राजेश बैरागी । एग्जिट पोल के दावों का अखिलेश यादव के चेहरे पर उड़ती हवाइयों से क्या संबंध हो सकता है? विगत 4 जून की शाम अखिलेश यादव के राजनीतिक कैरियर की सबसे सुनहरी शाम थी। पीडीए, संविधान रक्षा और दलित आरक्षण को बचाने के चुनावी नारे नतीजों में बदल चुके थे। उत्तर प्रदेश में पहली बार समाजवादी पार्टी को 37 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल हुई थी जो अभूतपूर्व थी। इस विजय में स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का भी हाथ नहीं था।
तब से अब तक गंगा में कितना पानी बहा होगा? एग्जिट पोल बता रहे हैं कि महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा नीत राजग सरकार बना सकता है जबकि उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा अधिकतम सीटें जीत सकती हैं। एग्जिट पोल कई बार फेल साबित हो चुके हैं। इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव और हरियाणा विधानसभा चुनाव हवाई एग्जिट पोल के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।प्रतिष्ठा का प्रश्न बने उपचुनाव में भाजपा और उसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोई कसर उठाकर नहीं रखी।
अखिलेश यादव सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का खुलकर आरोप लगा रहे हैं। ऐसे आरोप अमूमन हार रही पार्टी और प्रत्याशी लगाया करते हैं। तो क्या उत्तर प्रदेश उपचुनावों के नतीजे एग्जिट पोल के अनुरूप रहने वाले हैं? यह जानने के लिए 23 नवंबर की दोपहर तक प्रतीक्षा करनी होगी। हालांकि मुख्य चुनावों सहित सभी चुनाव सत्ता के दुरुपयोग की कहानी कहते हैं। सरकारी मशीनरी सत्ता के संकेतों पर लोकतंत्र को हाईजैक करने में देरी नहीं करती। यह बात भाजपा के लिए भी उतनी ही सत्य है जितनी सपा के लिए। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए स्थानीय निकायों से लेकर उपचुनावों तक में सत्ता के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग जगजाहिर था। अखिलेश के चेहरे का रंग अतीत की स्मृतियों से भी प्रभावित हो सकता है।