राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है ।
रेडियो पर इन शब्दों के साथ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी। यह 21 मार्च, 1977 तक चला था।
लगभग 49 वर्ष पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के संविधान को रोंदते हुए जब यह फैसला लिया तो इसका देशव्यापी विरोध हुआ । बताया जाता है आपातकाल का मूल कारण 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का वह फैसला था जिसमें इंदिरा गांधी के रायबरेली से संसद के तौर पर चुनाव को अवैध करार दे दिया गया था।
आपातकाल की घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनके पुत्र संजय गांधी के ऊपर आरोप लगाए गए कि उन्होंने आपातकाल के नाम पर देश में लोगों के सामान्य अधिकारों का हनन कर दिया राजनेताओं से लेकर पत्रकारों तक को जेल भेज दिया और इस देश ने वह देखा जिसकी कल्पना करके ही आज लोग डर जाते हैं ।
आंतरिक सुरक्षा रख रखाव अधिनियम को एक शासन अध्यादेश के माध्यम से संशोधित कर दिया गया ताकि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति दी जा सके भारतीय संविधान का सबसे विवाद पद 42वां संशोधन पारित किया गया जिसमें न्यायपालिका की शक्ति को कम कर दिया गया इंदिरा गांधी यही नहीं रुकी, उन्होंने संविधान की मूल संरचना को बदल दिया संविधान में लिखें प्रस्तावना में अपने मन मुताबिक शब्दों को जोड़ दिया। आज भी भारत का संविधान अपने मूल स्वरूप वापसी के लिए किसी नेता की राह देख रहा है।
यद्यपि 1977 में जनता पार्टी द्वारा आपातकाल के दौरान सत्ता के दुरुपयोग कदाचार की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया किंतु आज 49 वर्ष बाद भी आपातकाल के उस भयावह दौर को भूलना असंभव है।