आशु भटनागर । 2025 के अंतिम पखवाड़े में केवल 10 दिन शेष हैं, ऐसे में एनसीआर खबर ने इस वर्ष की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और अधूरे सपनों पर आधारित एक विशेष श्रृंखला शुरू की है। इसके पहले एपिसोड में, हम यमुना प्राधिकरण के उन पांच महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें 2025 के अंत तक पूर्ण होने का लक्ष्य रखा गया था — लेकिन आज, केवल वायदे और विफलताएं शेष हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस महत्वपूर्ण वर्ष में प्राधिकरण के नेतृत्व में बदलाव यानी पूर्व CEO डॉ. अरुणवीर सिंह के रिटायरमेंट के बाद अस्थायी रूप से CEO राकेश कुमार सिंह की नियुक्ति और उनकी कार्यशैली भी इस वर्ष विफलता का बड़ा कारण रही है।
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट: उद्घाटन की राह में अटका सपना
25 नवम्बर 2021 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिलान्यास किया था और घोषणा की थी कि जेवर में निर्मित नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (NIA) तीन साल में पूर्ण हो जाएगा। चार साल बाद, 2025 के अंत तक प्रोजेक्ट केवल 80 % ही पूरा हो पाया है। उद्घाटन की तिथियों का क्रमिक पुनर्संचयन – सितंबर, अक्टूबर, दिसंबर – अब “अंतिम क्षण में नई उम्मीद” की तरह लग रहा था, 9 दिसंबर को फिर से एक घोषणा के संकेत मिले, परन्तु अंत में उद्घाटन को फिर से अनिश्चित समय के लिए टाल दिया गया I कई लोगो का दावा है कि अब फरवरी – मार्च में ही उद्घाटन हो पायेगाI
कई विश्लेषको का दावा है कि नोएडा इंटरनेशनल एअरपोर्ट को लेकर बीते ६ माह में जिस तरह जल्द से जल्द उद्घाटन के लिए दबाब बनाया गया उससे कार्य और देरी होती गयी I पूर्व सीईओ के समय इसे इंटरनेशनल सञ्चालन के लिए ही तैयार किया जा रहा थाI जून में उनके सेवानिवृत्त होने के बाद से इसके कार्गो और घरेलु उड़ानों के लिए शुरू होने की चर्चाये होने लगी I लोगो ने पूछा कि आखिर उत्तर प्रदेश सरकार इसे एक बाद समय लेकर पूर्ण रूप से संतुष्ट होने के बाद ही उद्घाटन की घोषणा क्यूँ नहीं करती I आरोप हैं कि बीते 6 माह में में युमना प्राधिकरण के सीईओऔर नियाल के अध्यक्ष की वय्व्हारिकता की जगह छोटी छोटी डेडलाइन देना ही इस प्रोजेक्ट के डिले होने का एक अन्य कारण भी बन गयी।
वहीं प्राधिकरण सूत्रों का दावा है कि एयरपोर्ट बनाने वाली कंपनी कंस्ट्रक्शन पूरा किए बिना ही उद्घाटन की जल्दबाजी दिखा रही है। कंपनी ने भरोसा दिया था कि वो नवंबर तक निर्माण पूरा कर देगी। जिसे देखते हुए दिसंबर के में उद्घाटन की योजना तैयार की गई, लेकिन एक बार फिर से ये टालना पड़ा है। ये पांचवी बार है जब एयरपोर्ट का उद्घाटन रुक गया।

यूपी फिल्म सिटी: हॉलीवुड का सपना, हकीकत में अटके फ्रेम्स
उत्तर प्रदेश में एक विशाल फिल्म सिटी बनाने का सपना जो हॉलीवुड को टक्कर दे सके, वह सपना आज भी अधूरा है। 2020 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोविड-19 महामारी के दौरान इस परियोजना की घोषणा की थी, जिसे भारत की सबसे बड़ी फिल्म सिटी बनाने का लक्ष्य था। यह परियोजना 1000 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैली होनी थी और फिल्म निर्माण की दुनिया में एक नई क्रांति लाने वाली थी।
पहले चरण के लिए बोनी कपूर और भूटानी ग्रुप को 230 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी, लेकिन 2025 के अंत तक न तो शिलान्यास हुआ और न ही कोई कामकाजी गतिविधि देखने को मिली। सूत्रों का दावा है कि बोनी कपूर और भूटानी ग्रुप के बीच आंतरिक मतभेद उभर आए हैं, जो इस परियोजना की प्रगति में रोड़ा बन गए हैं ।
दूसरी ओर, नेटफ्लिक्स और टी-सीरीज जैसी बड़ी कंपनियां हैदराबाद में अपने स्टूडियो बना रही हैं, जबकि यमुना प्राधिकरण फिल्म सिटी के बारे में सार्वजनिक रूप से एक शब्द भी नहीं बोल रहा है। यह सवाल उठाता है कि क्या यह परियोजना वास्तव में हकीकत में बदलेगी या यह सिर्फ एक सपना ही रह जाएगा?
