहे हैं बल्कि इसकी आड़ में कई नेता अपने मनमाफिक समाचार न छापने वाले पत्रकारों को समझा या धमका भी रहे है ।
कई ऐसे सफेद पोश जो कुछ समय पहले तक रवि काना और उसके परिवार से अपनी राजनीति लिए सहयोग मांगते दिखाई देते थे, वो आज पंकज के नाम से पत्रकारों को संभल कर चलने की हिदायत दे रहे हैं । ऐसे में गुप्त नवरात्रि महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा के बाद यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि कहानी कहां से शुरू हुई और जिले में स्क्रैप माफिया के संचालन कर रहे रवि काना और उसके पीछे खड़े सफेदपोश नेताओं, पत्रकारों के सिंडिकेट का काला सच क्या है ? ओर पत्रकारों को इससे क्यों व्यथित नहीं होना चाहिए ।
नोएडा में पुलिस कमिश्नरेट की स्थापना और रवि काना स्क्रैप माफिया का उदय
जनवरी 2020 में जब गौतम बुध नगर के ग्रेटर नोएडा वेस्ट के एक आम आदमी गौरव चंदेल की मृत्यु से उबल रहा था, तब यहां पुलिस कमिश्नररेट की स्थापना की गई। नया कमिश्नरेट बना तो यहां चल रहे सरिया चोरी और स्क्रैप के असंगठित अपराध को पुलिस, नेता, पत्रकार के समूह ने संगठित रूप दे दिया और उस संगठित रूप का चेहरा स्क्रैप माफिया के तौर पर रवि काना सामने आया ।
गौतम बुध नगर में सरिया चोरी और स्क्रैप माफिया के काले धंधे का खेल कोई नया नहीं है । तीन दशकों से ज्यादा समय से इसमें कई गिरोह पहले भी काम करते रहे हैं, उन्हें सत्ता और विपक्ष के तमाम राजनेताओं का संरक्षण भी रहा है और अपनी अपनी सरकारों में अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रश्रय भी दिया जाता रहा है, बाकियों को जेल भेजा जाता रहा है ।
पुलिस अधिकारियों, राजनेताओं और पत्रकारों के संरक्षण में 2 साल में ही ये कार्टेल कई हजार करोड़ के अवैध उगाही के तंत्र का सिरमौर बन गया । सत्ता के संरक्षण में स्क्रैप माफिया के तौर पर रवि काना की ठसक और हनक बढ़ी तो उसने अपराध के साथ दबंगई भी शुरू कर दी और वो अपराध के साथ साथ खुले आम महिलाओं के उत्पीड़न तक पहुंच गया । और फिर एक दिन नोएडा के एक प्रसिद्ध मॉल की खुली पार्किंग में दलित लड़की के साथ बलात्कार के आरोप में रवि काना के खिलाफ शिकायत लिखवाई गई ।
यह सब कुछ सही चलता भी रहता अगर 28 नवंबर 2022 को जिले को दूसरे पुलिस कमिश्नर के तौर पर सख्त और ईमानदार पुलिस ऑफिसर के रूप में लक्ष्मी सिंह का स्थानांतरण यहां नहीं हुआ होता, इस सिंडिकेट ने उनको भी इस खेल में शामिल होने का निमंत्रण ना दे दिया होता और उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार न कर दिया होता ।
दुर्गा सप्तशती के छठे अध्याय में शुभ निशुंभ के दूत द्वारा जब देवी को शुभ निशुंभ किसी एक का वरण करने का निमंत्रण दिया जाता है तो देवी उसको विनम्र भाव से कहती हैं कि उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई है कि जो उन्हें जीत लेगा वही उनका स्वामी होगा ऐसे में शुंभ और निशुंभ से कहो कि देर ना करें उनसे युद्ध करने को तैयार हो जाए ।
दिसंबर 2023 में एक दलित युवती द्वारा जून के महीने में हुई वारदात की शिकायत दर्ज कराई गई और 1 जनवरी 2024 को रवि काना उसके 16 साथियों पर गैंगस्टर दर्ज कर लिया गया । कहानी समाप्त हो ही गई थी किंतु रवि काना के समर्थन में जिले के कई सफेदपोश, राजनेता, पत्रकार के एक समूह ने कमिश्नर लक्ष्मी सिंह के विरुद्ध अघोषित मोर्चा खोल दिया । छोटे-छोटे अपराधों को बड़ा बताकर उनके तुलना पूर्व के कमिश्नर के कार्यकाल से कराई जाने लगी और उन्हें अक्षम करार दिया जाने लगा। बात यही नहीं रूकी, लखनऊ दरबार तक लक्ष्मी सिंह के स्थानांतरण की कोशिश की जाने लगी ।
