राजेश बैरागी । सुनते हैं कि राजशाही के जमाने में राजाओं द्वारा अपने चारण,भाट और गुण गाने वालों को विशेष अवसरों पर उपहार दिये जाते थे। ये सभी लोग उपहार लेने के लिए राजा के समक्ष उपस्थित होते थे।
आज राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस है। मैं सुबह से इस दिवस की प्रासंगिकता पर दीपावली के आलोक में विचार कर रहा हूं। इस दीपावली पर भी पूर्व की भांति प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की ओर से पत्रकारों को उपहार प्रदान किए गए। अगले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर संभावित प्रत्याशियों ने पत्रकारों के प्रति कुछ अधिक उदारता रखी।
उपहार जाकर देना और बुलाकर देने में कोई विशेष अंतर नहीं है।यह संबंधों की सरलता और तरलता पर निर्भर करता है। यहां तक तो ठीक है। परंतु पत्रकारों को उपहार देकर उन्हीं को उपहार देने की विज्ञप्ति थमा देना कितना उचित है?
परंतु दिलचस्प तो यह है कि उपहार लेने वाले पत्रकार ऐसी विज्ञप्ति को समाचार बनाकर प्रकाशित भी कर दें तो इस पत्रकारिता दिवस की क्या प्रासंगिकता है।हम लोकतंत्र के जिस संक्रमण काल से गुजर रहे हैं, उसमें पत्रकारों की नैतिकता सबसे अधिक चुनौतियों का सामना कर रही है। घर परिवार और अपनी रक्षा करते हुए पत्रकारिता को अक्षुण्ण रखना बहुत बड़ी चुनौती है। परंतु उपहार लेने का समाचार प्रकाशित करने की कोई बाध्यता नहीं होती है। राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस का एक संदेश यह भी है।