ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का ताबड़तोड़ एक्शन: 12 बिल्डरों से अमिताभ कांत समिति की रियायतें वापस, हजारों काबिजदारों को मालिकाना हक

NCR Khabar Internet Desk
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ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बोर्ड ने शनिवार को रियल एस्टेट क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही विसंगतियों को दूर करने के लिए दो बड़े और ऐतिहासिक फैसले लिए हैं। एक ओर, बोर्ड ने उन एक दर्जन बिल्डरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्णय लिया है, जिन्होंने अमिताभ कांत समिति की सिफारिशों का लाभ उठाने के बाद भी न तो खरीदारों को घर दिए और न ही प्राधिकरण का बकाया चुकाया। इन बिल्डरों से अब सभी रियायतें वापस ले ली जाएंगी। दूसरी ओर, बोर्ड ने आवासीय समितियों में ‘सबसीक्वेंट मेंबर’ (काबिजदारों) के नाम रजिस्ट्री की अनुमति देकर हजारों परेशान खरीदारों को मालिकाना हक दिलाने का रास्ता साफ कर दिया है।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता करते हुए अध्यक्ष दीपक कुमार ने स्पष्ट किया कि प्राधिकरण अब किसी भी कीमत पर उन बिल्डरों को और वक्त नहीं देगा जो खरीदारों के हितों की अनदेखी कर रहे हैं और प्राधिकरण के प्रति अपनी वित्तीय देनदारी पूरी नहीं कर रहे।

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खंड 1: बिल्डरों पर गाज—रियायतें वापस लेने का फैसला

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बोर्ड ने बायर्स को घर न देने वाले और बकाया भुगतान में विफल रहने वाले करीब एक दर्जन बिल्डरों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। इन बिल्डरों को रियल एस्टेट के लिगेसी प्रोजेक्ट्स की अड़चनों को हल करने के लिए लाई गई अमिताभ कांत समिति की सिफारिशों से प्राप्त सभी लाभ और रियायतें वापस ले ली जाएंगी।

कठोर कदम क्यों?

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ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बोर्ड के अध्यक्ष दीपक कुमार ने जोर देकर कहा कि जिन बिल्डरों ने पॉलिसी का लाभ लेने के बावजूद अब तक न तो बायर्स के नाम रजिस्ट्री शुरू की है और न ही प्राधिकरण का बकाया धनराशि जमा की है, उन्हें अब और मोहलत देना जनहित में नहीं है। उन्होंने ऐसे बिल्डरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के निर्देश दिए।

अधिकारियों ने बताया कि अमिताभ कांत समिति की सिफारिशों के आधार पर रियल एस्टेट सेक्टर को राहत देने के लिए एक व्यापक पॉलिसी पैकेज लाया गया था। इस पॉलिसी का उद्देश्य ठप पड़े प्रोजेक्ट्स को गति प्रदान करना था ताकि खरीदारों को उनका घर मिल सके। इस पॉलिसी के तहत कुल 98 बिल्डर परियोजनाओं को शामिल किया गया था, जिनमें से 85 परियोजनाओं को लाभ मिला है।

प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार ने बताया कि पॉलिसी का लाभ लेने के बाद इन 85 परियोजनाओं को पूरा करने का रास्ता साफ हुआ है और अब तक लगभग 18,000 फ्लैट खरीदारों के नाम रजिस्ट्री भी हो चुकी है। यह कदम दिखाता है कि पॉलिसी अपने उद्देश्यों में सफल रही है।

निगरानी में आए 12 बिल्डर

हालांकि, बोर्ड ने पाया कि बाकी बचे 13 बिल्डरों ने खरीदारों के नाम रजिस्ट्री करने की दिशा में कोई खास प्रयास नहीं किया। इनमें से एक दर्जन बिल्डरों पर अब कार्रवाई के लिए बोर्ड ने मंजूरी दे दी है।

कार्रवाई की जद में आए प्रमुख बिल्डर:

  1. एवीजे डेवलपर्स (सेक्टर बीटा टू)
  2. एमएसएक्स रियलटेक (सेक्टर अल्फा वन)
  3. ज्योतिर्मय इंफ्राकॉन (सेक्टर-16सी)
  4. अंतरिक्ष इंजीनियरिंग (सेक्टर-1)
  5. एलिगेंट इंफ्राकॉन (सेक्टर टेकजोन-4)

प्राधिकरण ने स्पष्ट किया है कि भले ही इन बिल्डरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा रही है, लेकिन कार्रवाई के दौरान खरीदारों के हित को सर्वोपरि रखा जाएगा। प्राधिकरण अब इन बिल्डरों को मिले सभी वित्तीय रियायतों और निर्माण संबंधी छूटों को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करेगा।


खंड 2: लाखों काबिजदारों को मालिकाना हक—रजिस्ट्री का रास्ता साफ

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण बोर्ड ने शनिवार को एक और निर्णायक और ऐतिहासिक निर्णय लिया, जिसका सीधा फायदा उन हजारों आम नागरिकों को होगा जो लंबे समय से अपने संपत्ति के मालिकाना हक (Registry) से वंचित थे। बोर्ड ने आवासीय समितियों में ‘सबसीक्वेंट मेंबर’ या ‘काबिजदारों’ (Subsequent Member/Kabijdar) के नाम रजिस्ट्री की अनुमति दे दी है। इस फैसले से इन आवासीय समितियों में काबिजदारों को भी संपत्ति पर कानूनी मालिकाना हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

समस्या क्या थी?

