आशु भटनागर । लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कांग्रेस सरकार के समय कहा था “पावर्टी इज स्टेट ऑफ माइंड” (poverty is a state of mind) यानी निर्धनता परिस्थितियों से ज्यादा आपके विचारों से आपको ज्यादा एहसास होती है । इस विचार पर बहुत बवाल मचा और गरीबों के प्रति राहुल गांधी की सोच पर काफी आलोचना हुई । तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा ने उन्हें गरीब विरोधी कहा ।
खैर बात आई गई हो गई है किंतु बहुत समय बाद आज मध्यम वर्ग की हालत कुछ ऐसी ही दिखाई देने लगी है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में फ्लैट के लिए लड़ाई लड़ते हुए फ्लैट बायर्स की स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि अगर यहां कुछ अच्छा भी हो तो उसमें भी उन्हें रोष प्रकट करने का कोई ना कोई मुद्दा मिल जाता है । इन मुद्दों के पीछे बीते 15 साल से सरकारों को कोसने के अलावा अपने आप को बेचारा समझने और हर बात को सोशल मीडिया पर या मीडिया के जरिए प्रकट कर चर्चा में बने रहने की एक अघोषित चाहत भी होती है तो उनके साथ-साथ कई बार कई लोग दबाव और ब्लैकमेलिंग का खेल भी कर जाते है ।
नोएडा ग्रेटर नोएडा के लोगों के लिए पर्यावरण से लेकर सड़कों के जाम तक ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिन पर 12 महीने 24 घंटे सोशल मीडिया पर लिखकर खेल खेला जा सकता है । सड़क के जाम का मुद्दा ऐसा है जिसमें आप कभी भी शाम को किसी खास चौराहे पर खड़े होकर गाड़ियों के फोटो लेकर उसको जाम लिखकर अपने मन की भड़ास निकाल सकते हैं या फिर प्रशासन, प्राधिकरण को कोस सकते हैं । ऐसा ही एक मुद्दा 25 तारीख से नया शुरू हुआ है जब ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने शाहबेरी होकर गाजियाबाद जाने वाले मार्ग के चौड़ीकरण की योजना तैयार की और लगातार नोटिस और वैकल्पिक मार्गो के बोर्ड लगाने के बाद 25 मार्च को जब कार्य शुरू किया तो उसके फौरन बाद शहर के कुछ विवाद प्रेमी समाजसेवी लोग शाहबेरी के कारण होने वाली परेशानियों का मामला लेकर सोशल मीडिया पर शुरू हो गए । कई दिन से गौर सिटी चौराहे पर जाम के फोटोग्राफ्स और वीडियो ना मिल पाने के कारण परेशान बैठी जनता को अचानक से याद आया कि आखिर प्राधिकरण यह डेढ़ मीटर सड़क चौड़ी करने को क्यों आ गया है इसके चलते अगले 20 दिन तक जाम के मारे लोगों को 10 मिनट की दूरी 2 घंटे में तय करनी पड़ेगी किंतु सोशल मीडिया पर लिख रहे इन लोगों से कोई यह नहीं पूछ रहा की इसी शाहबेरी पर लगने वाले जाम की फोटो डालकर प्रतिदिन 2 घंटे जाम का रोना रोने वाले लोगों को आज यह दूरी 10 मिनट की कैसे नजर आने लगी है । और अगर किसी संकरी सड़क को चौड़ा करना आवश्यक है तो उसके लिए नागरिकों के सहयोग की जगह नागरिकों द्वारा प्रशासन को कटघरे में खड़ा करना क्यों जरूरी है।
विकास की राह देख रहे नागरिकों को विकास के लिए कुछ दिन होने वाली समस्याओं पर शोर मचाने की जगह सहयोग करना भी जरूरी है । ऐसे में हर बात पर कमी निकालने की आदत उन पर भी प्रश्न खड़े करते हैं। फिल्म "बंटी और बबली" में एसीपी दशरथ सिंह बने अमिताभ बच्चन ठगी के काम में पकड़े गए एक बैंड वाले से कहते हैं "बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो मगर उससे फायदा होता हो तो फौरन ले लो, मारूंगा यही, सच बता खेल क्या है"
पूरे प्रकरण का एक पहलू यह भी है कि क्या दोनों ही ओर डेढ़ मीटर सड़क चौड़ीकरण के लिए प्राधिकरण जिन दुकानों या लोगों की जमीन ले रहा है, उन लोगों ने इसे सुनियोजित तरीके के विवादों को जन्म दिया ताकि अगर कुछ विवाद बढ़ जाए तो यह मामला रुक जाए और यह शहर विवादों की आड़ में ऐसे ही दबाव और ब्लैकमेलिंग को अंजाम देने का अभ्यस्त हो चुका है । सब लोग जानते हैं कि शाहबेरी और पतवारी दो ऐसे गांव थे जिन्होंने अधिग्रहण के खिलाफ जाकर कोर्ट में यह कहा कि यह हमारी कृषि भूमि है और यहां पर हमें प्राधिकरण को अपनी जमीन नहीं देना है। कोर्ट ने भी उनकी बात मानते हुए दोनों ही गांव के अधिग्रहण रद्द कर दिए। जिसके कारण 15 साल पहले बनने वाले सिक्स लेन सड़क टू लेन में सिमट कर रह गई और दोनों ही तरफ कथित तौर पर कृषि भूमि का दावा करने वाले लोगों ने बड़े-बड़े मार्केट खड़े कर दिए बिल्डर फ्लोर खड़े कर दिए और अब सड़क के चौड़ीकरण की आड़ में सोशल मीडिया पर विवादों को जन्म दिया जा रहा है ।

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यह महज एक किस्सा मात्र है ऐसे समाज सेवी नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जगह-जगह इसलिए विवाद करने में व्यस्त या मस्त रहते हैं ताकि उन कामों को या तो रोका जा सके या फिर उसके नाम पर ठेका लेने वाले कंपनियों या प्राधिकरण से कुछ वसूली की जा सके । सेक्टर 123 में वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने का मामला रहा हो या फिर नोएडा के 123, 117 सेक्टर में शहर के पेड़ों की कटाई से होने वाले कंपोस्ट प्लांट का विरोध रहा हो सब के पीछे एक ही कहानी है ।
एक मीडिया पोर्टल की माने तो ग्रेटर नोएडा में तो एक कथित समाजसेवी ने शहर में जगह-जगह समस्याओं के वीडियो डालकर₹10000 और एक शराब की बोतल लेने में महारत हासिल कर ली है । यह समाज समाजसेवी अक्सर सोशल मीडिया और प्राधिकरण के व्हाट्सएप ग्रुप में जगह-जगह कामों के अधूरेपन के वीडियो डालते हैं और बदले में ठेकेदार द्वारा₹10000 और एक शराब की बोतल लेने के बाद इस काम को सही बताने का भी वीडियो डाल देते है ।
बीते दिनों रवि काना प्रकरण में रंगदारी के मामले में फंसे एक पत्रकार के साथ गौतम बुध नगर में विकास के दावे करने वाले कई एक्टिव समाजसेवियों, आरटीआई एक्टिविस्टों की मिलीभगत की सूचनाये पुलिस जांच में सामने आ गई थी। ऐसे में शहर में समाज सेवा की आड़ में चल रहे इस गोरख धंधे पर पुलिस प्रशासन की नजर कब पड़ेगी, कब ऐसे सफेदपोश लोगों पर गौतम बुद्ध नगर पुलिस अपना शिकंजा कसेगी यह प्रश्न उत्तर प्रदेश सरकार के 8 वर्ष होने पर अब उठने लगे है ।