आशु भटनागर। क्या उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री दर्पण डैश बोर्ड में लगातार अव्वल रहने वाला नोएडा पुलिस कमिश्नरेट भूमाफियाओं-किसान नेताओं के गठजोड़ पर बेबस दिखाई दे रहा है ? लगभग 3 वर्ष पूर्व नोएडा कमिश्नरेट की कमान संभालने वाली ओर बड़े से बड़े माफियाओं की कमर तोड़ने वाली कमिश्नर लक्ष्मी सिंह क्यों अब किसान नेताओं के आगे मजबूत नहीं दिखाई दे रही है । इस प्रश्न पर चर्चा से पहले यह जानना आवश्यक हैं कि क्या इन कथित किसान नेताओं ने जिले में नया माफिया राज स्थापित कर लिया है ? क्या राजनैतिक संरक्षण में कथित किसान नेताओं ने कानून तोड़ने की सभी मर्यादाएं पार कर दी है और अब वो यहां भूमाफियाओं के संरक्षक बन कर न सिर्फ प्राधिकरण पुलिस प्रशासन से टकरा रहे बल्कि उनके दबाव या षडयंत्र का शिकार होकर नोएडा पुलिस कमिश्नरेट स्वयं अपने ही पुलिस कर्मियों और प्राधिकरण के अधिकारियों के विरुद्ध मुकदमे लिखने को विवश हो गया है ।
ताजा मामला बीते सप्ताह नोएडा के बरोला, सलारपुर में प्राधिकरण द्वारा 39 भू माफियाओं की लिस्ट निकाले जाने के बाद उनके अवैध निर्माण को गिराने के लिए गई वाली टीम के ऊपर के समक्ष किसान नेताओं द्वारा हंगामा और विरोध का है। वहीं एक अन्य प्रकरण में किसान नेताओं के हंगामे पर प्राधिकरण और पुलिस की टीम ने विरोध किया और विरोध में जब पुलिस ने हल्का लाठी चार्ज किया तो किसान नेताओं के दबाव में प्राधिकरण के कर्मियों के विरुद्ध मुकदमा लिखवाया गया ओर दो पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कार्यवाही कर दी । प्राधिकरण के खिलाफ इन दोनों ही प्रकरण में नोएडा के कई स्थापित कथित किसान नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं और उनके भ्रष्टाचार से लेकर अवैध भूमाफियाओं के साथ संबंधों की चर्चाएं हो रही है।

ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या गौतम बुद्ध नगर जिले में कानून व्यवस्था अब मजाक बन रही है या फिर किसान नेताओं ने भीड़ इकट्ठी करके सरकार और पुलिस प्रशासन को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया है। आपको बता दें जिन 39 भू माफिया के लिस्ट नोएडा प्राधिकरण ने जारी की थी उनको 15 दिन के अंदर उनके अवैध निर्माण स्वत गिराने की चेतावनी भी दी थी । किंतु भू माफियाओं ने उन अवैध निर्माण को गिराया तो नहीं उल्टे उनको गिराने के लिए आए प्राधिकरण के कर्मियों के विरुद्ध हिंसात्मक विरोध करके यह जाता दिया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही कानून व्यवस्था के कितने भी दावे करें किंतु भू माफिया के समक्ष सरकार नतमस्तक है ।
नोएडा में किसान नेताओं की मठाधीशी बीते कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। आरोप है कि यहां मौजूद तीनों प्राधिकरणों के समक्ष कथित किसान नेता अक्सर आंदोलन की आड़ में 5,6, 7% के प्लॉटों की सौदेबाजी से लेकर तमाम अवैध कामों के को संरक्षण देते बताए जाते हैं। नोएडा की चर्चाओं में यह भी कहा जाता है कि जैसे गंगाधर ही शक्तिमान था वैसे ही प्रॉपर्टी डीलर ही आजकल कथित किसान नेता है।
