आशु भटनागर। नदियों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल सितंबर के चौथे रविवार को विश्व नदी दिवस मनाया जाता है। यह दिन पृथ्वी के जलमार्गों का जश्न मनाता है, जिसमें हर साल 60 से अधिक देश भाग लेते हैं। इस साल 22 सितंबर को World Rivers Day के रूप में मनाया जा रहा है ।
विश्व नदी दिवस पर रविवार सुबह समाजवादी पार्टी की एक नेत्री में जब विश्व नदी दिवस का संदेश भेजा तब मुझे स्वयं इसके बारे में याद आया । हैरत की बात यह है कि विश्व नदी दिवस को लेकर जिले के सांसद और विधायक तक शांत है । यद्यपि इसी हफ्ते जेवर विधानसभा के रनहेरा गाँव में बारिश के कारण आई बाढ़ से परेशान विधायक धीरेंद्र सिंह ने जरूर विश्व नदी दिवस पर ट्वीट कर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर ली है ।
ये भी संयोग ही है की महज दो दिन पहले मैं इस जिले के दो अधिकारियों से प्रदूषण और नदियों की स्थिति पर चर्चा कर रहा था । ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से जुड़े एक अधिकारी भी आम चर्चा की तरह इस बात से सहमत थे कि नदियों में होने वाला प्रदूषण अक्सर हिंदुओं द्वारा किए नदियों में प्रवाहित किए जाने वाले धार्मिक समान या अस्थियां विसर्जन से होता है । उसके साथ ही वह यह भी मान रहे थे कि यह धार्मिक कंपल्शन है इसलिए हम भी इसे करते हैं।किंतु नदियों को मृतप्राय बनाने के मुख्य कारक औद्योगिक कचरा और शहर के सीवर को नदियों से जोड़ने को लेकर उनके विचार शून्य थे । प्रश्न ये भी है कि ग्रेटर नॉएडा वेस्ट की एक सोसाइटी में पीने के पानी के टैंक के पास सीवर के टैंक से मिल जाने पर 1500 लोगो के बीमार होने पर 5 करोड़ का अर्थदंड लगाने वाले ये संसथान नदियों के प्रदुषण पर स्वयं के लिए क्या दंड तय करेंगे
वहीं पर्यावरण को लेकर नोएडा के जल विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का दावा था कि नोएडा प्राधिकरण में ट्रीटमेंट के लगाए गए प्लांट के बाद नोएडा में पानी का स्तर बेहद साफ हुआ है। नोएडा में 160TLD प्लांट लगाने और वाटर हार्वेस्टिंग के बाद ग्राउंड वाटर में जो औसतन 3000 टीडीएस तक मात्रा पाई जाती थी वह अब 1500 तक आ गए ।
लेकिन कोई भी यह बताने को तैयार नहीं कि आखिर इन सब के बावजूद जिले को जोड़ने वाली दो नदियों यमुना और हरनंदी नदी पर आज भी पानी पीने योग्य क्यों नहीं है । आखिर क्यों आज भी इन दोनों नदियों को अपने-अपने भागीरथ का इंतजार है । और क्यों इस शहर के लोगों को पीने के पानी के लिए हरिद्वार से पाइप लाइन डाल कर गंगाजल लाना पड़ता है ।
कहने को यहां कुछ लोगों ने समाज सेवा और पर्यावरण विद् के नाम पर हरनंदी के किनारो को साफ करने का खेल भी शुरू किया है। सूत्रों की माने तो इसमें उनके राजनीतिक निहितार्थ भी सम्मिलित हैं । किंतु क्या उच्च मध्यम वर्ग के इन लोगों के हरनंदी के किनारो की सफाई के बहाने वीडियो बनाकर जिले के अधिकारियों के साथ कार्यक्रम कर लेने से वाकई हरनंदी नदी साफ हो रही है ।
यमुना एक बड़ी नदी है और संभव है इसका सीधा संबंध गौतम बुद्ध नगर से नहीं है किंतु हरनंदी (हिंडन) नदी मुजफ्फरनगर जिला से निकलने के बाद मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा के बीच ही प्रदूषित हो जाती है और आगे जाकर दिल्ली से कुछ दूरी पर यमुना नदी में जाकर मिल जाती है लाखों रुपए खर्च कर हरिद्वार से गंगाजल मांगने वाले नोएडा और गौतम ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण इन नदियों का पानी साफ कर प्रयोग करने का क्यों नहीं सोचता है ।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार हरनंदी नदी के डाउनस्ट्रीम में टोटल कोलीफार्म की मात्रा 28 लाख एमपीएन प्रति 100 मिली रिकॉर्ड की गई है जबकि मानकों के अनुसार ट्रीटमेंट के उपलब्ध तरीकों से नहाने और अन्य कामों के उपयोग के लिए अधिकतम सीमा 5000 एमपीएन प्रति 100 मिली होनी चाहिए । इसके अलावा हरनंदी में बायो ऑक्सीजन की मात्रा भी 28 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई है जो की तीन मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे कम होनी चाहिए ।