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र में सीनियर सिटीजन सोसाइटी और एयरफोर्स नेवल हाउसिंग बोर्ड (Air Force Naval Housing Board) समेत कई ऐसी आवासीय समितियां हैं, जिनके प्रोजेक्ट्स का कंप्लीशन सर्टिफिकेट (Completion Certificate) न मिलने के कारण संपत्तियों का आधिकारिक हस्तांतरण (Transfer) नहीं हो पा रहा था।

इस कारण खरीदारों को अपनी संपत्ति बेचने या खरीदने के लिए ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ (Power of Attorney – PoA) का सहारा लेना पड़ रहा था। अक्सर, एक ही संपत्ति पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर एक से अधिक बार बिक चुकी है। रजिस्ट्री न हो पाने के कारण इन खरीदारों को ‘काबिजदार’ कहा जाता था और उन्हें कानूनी मालिकाना हक नहीं मिल पाता था। इस विसंगति के कारण, अन्य संपत्तियों की तुलना में इनकी बाजार कीमत भी कम होती थी और खरीदार लगातार प्राधिकरण से रजिस्ट्री के लिए गुहार लगा रहे थे।

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प्राधिकरण की पहल और मंजूरी

प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार की पहल पर, आवासीय समिति विभाग की तरफ से बोर्ड के समक्ष इस समस्या का समाधान करने के लिए प्रस्ताव रखा गया, जिसे बोर्ड ने तुरंत मंजूर कर लिया।

यह निर्णय न केवल काबिजदारों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करेगा, बल्कि उनकी संपत्तियों के बाजार मूल्य में भी वृद्धि करेगा।

रजिस्ट्री के लिए निर्धारित शर्तें

बोर्ड ने काबिजदारों के नाम रजिस्ट्री की अनुमति देते हुए कुछ महत्वपूर्ण और अनिवार्य शर्तें भी निर्धारित की हैं ताकि भविष्य में किसी भी कानूनी विवाद से बचा जा सके:

  1. शपथ पत्र (आवासीय समिति द्वारा): आवासीय समिति के पदाधिकारियों की तरफ से एक शपथ पत्र देना अनिवार्य होगा, जिसमें यह प्रमाणित किया जाएगा कि वर्तमान में सबसीक्वेंट मेंबर (अंतिम खरीदार) का ही आवंटित भवन पर वास्तविक कब्जा है।
  2. एनओसी जारी करना: सभी सदस्यों के पक्ष में सबलीज डीड कराने के लिए अलग-अलग एनओसी (No Objection Certificate) जारी करना अनिवार्य होगा।
  3. काबिजदार का शपथ पत्र: काबिजदारों को भी एक शपथ पत्र देना होगा कि भविष्य में किसी भी तरह की आपत्ति या कानूनी वाद आने पर पूरी जिम्मेदारी काबिजदारों की होगी।
  4. इंडेमनिटी बॉन्ड: काबिजदारों को 100 रुपये के स्टांप पेपर पर इंडेमनिटी बॉन्ड (Indemnity Bond) भी देना होगा, जिसमें यह तय होगा कि भविष्य में किसी प्रकार की देयता (Liability) होने पर काबिजदार ही भुगतान करेगा और वह इस संबंध में किसी तरह का वाद कोर्ट में दायर नहीं करेगा।
  5. ट्रांसफर शुल्क का भुगतान: आवासीय समिति की सूची में मूल सदस्य के बाद अंतिम काबिजदार तक, प्राधिकरण द्वारा तय किए गए सभी ट्रांसफर चार्जेस का भुगतान अंतिम काबिजदार को करना होगा। सब्सीक्वेंट मेंबर्स को प्रति सदस्य के अनुसार ट्रांसफर शुल्क देना होगा।
  6. समय सीमा: इस नई नीति के अंतर्गत सिर्फ उन्हीं प्रकरणों पर विचार किया जाएगा, जो भवन आवासीय समिति की कार्यपूर्ति (Completion) से पूर्व खरीदे गए हैं।

बोर्ड ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए आवासीय समिति विभाग को निर्देश दिए हैं कि जल्द से जल्द इस प्रक्रिया को लागू किया जाए।

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