बीते वर्ष जब किसान नेताओं के हौसले बहुत बढ़ गए थे और उन्होंने दिल्ली कूच के नाम पर अति कर दी थी तो मुख्यमंत्री के आदेश के बाद पुलिस प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए आधी रात को ही किसान नेताओं को अलग-अलग जेल में बंद किया उसके बाद तब के मठाधीश तो शांत हो गए किंतु नए मठाधीशों की दुकानें आरम्भ हो गई। वही मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद ही पुलिस की सख्त कार्यवाही से यह भी आभास हुआ कि कहीं ना कहीं राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमजोरी का फायदा यह किसान नेता उठा रहे हैं क्योंकि हर आंदोलन और विरोध प्रदर्शन के लिए मुख्यमंत्री के आदेश आने संभव नहीं है।
रोचक तथ्य यह भी है कि दिन-रात प्राधिकरण को भ्रष्टाचारी बताने वाले नेता किसान नेता या नोएडा के प्रमुख समाजसेवी अक्सर भूमाफियाओं के साथ किसान नेताओं के इस संबंध पर या तो चुप्पी साथ लेते हैं या धीमे स्वर में इसे गरीब जनता की गाड़ी कमाई को बचाने की लड़ाई बताने लगते हैं । पर इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते है कि आखिर किसान नेताओं का इन भूमाफियाओं से क्या संबंध है।

चर्चा है कि अपने पाप छिपाने के लिए नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों को भ्रष्टाचारी बताना आसान टारगेट दिखाई देता है किंतु भूमाफियाओं की किसान नेताओं से क्या सांठगांठ है, यह कोई नहीं बताता है।
यह भी एक कटुसत्य है कि प्राधिकरण और पुलिस दोनों के ही निचले अधिकारियो के साथ भूमाफियाओं के घनिष्ठ संबंध है और अक्सर बड़ी कार्यवाहियों की जानकारी उनको पहले से हो जाती है।
इन सब के बाद दबे स्वर में एक चर्चा यह भी है कि जिलें में कानून व्यवस्था को उच्चतम आयाम देने वाली कमिश्नर लक्ष्मी सिंह को आए लगभग 3 वर्ष पूरे ही होने वाले हैं और जल्द ही उनका स्थानांतरण होना तय है। जिले की फिजाओं में तैर रहे किस्से कहानियों में तो उनके कानपुर या लखनऊ जाने की भविष्यवाणी तक हो रही है । जिसके चलते कई वर्षों से दबी ऐसे लोगों की हिम्मत और महत्वाकांक्षाएं फिर से फलक पर आ गई है और परिणाम स्वरूप अब ऐसे घटनाक्रम हो रहे हैं।
माफियाओं की जगह प्राधिकरण के अधिकारियों और पुलिस कर्मियों पर ही हो रही एफआईआर और सस्पेंशन की कार्यवाही ने न सिर्फ प्राधिकरण के कर्मचारियों का मनोबल गिराया है बल्कि पुलिस कर्मियों भी में भी हलचल मचा दी है । वो सरकारी तंत्र राजनीतिक संरक्षण में माफिया को मिले इस अभयदान के चलते स्वयं को कमज़ोर महसूस कर रहे हैं।प्राधिकरण के लगभग दर्जन भर अधिकारी यहां से ट्रांसफर करने के लिए लखनऊ तक दौड़ भाग में लगे है। हमेशा की तरह पुलिसकर्मी सिर्फ अपनी व्यथा दबे स्वर में कह तो पा रहे हैं मगर साथ ही उसे गुप्त रखने की बातें भी प्रार्थना भी कर रहे है।
ऐसे में किसान नेताओं के अवैध भूमाफियाओं को मिल रहे स्थानीय राजनैतिक संरक्षण के विरुद्ध नोएडा पुलिस कमिश्नरेट क्या कोई सख्त कार्यवाही कर पाएगा, क्या लक्ष्मी सिंह एक बार फिर से नोएडा की जनता को वही विश्वास दिला पाएंगी जिससे लिए उन्हें जाना जाता है यह आने वाला समय बताएगा।


