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उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद के लिए मंथन जारी, ओबीसी या दलित चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उत्तर प्रदेश में अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर अंतिम सहमति बनाने की प्रक्रिया में तेजी से जुटी हुई है। पार्टी का लक्ष्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी पांच देशों की आठ दिवसीय विदेश यात्रा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक से पहले इस महत्वपूर्ण निर्णय को अंतिम रूप दे दिया जाए। हालांकि, राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम को लेकर अभी तक संघ और भाजपा के बीच सहमति नहीं बन पाई है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर सहमति बनाने की कोशिशें तेज हो गई हैं।

पिछले दो दिनों से पार्टी नेतृत्व विभिन्न राज्यों के लिए नए अध्यक्षों के नामों को अंतिम रूप देने में व्यस्त है, और उत्तर प्रदेश के मामले में गहन विचार-विमर्श जारी है। सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में भाजपा की रणनीति प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) या दलित समुदाय से किसी चेहरे को आगे लाने की है। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में पार्टी को इन वर्गों के बीच अपेक्षित समर्थन नहीं मिला था, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी अब इन दोनों सामाजिक समूहों के नेताओं पर गंभीरता से विचार कर रही है। पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए यह निर्णय लिया जा सकता है कि प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी ओबीसी या दलित नेता को नियुक्त किया जाए।

दलित समुदाय से संभावित चेहरे

दलित समुदाय से जिन नामों पर पार्टी में चर्चा हो रही है, उनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रमाशंकर कठेरिया और सांसद विद्यासागर सोनकर प्रमुख हैं। रमाशंकर कठेरिया आगरा से सांसद रह चुके हैं और दलित समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। वहीं, विद्यासागर सोनकर भी दलित समुदाय से आते हैं और पार्टी में उनकी छवि एक समर्पित कार्यकर्ता की रही है। दोनों ही नेताओं के नामों पर पार्टी गंभीरता से विचार कर रही है, लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी नेतृत्व की सहमति पर निर्भर करेगा।

ओबीसी वर्ग से संभावित चेहरे

ओबीसी वर्ग से कई नेता इस पद के लिए दावेदार माने जा रहे हैं। इनमें लोध बिरादरी से धर्मपाल सिंह (प्रदेश सरकार में मंत्री), केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, सांसद बाबूराम निषाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का नाम प्रमुखता से चर्चा में है। धर्मपाल सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं और लोध समुदाय में उनकी अच्छी पैठ है। बीएल वर्मा वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री हैं और उनका भी ओबीसी समुदाय में अच्छा प्रभाव माना जाता है। बाबूराम निषाद भी ओबीसी समुदाय से आते हैं और पार्टी में उनकी छवि एक सक्रिय और समर्पित नेता की है। साध्वी निरंजन ज्योति पूर्व में केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं और ओबीसी समुदाय में उनकी अच्छी पकड़ है। इन सभी नेताओं के नामों पर पार्टी विचार कर रही है, लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी के रणनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही लिया जाएगा।

ब्राह्मण चेहरे पर भी चर्चा

हालांकि पार्टी का मुख्य ध्यान ओबीसी या दलित चेहरे पर है, लेकिन ब्राह्मण समुदाय से पूर्व सांसद और असम प्रभारी हरीश द्विवेदी के नाम की भी चर्चाएं चल रही हैं। हरीश द्विवेदी पार्टी के अनुभवी नेता हैं और उन्होंने असम में पार्टी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ब्राह्मण समुदाय में भी उनकी अच्छी छवि है, लेकिन पार्टी का मुख्य जोर ओबीसी या दलित समुदाय के नेता को आगे लाने पर होने के कारण उनकी दावेदारी थोड़ी कमजोर मानी जा रही है।

केंद्रीय नेतृत्व की राय और अंतिम फैसला

केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश संगठन से भी इस विषय पर राय ली है और जल्द ही आखिरी फैसला लेने की उम्मीद है। प्रदेश संगठन ने भी अपने स्तर पर विभिन्न नेताओं के नामों पर विचार किया है और अपनी राय केंद्रीय नेतृत्व को भेज दी है। अब केंद्रीय नेतृत्व को प्रदेश संगठन की राय और अपनी रणनीतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अंतिम निर्णय लेना है।

हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा था। पार्टी को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, और इसका मुख्य कारण ओबीसी और दलित समुदायों का अपेक्षित समर्थन नहीं मिलना माना जा रहा है। पार्टी नेतृत्व इस बात को लेकर गंभीर है और प्रदेश अध्यक्ष पद पर ओबीसी या दलित चेहरे को नियुक्त करके इन समुदायों को साधने की कोशिश कर रही है।

भाजपा की रणनीति प्रदेश अध्यक्ष पद पर ऐसे नेता को नियुक्त करने की है जो पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट रख सके और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी को मजबूत कर सके। पार्टी नेतृत्व ऐसे नेता की तलाश में है जो संगठन को कुशलतापूर्वक चला सके और सभी वर्गों के लोगों को साथ लेकर चल सके।

प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कई नामों पर चर्चा चल रही है, लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी नेतृत्व को लेना है। सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि पार्टी नेतृत्व किस चेहरे पर मुहर लगाता है। जो भी नेता प्रदेश अध्यक्ष बनेगा, उसके सामने पार्टी को मजबूत करने और आगामी चुनावों में जीत दिलाने की बड़ी चुनौती होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस महत्वपूर्ण पद के लिए किसे चुनती है और नया प्रदेश अध्यक्ष पार्टी को किस दिशा में ले जाता है।

ऐसे में उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद का फैसला न केवल पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि राज्य की राजनीति पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें भी इस फैसले पर टिकी हुई हैं, और वे इस बात का विश्लेषण कर रहे हैं कि यह निर्णय आगामी चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन को कैसे प्रभावित करेगा।

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NCRKhabar LucknowDesk

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