ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र में कितनी रेहड़ी पटरी,कितनी अवैध वसूली?

NCRKhabar Mobile Desk
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राजेश बैरागी । ग्रेटर नोएडा वेस्ट की एक ग्रीन बेल्ट में आसपास चर्चित फास्ट फूड कॉर्नर लगाने वाला हाल ही में हुई बारिश के दौरान दलदली भूमि पर खड़ा होने के कारण परेशान था। पूछा तो बताया कि प्राधिकरण ने यहां ठेला लगाने से रोकने के लिए जेसीबी से जमीन खोद दी है। क्या तुम महीना नहीं देते? इस प्रश्न पर उसकी पत्नी ने कहा- उसके बगैर तो हम यहां खड़े नहीं हो सकते हैं। फिर क्यों जमीन खोदी? उसने जवाब दिया-कार्रवाई का दिखावा भी तो करना होता है।

औद्योगिक इकाइयों, शिक्षा संस्थानों, गगनचुंबी इमारतों के साथ साथ क्या ग्रेटर नोएडा रेहड़ी पटरी वालों का भी हब बन गया है? आधिकारिक तौर पर जहां रेहड़ी पटरी की संख्या हजार बारह सौ बताई जाती है वहीं अनधिकृत सूत्र क्षेत्र में इनकी संख्या पांच हजार से अधिक बताते हैं। पंद्रह सौ रुपए से लेकर पांच हजार रुपए प्रतिमाह तक वसूली के आधार पर इन्हें प्राधिकरण अधिकारियों का संरक्षण मिलता है।

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प्राधिकरण के पूरब और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण, किसी भी हिस्से में अवैध रेहड़ी पटरियों की कोई कमी नहीं है। सेक्टरों के भीतर फुटपाथों के ऊपर रेहड़ियों का एक अलग बाजार सजता है। इससे तीन लोगों को सीधा लाभ होता है। गरीब और फास्ट फूड या सस्ता खाना खाने वाले लोगों को, रेहड़ी लगाकर रोजी-रोटी कमाने वालों को और प्राधिकरण के सड़कों से अतिक्रमण हटाने वाले विभाग के अधिकारियों को। यह जिम्मेदारी अर्बन सर्विसेज विभाग की है।

क्षेत्र में पांच हजार रेहड़ी पटरी से होने वाली मासिक अवैध वसूली की धनराशि का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। हिसाब-किताब की समझ रखने वाले रेहड़ी पटरी से होने वाली उगाही का अनुमान पचास से पचहत्तर लाख रुपए प्रतिमाह तक लगाते हैं। हिसाब के अनुमान की पुष्टि एनसीआर खबर नहीं करता है। इतनी बड़ी आमदनी के कारण ही अधिकारी लौट फिर कर इसी विभाग में आना चाहते हैं। बताया जाता है कि एक अधिकारी द्वारा पकड़ी जाने वाली अधिकांश रेहड़ियों को मौके पर ही छोड़ दिया जाता है। इससे विभाग के अन्य अधिकारी कर्मचारी अपना हिस्सा न मिलने से खासे रुष्ट बताए जाते हैं।

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गौरतलब है कि रेहड़ी पटरी लगने से शहर का स्वरूप विकृत हो गया है। इन्हें व्यवस्थित करने के लिए छः स्थानों पर वेंडर जोन विकसित करने की योजना बनाई गई है। इनमें से तीन वेंडर जोन बनकर लगभग तैयार हैं। परंतु निचले अधिकारियों के निजी स्वार्थ के चलते यह योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।

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