आशु भटनागर । नवंबर माह को इस बार ‘यातायात माह’ (Traffic Month) के रूप में मनाया जा रहा है। इस अभियान की औपचारिक शुरुआत नोएडा में संयुक्त पुलिस आयुक्त (Joint Commissioner of Police) राजीव नारायण मिश्रा ने की। संयुक्त पुलिस आयुक्त मिश्रा ने बताया कि नोएडा में सड़क सुरक्षा को लेकर कई तकनीकी सुधार किए जा रहे हैं। AI आधारित ट्रैफिक कैमरे, ऑटोमेटेड चालान सिस्टम और स्मार्ट सिग्नलिंग नेटवर्क से ट्रैफिक व्यवस्था को और बेहतर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि “लोगों को केवल जागरूक करने से ही काम नहीं चलेगा, कानून का सख्ती से पालन भी जरूरी है। इसलिए, जो लोग नियम तोड़ेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
यातायात माह अभियान का उद्देश्य आम नागरिकों को सड़क सुरक्षा, ट्रैफिक नियमों के पालन और दुर्घटनाओं की रोकथाम के प्रति जागरूक करना है। जिसके बाद सड़क सुरक्षा सप्ताह के अवसर पर, नोएडा और ग्रेटर नोएडा की यातायात व्यवस्था पर गहन चर्चा शुरू हो गई है। विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि सिर्फ पुलिस की सख्ती या दंडात्मक कार्रवाई से दीर्घकालिक सड़क सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती है। इसके लिए यूरोप के सफल मॉडल, जैसे ‘रेड रूट योजना’ (Red Route System) और सख्त लेन अनुशासन (Lane Discipline) को यहां के मुख्य मार्गों पर लागू करने की आवश्यकता है, साथ ही जन जागरूकता और नागरिकों के व्यक्तिगत व्यवहार में सुधार भी अनिवार्य है।

सख्ती के साथ जन जागरूकता है आवश्यक!
यातायात विशेषज्ञों का मत है कि सड़क सुरक्षा केवल पुलिस की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक पुलिस, प्राधिकरण और प्रशसन के समन्वय के साथ सामूहिक प्रयास होना चाहिए। पुरे शहर के यातायात को सुगम बनाने के लिए प्राधिकरण और पुलिस को सर्वप्रथम व्यवस्था को सही करने पर भी ध्यान देना चाहिए। लोगो में भावना है कि वर्तमान में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे यातायात माह अभियानों में नियमों के उल्लंघन पर सख्ती बरती जा रही है, पुलिस का मुख्य उद्देश्य सिर्फ चलान काटना रह गया हैI जबकि पुलिस को सख्ती की जगह जन जागरूकता, नियमों का पालन और सड़क पर सभी उपयोगकर्ताओं—बच्चों, बुजुर्गों और आम नागरिकों—के व्यवहार में बदलाव लाना भी ज़रूरी है।
नोएडा में पंजावी विकास मंच के चेयरमैंन दीपक विग कहते है कि लोगो को भी ये समझना होगा कि सिर्फ चालान कटवाने से लोगो की से समस्या हल नहीं होगी। बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर सुधार लाना होगा, जैसे कि हेलमेट पहनना, सीट बेल्ट लगाना, ट्रैफिक सिग्नल का ईमानदारी से पालन करना और ड्राइविंग के दौरान मोबाइल का इस्तेमाल न करना। पुलिस, प्राधिकरण, शहरी समस्याओं को समझने वाले बुद्धिजीवियों और आम जनता के बीच समन्वय स्थापित करके ही किसी भी अभियान को सफल बनाया जा सकता है।


मुख्य सड़कों के लिए ‘रेड रूट’ की मांग
भारतीय परिधान निर्यात उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर (एनएईसी) के अध्यक्ष ललित ठुकराल नोएडा और ग्रेटर नोएडा की मुख्य सड़कों पर यातायात को सुचारू और सुरक्षित बनाने के लिए ‘रेड रूट योजना’ लागू करने की पुरजोर मांग करते है। वो कहते है बिना इसके शहर में ई रिक्शा, ऑटो और अनियमित वाहनों के द्वारा अक्सर सडको को घेर लिया जाता है जिससे मुख्य सडको पर न सिर्फ व्यवधान होता है बल्कि दुर्घटनाये भी होती है। यह योजना 1991 में पहली बार लंदन में लागू की गई थी, जहां प्रमुख सड़कों को रेड रूट के रूप में नामित किया जाता है।
हाल ही में 2 माह तक कनाडा घूम तक आये अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के महासचिव अशोक श्रीवास्तव भी इसका समर्थन करते हुए कहते हैं है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा के व्यस्ततम चौराहों और मुख्य मार्गों पर रेड रूट डिज़ाइन किए जाने ही चाहिए। इन मार्गों पर किसी भी हालत में रिक्शे, ऑटो, या निजी वाहनों के खड़े होने पर पाबंदी होनी चाहिए, जिससे मुख्य सड़कों पर आकस्मिक जाम और दुर्घटनाएं कम होंगी।
नेफोवा के चेयरमेन अभिषेक कुमार सख्ती की जगह सख्त इच्छाशक्ति से इसको करने की बात भी कहते है वो याद करते हुए कहते है कि 2010 में राजधानी दिल्ली में हुए कामन वेल्थ खेलो के समय यदि एक लेन को रिजेर्व करके स्मूथ यातायात चलाया जा सकता है तो फिर नोएडा – ग्रेटर नोएडा में रेड रूट और लेन सिस्टम को लागू क्यूँ नहीं किया जा सकता है
क्या है ‘रेड रूट योजना’?
‘रेड रूट योजना’ के तहत, नामित सड़कों पर वाहनों को रुकने की बिल्कुल अनुमति नहीं होती है। यह प्रतिबंध सामान चढ़ाने या उतारने, या यात्री को उतारने-चढ़ाने के लिए रुकने तक लागू होता है। इस नियम में केवल बसों, लाइसेंस प्राप्त टैक्सियों और विशेष ब्लू बैज धारकों (विकलांग या बुजुर्ग चालकों) को छूट दी जाती है। इन मार्गों को सड़क के किनारों पर लाल रेखाओं से स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जाता है, जिससे शहरी क्षेत्र में यातायात के लिए एक निर्बाध ‘क्लियरवे’ (Clearway) बन जाता है। रेड रूट प्रणाली में दो मुख्य प्रकार की लाल रेखाएं होती हैं, जिनमें प्रतिबंधों का स्तर भिन्न होता है:


