दीपावली दीयों का त्यौहार है मगर इस देश में त्यौहार कोई भी हो वह उसकी महत्ता से ज्यादा वो शराब का त्योहार बन जाता है। हमारे देश में किसी भी त्यौहार से पहले प्रदेश की सरकार और जिला आबकारी विभाग विभिन्न तरीकों से प्रयत्न करता है कि अधिक से अधिक मात्रा में शराब बेची जाए। यह धर्म और संविधान के बीच एक बीच जंग भी है जिसमें संविधान के अंतर्गत शासन धर्म के नियमो के विपरीत त्योहार के दिन शराब पीने वालों को न सिर्फ शराब पीने का मौका देता है बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी करता है ।
ऐसे में दिवाली पर एक ही दिन में शराबी कितनी शराब घटक गए, इसका आंकड़ा भी जिला आबकारी विभाग ने जारी कर दिया है। जिला आबकारी विभाग से मिली जानकारी के अनुसार दीपावली के दिन गौतम बुध नगर में 20 करोड रुपए की शराब खरीदी गई । इसमें 15000 लोगों ने व्हिस्की या स्कॉच को खरीदा जबकि 62000 लोगों ने बियर कैन खरीदी । अक्टूबर माह में ही हुई 183 करोड़ की बिक्री के मुकाबले दीपावली के दिन शराब पीने का औसत लगभग चार गुना ज्यादा है ।
एनसीआर खबर ने जब जिला आबकारी विभाग से यह जानकारी जुटाई कि दीपावली के दिन ओवर रेटिंग की कितनी शिकायत आई तो वहां मौजूद लोगों ने इस पर बताया कि उनके पास एक भी शिकायत नहीं आई । इसे शराबी पीने वालों की भलमानसता मान लिया जाए या जिला आबकारी विभाग की सख्ती माना जाए या फिर व्यवस्था में उत्पन्न विकृति को देखने के बाबजूद सामाजिक छवि न बिगड़ने के डर से शराब पीने वाले की कम प्रतिरोधक क्षमता मान लिया जाए।
एनसीआर खबर को मिली जानकारी के अनुसार जिलेभर में प्रति बोतल या केन औसतन 10 से 20 रुपए ज्यादा चार्ज किए गए । ऐसे में अगर आबकारी विभाग के कर्मचारियों के मुकाबले नगर वासियों की बातें सच माने तो जिले में दीपावली के दिन शराब के अनुज्ञापियों ने लगभग 10 लाख रुपए का खेल कर दिया। जिसकी कोई जानकारी आबकारी विभाग के पास नहीं है जिसमें कोई हिस्सेदारी राजस्व विभाग की नहीं है ।
यद्यपि 20 करोड़ की रकम में 10 लाख रुपए की चोरी छोटी दिखती है किंतु इससे जिला आबकारी विभाग की कार्यशैली पर की प्रश्न उठते हैं। प्रश्न इसलिए भी उठाते हैं कि क्या वाकई जिला आबकारी विभाग को कोई शिकायत नहीं मिली होगी या फिर मिली शिकायतों पर तुरंत एक्शन लेकर निस्तारण कर मामले को शून्य कर दिया गया। किंतु अगर शिकायतों का निस्तारण कर शिकायतों को शून्य कर दिया गया तो उसकी जानकारी का आंकड़ा शून्य क्यों किया गया ?
प्रश्न इसलिए भी है कि जिस ओवररेटिंग की चर्चा पूरे शहर में है इसकी शिकायत जिला आबकारी विभाग तक क्यों नहीं पहुंच पा रही है और अगर पहुंच पा रही है तो ओवररेटिंग के मामलों के बाद अनुज्ञापियों पर जिला आबकारी विभाग क्या कार्यवाही कर रहा है । क्या मायावती सरकार के समय आरंभ हुई ₹10 प्रति बॉटल या केन एक घोषित मानक बन चुका है ?
इसके उलट क्या शराब की ओवररेटिंग की शिकायत करने जाना भी एक सामाजिक अपराध की तरह देखा जाता है ? एनसीआर खबर ने इस पूरे प्रकरण में जब शिकायत करने वालों से बात की तो उन्होंने अपनी सामाजिक प्रतिबद्धताओं और इमेज का हवाला देते हुए अपना नाम न छापने का अनुरोध किया और संभवतः इसी लोक लाज के चलते जिले में ओवररेटिंग का खेल तो चलता है मगर कोई कुछ शिकायत नहीं करता है । और दिवाली पर 20 करोड़ की सेल के बाद 10 लाख रुपए का राजस्व का नुकसान होता तो है मगर कोई उसे कहता नहीं है , संभवत इसी में सब की भलाई जो है। तो जिसमें सब की भलाई है उसी में हमारी भी भलाई है आप इस पर क्या सोचते हैं अपना विचार जरूर दीजिएगा।