उत्तर प्रदेश के लोगों को उम्मीद थी कि यह फिल्म सिटी राज्य की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेगी, लेकिन अब तक की स्थिति देखकर लगता है कि यह परियोजना अभी भी शुरुआती चरण में ही अटकी हुई है। फिलहाल यमुना प्राधिकरण के सीईओ इस पर शांत है सब जानकार भी इस पर कोई बड़ा निर्णय नहीं ले पा रहे है पर क्यूँ ये कोई नहीं जानता
नोएडा अपैरल पार्क: 10 साल बाद भी सिर्फ एक सपना?
2015 में “सिटी ऑफ अपेरल” के नाम पर उद्योग जगत को मिला वह बड़ा वादा आज, दशक के अंत तक, अधूरा साबित हो रहा है। 100 एकड़ में बनने वाले नोएडा अपैरल पार्क के जरिए 1.5 लाख से लेकर 3 लाख तक प्रत्यक्ष रोजगार का दावा किया गया था, लेकिन 2025 के अंत तक, यह परियोजना अभी भी बुनियादी ढांचे के निर्माण के चरण में है।
उद्योगपतियों का कहना है कि जमीन के आवंटन में देरी, किसानों के साथ भूमि विवाद और प्रशासनिक लापरवाही ने परियोजना को रोक दिया। सूत्रों के अनुसार, अभी भी 10-15 प्लॉट जमीन के कानूनी विवाद में उलझे हैं। पूर्व सीईओ ने वैकल्पिक भूमि आवंटन के लिए फाइल तैयार की थी, लेकिन नए प्रबंधन के सामने छह महीने बीतने के बाद भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
वादे बहुत बड़े थे, लेकिन क्रियान्वयन शून्य के करीब रहा। अब भी समय है, लेकिन एक्शन तुरंत चाहिए।”
मूल योजना ने ₹3,000 करोड़ के निवेश और 75% महिला रोजगार के बड़े वादे किए थे, लेकिन हकीकत यह है कि आज तक कोई भी इकाई उत्पादन शुरू नहीं कर पाई है। लगभग सात इकाइयां निर्माण के शुरुआती चरण में हैं, बिजली, पानी और सड़क जैसी मूल सुविधाएं अभी पूरी तरह नहीं तैयार हुई हैं।
हालांकि, यमुना प्राधिकरण अब नई भूखंड योजना लेकर आया है, जिसके तहत पांच औद्योगिक पार्कों में ₹2,200 करोड़ के निवेश और 22,000 रोजगार का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन यह आंकड़ा मूल वादे से सिर्फ एक सौवां हिस्सा है।
इस परियोजना में देरी ने न केवल उद्योगकर्ताओं का भरोसा डगमगाया है, बल्कि क्षेत्र के विकास की गति में भी बड़ी ढिलाई ला दी है। अगर प्राधिकरण त्वरित नीतिगत सुधार और पारदर्शी लैंड प्रोसेसिंग नहीं करता, तो “सिटी ऑफ अपेरल” का सपना केवल एक बिना पूरा हुए वादे के रूप में इतिहास में दर्ज हो जाएगा।
मेडिकल डिवाइस पार्क: महामारी के बाद का वायदा, आज तक अधूरा
2021 में घोषित, यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) का मेडिकल डिवाइस पार्क प्रोजेक्ट शुरुआत में एक वादा था। 2025 के अंत तक, यह अभी भी उस वादे को पूरा करने की कोशिश में लगा हुआ है। 350 एकड़ में फैला यह पार्क, उत्तर भारत का पहला समर्पित मेडिकल डिवाइस क्लस्टर बनने का लक्ष्य रखता है।
प्रारंभिक लक्ष्य 2025 तक उत्पादन शुरू करने का था, लेकिन विलंब के बावजूद, केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के संयुक्त फंडिंग के बल पर अब चीजें आगे बढ़ रही हैं। 89 प्लॉट आवंटित हो चुके हैं, जिनमें TI Medical (मुरुगप्पा ग्रुप) जैसी कंपनियां भी शामिल हैं। इनमें से कुछ साइट पर निर्माण आरंभ हो चुका है, और 240 फ्लैटेड फैक्ट्रियों के निर्माण की तैयारी है—एक महत्वपूर्ण कदम छोटे उद्यमियों के लिए, जो कम लागत में उत्पादन शुरू करना चाहते हैं।