इन सब साजिशों, धमकियों को नजरअंदाज कर लक्ष्मी सिंह ने रवि काना गैंग पर कार्यवाही और तेज कर दी । लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शहर की फिजाओं में चल रही अफवाहों में रवि काना के साथ 40 ऐसे नाम सामने आने लगे जो रवि काना के सिंडिकेट को चलाने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से न सिर्फ सहयोग कर रहे थे बल्कि उसमें हिस्सा भी ले रहे थे । इनमें राजनेता पुलिस के कई अधिकारी और पत्रकारों का एक समूह शामिल था ।
अप्रैल 2024 में हुई इस अफवाह के बाद जिले में हड़कंप मच गया, कई राजनेताओं ने रवि काना और उसके परिवार से अपने संबंधों तक से इनकार कर दिया तो कई प्रतिष्ठत समाचार पत्रों ने अपने पत्रकार और ब्यूरो चीफ तक हटा दिए । इस सबसे अलग पुलिस अपनी कार्यवाही करती रही और रवि काना के खातों में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग की आंच नोएडा मीडिया क्लब के अध्यक्ष और पत्रकार पंकज पाराशर तक पहुंचने लगी। पुलिस का दावा है कि अगले 9 महीने पुलिस ने पंकज पराशर से संबंधित ऐसे 18 खातों को सीज कराया जिनमें लगभग 25 करोड़ का लेनदेन हुआ था । खातों में एक साथ दो करोड रुपए तक की रकम आती थी और फिर यह खाता ईएनएक्टिव हो जाते थे फिर कुछ समय बाद दिन से लेनदेन शुरू होता था।
यह बैंक अकाउंट पंकज पाराशर और उससे जुड़े कई साथियों के थे। मामला इससे भी आगे जब पहुंचा जब पुलिस के अनुसार लगभग 160 करोड़ की ट्रेल पुलिस को रवि काना गैंग के साथ जुड़ती दिखाई दी पुलिस सूत्रों का दावा है कि इन पैसों का इंतजाम रवि काना गैंग की जमानत व अन्य कार्यों के लिए किया जाता था । इसके बाद 20 जनवरी 2025 को पुलिस ने पंकज पाराशर, देव शर्मा और अवधेश सिसोदिया को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया और उसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया ।
पंकज पाराशर की गिरफ्तारी के समय नोएडा मीडिया क्लब में नए अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी चल रही थी जिन्हें स्थगित कर दिया गया, पंकज को नोएडा मीडिया क्लब से बर्खास्त कर दिया गया और पंकज के कार्यकाल के दौरान जोड़े गए पत्रकारों की जांच के नाम पर उसके साथियों से किनारा किए जाने लगा ।
पुलिस सूत्रों की माने तो पंकज ने अपने पास आए पैसों का रूट नोएडा मीडिया क्लब के जरिए भी घुमाया और उसके नवीनीकरण से लेकर कोरोना काल में मारे गए पत्रकारों की याद में बनाए गए स्मृति स्थल में भी उपयोग किया । यद्यपि वो जांच का हिस्सा नहीं है किंतु यदि मीडिया क्लब के मामले में जांच की कोई मांग होगी तब तक उसको भी जांच में शामिल किया जाएगा ।
हालांकि पुलिस के सूत्र पंकज से जुड़े कई समाज सेवी संगठनो पर जांच का इशारा कर रहे हैं । जिनका नाम पंकज के संस्थान से जुड़ा था या फिर जिनकी स्थापना में पंकज का नाम शामिल है। दावा है एक प्रतिशत कमीशन के लालच में ऐसे कई समाजसेवी भी उसके लिए अपने एनजीओ में रुपयों का रोटेशन कर रहे थे । तो कई ने उसके साथ ही मिलकर एनजीओ की स्थापना भी की ।
पर बात घूम कर वहीं आ जाती है कि इस पूरे प्रकरण में क्या सिर्फ एक पत्रकार अपने पत्रकारिता के कारण जेल में गया है जिनकी बातें कई सफेदपोश इन दोनों पत्रकारों से कर रहे हैं । या फिर रवि काना प्रकरण में पुलिस जांच और पंकज पराशर का जेल जाना सिर्फ ट्रेलर है, पूरी फिल्म अभी बाकी है । पुलिस सूत्रों की माने तो खेल रवि काना से शुरू हुआ है किंतु पंकज से समाप्त नहीं हुआ है। पंकज महज उसकी एक कड़ी मात्र है इस खेल में जांच की आंच पत्रकार के बाद कई समाजसेवियों, एनजीओ और राजनेताओं तक जाने की पूर्ण संभावना है जिसके लिए धैर्य रखना आवश्यक है ।