- दोहरी रेड लाइन (Double Red Line): ये लाल रेखाएं सबसे सख्त होती हैं। जहाँ भी आपको सड़क के किनारे दोहरी लाल रेखाएं दिखाई दें, इसका मतलब है कि सड़क के उस हिस्से पर दिन हो या रात, किसी भी समय रुकने, सामान चढ़ाने या उतारने पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसका एकमात्र अपवाद यात्रियों के लिए बहुत ही कम समय के लिए बिना प्रतीक्षा किए जल्दी चढ़ने या उतरने के लिए हो सकता है, लेकिन यह भी बहुत सीमित परिस्थितियों में। इन लाइनों का उद्देश्य मुख्य परिवहन गलियारों को चौबीसों घंटे स्पष्ट और अवरोध-मुक्त रखना है।
- एकल रेड लाइन (Single Red Line): इन मार्गों पर, रुकने का प्रतिबंध केवल विशिष्ट घंटों के दौरान ही लागू होता है। इन मार्गों पर, साथ में लगे संकेतों द्वारा वे घंटे स्पष्ट रूप से इंगित किए जाते हैं जब रुकने की अनुमति नहीं होती है। इन निर्दिष्ट घंटों के बाहर, अक्सर रुकने की अनुमति हो सकती है, जिससे ड्राइवरों को थोड़ी अधिक लचीलापन मिलता है। यह प्रणाली उन क्षेत्रों में प्रभावी है जहाँ दिन के कुछ हिस्सों में यातायात अधिक होता है, और अन्य समय में लचीलापन आवश्यक होता है।
रेड रूट का प्राथमिक उद्देश्य:
रेड रूट का प्राथमिक उद्देश्य सुदृढ़ यातायात प्रबंधन है। इन प्रमुख गलियारों पर यातायात और सार्वजनिक परिवहन के एक सुसंगत और निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करके, यह प्रणाली निम्नलिखित प्रमुख लाभ प्रदान करती है:
- समग्र दक्षता में सुधार: यह सुनिश्चित करता है कि बसें और अन्य सार्वजनिक परिवहन वाहन बिना किसी बाधा के चल सकें।
- यात्रा का समय कम: रुकावटों को कम करके, यह यात्रियों और माल ढुलाई दोनों के लिए यात्रा के समय को काफी कम करता है।
- भीड़भाड़ में कमी: यह शहरी सड़कों पर अनावश्यक भीड़भाड़ को कम करने में मदद करता है, जिससे वायु प्रदूषण भी कम होता है।
ड्राइवरों और पैदल चलने वालों दोनों के लिए इन नियमों को समझना और उनका पालन करना महत्वपूर्ण है ताकि वे नियमों का अनुपालन कर सकें और शहरी यातायात व्यवस्था में अपना योगदान दे सकें। ‘रेड रूट’ प्रणाली एक आधुनिक शहर की बढ़ती यातायात मांगों को पूरा करने और शहरी गतिशीलता को बेहतर बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
सख्त लेन सिस्टम और स्कूल बसों के नियम
रेड रूट के साथ-साथ, शहर के मुख्य मार्गों पर सख्त ‘लेन सिस्टम’ (Lane System) लागू करना भी अनिवार्य है। वर्तमान में, भारी वाहन, हल्के वाहन और दोपहिया वाहन बिना किसी अनुशासन के लेन बदलते रहते हैं, जो दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण है। सख्त लेन अनुशासन प्रणाली लागू होने से यातायात का प्रवाह बेहतर होगा और ओवरटेकिंग के खतरों को कम किया जा सकेगा।
इसके अतिरिक्त, स्कूल बसों के लिए भी सख्त नियम होने चाहिए। बसों की गति सीमा, फिटनेस और चालकों की ट्रेनिंग पर कड़ाई से निगरानी की जानी चाहिए। साथ ही, आम नागरिकों में भी स्कूल बसों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई जानी चाहिए। उन्हें आपातकालीन स्थिति में या बच्चों को उतारते-चढ़ाते समय स्कूल बसों को प्राथमिकता देने की भावना विकसित करनी होगी, ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
ऐसे में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में सड़क सुरक्षा को स्थाई बनाने के लिए केवल पुलिस की सख्ती ही पर्याप्त नहीं है। यह समय है कि प्रशासन यातायात माह मनाने के साथ साथ यूरोपियन मॉडल की तर्ज पर संरचनात्मक सुधारों को लागू करे—जिसमें ‘रेड रूट’ और ‘लेन सिस्टम’ प्रमुख हों—और साथ ही नागरिकों के व्यवहार को बदलने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए।