प्रश्न ये है उत्तर प्रदेश के तीन बड़े औद्योगिक नगरों से होकर गुजरने वाली हरनंदी नदी आखिर इस स्थिति तक आती कैसे हैं? क्यों उत्तर प्रदेश सरकार सहारनपुर जिले में निचले हिमालय क्षेत्र के ऊपरी शिवालिक पर्वत क्षेत्र में शाकंभरी देवी की पहाडियों से निकलती इस नदी को वह सम्मान नहीं देने का प्रयास कर रही है जिससे यह नदी पश्चिम उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर गाजियाबाद जैसे जिलों के लोगों की प्राण दायनी बन सके । क्या राजनेताओं का कार्य सोशल मीडिया पर विश्व नदी दिवस मनाने से पूरा हो जाता है। सरकारे बदलती रही किंतु इस पर ध्यान किसका जाता है ? सुधार की कोशिशें जरूर आरंभ हुई हैं किंतु इसी शहर के अंधाधुंध विकास की दौड़ में हरनंदी के डूब क्षेत्र तक कब्जा कर लिया गया। आलम यह है कि हरनंदी नदी में अब मकान बने हुए हैं।
जानकारों की माने तो नदियों के किनारे तक धड़ाधड़ निर्माण हुए। नोएडा प्राधिकरण की ओर से पूरे जमीन का अधिग्रहण किया गया और योजनागत तरीके से इसे बिल्डरों को बेच दिया गया। अब आलम यह है कि नोएडा में जमीन नहीं बची है। इसी दौरान भूमाफियाओं ने प्राधिकरण की लापरवाही का फायदा उठाते हुए कृषि एवं पशुपालन वाली जमीन पर भी कब्जा जमाना शुरू किया। नदियों के किनारे तक प्लॉट काटे गए। पिछले वर्ष यमुना नदी में आई आंशिक बाढ़ का असर यह रहा कि डूब क्षेत्र में बने फॉर्महाउस डूब गए। काफी मशक्कत के बाद उनको बाहर निकाला गया। ऐसे में हरनंदी और यमुना के दोनों सिरों पर भूमाफियाओं द्वारा आबादी बसाई जाने के बाद इसके सुधार के गुंजाइश कहां तक है यह उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी सोचना पड़ेगा ।
क्या नोएडा प्रशासन लखनऊ की गोमती रिवर फ्रंट की तरह हरनंदी के वृहद विकास और साफ पानी को उपलब्ध कराने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को एक बड़ी योजना का प्रस्ताव नहीं दे सकते हैं क्या उत्तर प्रदेश सरकार गोमती नदी की तर्ज पर हरनंदी को उसका खोया हुआ स्वरूप लौटने की मुहिम नहीं चला सकते हैं । क्या हरनंदी के किनारे भू माफिया द्वारा बसाए गए तमाम लोगों को हटाकर हरनंदी नंदी को उसके वास्तविक स्वरूप में नहीं लाया जा सकता है ? आखिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब पूरे प्रदेश के भूमाफियाओं पर सख्त हैं तो गौतम बुद्ध नगर में भू माफिया किस तरीके से अपना काम करते जा रहे हैं।
पर्यावरणविदो की माने तो जितना पैसा नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों ने हरिद्वार से सीधा गंगा लाने में खर्च किया है उतना पैसा अगर हर नंदी को गंगा की नहर से जोड़ दिया जाता तो यह पानी साफ हो सकता था इसके साथ ही हरनंदी में गिरने वाले गाजियाबाद जिले के सीवर और औद्योगिक कचरे को रोक कर भी इसको प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।
किंतु इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों को गंभीर चिंतन करना पड़ेगा। भागीरथ प्रयासों के लिए भगीरथ जैसी सोच भी आवश्यक है और वह सिर्फ विश्व नदी दिवस के नाम पर पूरी नहीं हो सकती है ।