दावा है कि पार्क की प्रमुख विशेषता होगी 13 विशेषज्ञ प्रयोगशालाएं, जिनमें AI/ML और बायो-मटेरियल टेस्टिंग जैसी सुविधाएं शामिल होंगी। ये कॉमन साइंटिफिक फैसिलिटीज (CSFs) PPP मॉडल के तहत विकसित की जा रही हैं। लेकिन यहीं पर विशेषज्ञों की चिंता भी शुरू होती है।कहाँ जा रहा है कि सरकार का लक्ष्य जनवरी 2026 तक पार्क को पूरा करने का है। लेकिन इस प्रोजेक्ट की सफलता केवल समय सीमा पूरी करने पर निर्भर नहीं, बल्कि इस बात पर निर्भर करेगी कि वादों को वास्तविकता में बदला जा सकेगा या नहीं।
पतंजलि फूड पार्क: पतंजलि का वादा अधूरा, पारदर्शिता के सवाल गहराए
क्या 2016 में घोषित पतंजलि आयुर्वेद के नोएडा मेगा फूड पार्क प्रोजेक्ट आज भी केवल कागजों पर ही मौजूद है। आठ साल बाद भी इसकी वास्तविक प्रगति पर संदेह बना हुआ है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बड़ी निवेश की घोषणा के तौर पर पेश किए गए इस प्रोजेक्ट को जमीन आवंटन, प्रशासनिक मंजूरियों और शुरु मे योगी आदित्यनाथ सरकार के साथ मतभेदों के कारण लगातार देरी का सामना करना पड़ा। 2018 में पतंजलि ने साफ कर दिया था कि यदि उत्तर प्रदेश सरकार सहयोग नहीं करती, तो प्रोजेक्ट दूसरे राज्य में शिफ्ट किया जाएगा। इसके बाद आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में 634 करोड़ रुपये के वैकल्पिक प्रोजेक्ट की चर्चा हुई, लेकिन वह भी किसी स्पष्ट लागू कदम तक नहीं पहुंचा।हालाँकि पतंजली के सूत्रों का दावा है कि सितम्बर 2026 की अंतिम डेड लाइन से पहले सब कुछ हो जाएगा।
2025 के मध्य में, खबर आई है कि नोएडा स्थित प्रोजेक्ट साइट पर पतंजलि औद्योगिक प्लॉट बेच रही है। कंपनी का कहना है कि ये प्लॉट उसकी सहायक कंपनियों के लिए आरक्षित हैं, जो मेगा फूड पार्क में एकीकृत होने वाली थीं। लेकिन यहां सवाल उठता है – कौन-कौन सी कंपनियां हैं? कितने प्लांट वास्तव में चल रहे हैं? और यमुना प्राधिकरण के पास इनका कोई आधिकारिक रजिस्ट्रेशन डेटा क्यों नहीं है?
मीडिया रिपोर्ट्स और आरटीआई आधारित जानकारियों के अनुसार, प्राधिकरण के पास सब्सिडियरी कंपनियों या चल रहे प्लांट्स का कोई पुष्ट डेटाबेस मौजूद नहीं है।उत्तर भारत के बिस्किट या जूस प्लांट के “लगभग तैयार” होने के दावे भी कभी स्वतंत्र स्रोतों या सार्वजनिक दस्तावेजों से पुष्ट नहीं हुए।
इस पूरे मामले में पारदर्शिता की कमी चिंता का विषय है। एक बड़ा उद्योगिक प्रोजेक्ट जिससे रोजगार और आर्थिक विकास की उम्मीद थी, वह अब वाणिज्यिक भूमि आवंटन के संदेह में घिर गया है। निजी कंपनी के नाम पर सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग की निगरानी में सुधार की तत्काल जरूरत है। मेगा फूड पार्क अब एक वादे से ज्यादा कुछ साबित नहीं हो पाया है — और बिना जवाब के सवालों के साथ, उसका भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।
आगे का रास्ता: 2026 में क्या?
2025 की अधूरी यात्रा के बाद, यमुना प्राधिकरण पर दबाव है कि 2026 में अधिक पारदर्शिता, त्वरित निर्णय लेने और निवेशकों की चिंताओं पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। अगर नहीं, तो एनसीआर की औद्योगिक गति धीमी पड़ सकती है।
अगले एपिसोड में — नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के लक्ष्यों पर विशेष विश्लेषण।



