उत्तर प्रदेश के दिल्ली से सटे नोएडा में दम घोंटू प्रदूषण: प्राधिकरण के दावों के बावजूद हालात गंभीर, क्या जनता चुप रहेगी?

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आशु भटनागर । उत्तर प्रदेश के दिल्ली से सटे जिले, विशेषकर नोएडा और गाजियाबाद, इस समय एक भयावह वायु प्रदूषण संकट का सामना कर रहे हैं। हवा की गुणवत्ता लगातार ‘गंभीर’ (Severe+) श्रेणी में बनी हुई है, जिसने यहां के निवासियों के लिए सांस लेना भी एक चुनौती बना दिया है। रविवार रात 11 बजे ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का 534 दर्ज होना, इस गंभीर स्थिति का एक भयावह प्रमाण है। हवा इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि यह केवल सांस लेने लायक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो गई है। इस दमघोंटू प्रदूषण के कारण लोगों को सांस लेने में तकलीफ, अत्यधिक थकान और आंखों में जलन जैसी समस्याएं हो रही हैं, जो ठंड और नमी के इस मौसम में और भी विकट रूप धारण कर लेती हैं।

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स्थानीय कारण और ट्रैफिक का बढ़ता बोलबाला

दिल्ली में वायु प्रदूषण पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट ने इस बहस को एक नया मोड़ दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, नोएडा समेत दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से ट्रैफिक और स्थानीय कारक जिम्मेदार हैं। हैरानी की बात यह है कि इस रिपोर्ट ने पराली जलाने के योगदान को लगभग नगण्य बताया है, जो अक्सर प्रदूषण के लिए मुख्य दोषी ठहराया जाता रहा है। यह नई दिशा, एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है: क्या हम समस्या की जड़ तक पहुंचने के बजाय, एक आसान बहाने के पीछे छिप रहे हैं? यदि स्थानीय कारण और ट्रैफिक इतना बड़ा योगदान दे रहे हैं, तो इन पर तत्काल और प्रभावी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?

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नोएडा प्राधिकरण के दावे: कागजी कार्रवाई या जमीनी हकीकत?

इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए नोएडा प्राधिकरण द्वारा कई कदम उठाए जाने का दावा किया गया है। इन दावों में निर्माण गतिविधियों पर रोक (आवश्यक परियोजनाओं को छोड़कर), धूल नियंत्रण के लिए एंटी-स्मॉग गन और स्प्रिंकलर का उपयोग, और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर प्रतिबंध शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत रेडी-मिक्स कंक्रीट प्लांट और स्टोन क्रशर को बंद करने और निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए ग्रीन नेट और कवरिंग का उपयोग अनिवार्य करने जैसे उपाय भी किए गए हैं।

ये सभी कदम सैद्धांतिक रूप से सराहनीय हैं और प्रदूषण को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। हालांकि, जमीनी हकीकत इन दावों से कोसों दूर नजर आती है। प्राधिकरण द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद, हवा की गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं दिख रहा है। प्रश्न यह उठता है कि क्या ये उपाय केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएंगे, या इन्हें प्रभावी ढंग से लागू भी किया जाएगा?

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सूचना के अधिकार (RTI) का खुलासा: दावों की पोल खोलती हकीकत

पर्यावरण एक्तिविष्ट अमित गुप्ता द्वारा दायर एक सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन के जवाब में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, वे नोएडा प्राधिकरण के दावों पर गंभीर सवालिया निशान लगाते हैं। CPCB के अनुसार, 2025 में समीर ऐप पर नोएडा में प्रदूषण संबंधी 41 और ट्विटर पर 179, यानी कुल 220 शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें से केवल 162 शिकायतों का ही निस्तारण किया गया है, जबकि 58 शिकायतें (लगभग 26% से अधिक) अभी भी लंबित हैं।

यह आंकड़ा और भी चौंकाने वाला हो जाता है जब हम यह देखते हैं कि नोएडा में प्रदूषण की कुल 730 शिकायतों में से अकेले अमित गुप्ता की 220 शिकायतें हैं, जो कि लगभग एक तिहाई है। यह इंगित करता है कि जनता इस समस्या से कितनी त्रस्त है और अपनी आवाज उठाने का प्रयास कर रही है। इसके बावजूद, लगभग एक चौथाई शिकायतें अनसुलझी रह जाना, प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर गंभीर संदेह पैदा करता है।

प्राधिकरण का शिकायतों को लेकर कितना गंभीर है इसका अंदाजा आप ऐसे लगा सकते है कि लगातार शिकायतों के समाधान न होने का प्रकरण उठा तो प्राधिकरण के सीईओडा लोकेश एम् ने ८ अधिकारियो कि सैलरी रोकने का आदेश जारी कर दिया कितु क्या इससे पर्यावरण को लेकर कोई सुधार हुआ या फिर ये सिर्फ उठते प्रश्नों से भागने जैसा प्रयास मात्र था।

अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी: एक चिंताजनक संकेत

जब जनता अपनी समस्याओं को उजागर करने के लिए शिकायतें दर्ज करा रही है, और यदि वे शिकायतें समय पर और प्रभावी ढंग से हल नहीं हो रही हैं, तो यह प्राधिकरण की संवेदनशीलता और कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस गंभीर प्रदूषण की स्थिति पर नोएडा प्राधिकरण और यहां के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी बनी हुई है। आरोप हैं कि नोएडा के विधायक पंकज सिंह हो या सांसद डा महेश शर्मा, दोनों ही इस पुरे मुद्दे पर चुप है तो विपक्ष के नेता पर आरोप हैं कि वो जनता कि समस्याओ पर लड़ने कि जगह 27 में होने वाले चुनाव का इंतज़ार कर रहे है I

नोएडा से तीन बार समाजवादी पार्टी से चुनाव हार चुके सुनील चौधरी राजनैतिक और सामाजिक दोनों ही परिदृश्य से गायब है तो कांग्रेस से चुनाव लड़ी पंखुड़ी पाठक और आम आदमी पार्टी से चुनाव लडे पंकज अवाना के लापता होने की बातें हो रही हैं

यह चुप्पी जनता के बीच असंतोष को बढ़ाती है। क्या उन्हें जनता के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है? क्या वे इस गंभीर पर्यावरणीय संकट को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं? या फिर, वे इस समस्या के समाधान में स्वयं को लाचार पा रहे हैं? नोएडा इस जनप्रतिनिधियों को इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़नी चाहिए और जनता की आवाज बनकर प्रभावी समाधान की वकालत करनी चाहिए। उन्हें प्राधिकरण के साथ मिलकर काम करना चाहिए और जवाबदेही तय करनी चाहिए।

नोएडा और दिल्ली से सटे अन्य जिले आज एक नाजुक मोड़ पर खड़े हैं। जनता की स्वास्थ्य और जीवन गुणवत्ता का सवाल दांव पर लगा है। प्राधिकरण और जनप्रतिनिधियों को अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा और निर्णायक कार्रवाई करनी होगी। यदि समस्या का शीघ्र समाधान नहीं हुआ, तो यह केवल स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा भी बन सकता है। क्या हम इस दमघोंटू हवा में चुपचाप सांस लेते रहेंगे, या अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगे? यह सवाल हर नागरिक, हर अधिकारी, हर जनप्रतिनिधि से पूछा जाना चाहिए।

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