आशु भटनागर। क्या गौतम बुध नगर में किसान आंदोलन अब अपने आखिरी दौर में है ? क्या बीते कुछ समय से राजनेताओं की जगह लेते जा रहे किसान नेताओं के नेपथ्य में जाने का समय आ चुका है ? क्या प्रशासन अब किसानो की आड़ में आए नए किसान नेताओं की नैतिक अनैतिक मांगों को सीधे-सीधे ना मानने के मूड में आ गया है ? आप सोचेंगे कि यह हम कैसी बातें कर रहे हैं तो नवंबर के आखिरी सप्ताह से शुरू हुए संयुक्त किसान मोर्चे के आंदोलन का हश्र देखकर इसे समझा जा सकता है ।
वर्तमान में पुलिस द्वारा सख्ती दिखाते हुए किसान नेताओं को लगातार गिरफ्तार करने और फिर रहा कर देने की पॉलिसी का अनुकरण करने से के बाद आंदोलन लगभग समाप्त करने की ओर लग रहा है तो प्राधिकरण अब लगातार किसानों की लीज बेक के प्रकरणों पर कार्यवाही करने में लगा हुआ है । वही जिन राजनीतिक दलों को आंदोलन के प्रारंभ में किसानों ने आंदोलन से अलग रखने की घोषणा मंच से कर दी थी उनके नेताओं को बाकायदा मंच पर बैठने तक नहीं दिया गया था, आज बैक डोर से किसान उन्हीं राजनीतिक दलों से मदद मांग रहे हैं और खेल देखिए की राजनीतिक दल भी उनके लिए समर्थन में आकर मिलने का बाकायदा ढोंग कर रहे हैं ।
बुधवार को कांग्रेस के तीन सांसद गौतम बुध नगर में आते हैं और पुलिस के साथ नूरा कश्ती दिखाते हुए डीएम से मिलकर वापस चले जाते हैं । उसके बाद दूसरा चरण अगले दिन बृहस्पतिवार को समाजवादी पार्टी के 16 नेताओं के प्रतिनिधिमंडल के आने से आरंभ होता है इस प्रतिनिधिमंडल में समाजवादी पार्टी के कई सांसद गौतम बुद्ध नगर आते हैं किसानों से जेल में मिलने जाने की बातें करते हैं, दावे करते हैं और उसके बाद उनसे बिना मिले डीएम और एडीजी से मिलकर वापस चले जाते हैं ।
क्या इसे सिर्फ पुलिस की सूझबूझ माना जाना चाहिए या फिर सरकार, पुलिस प्रशासन, राजनीतिक दलों द्वारा क्षेत्र में उत्पन्न हुए तमाम किसान नेताओं और संगठनों की आड़ में पैदा हुए दलाली के नए केंद्रों को बंद करने की संयुक्त सोची समझी रणनीति कहा जाना चाहिए ।
गौतम बुध नगर में विपक्ष की राजनीति करने वाले नेताओं को किसान नेताओं की लगातार हो रही एक्टिविटी के कारण अपनी राजनीति के हाशिए में जाने का डर लगने लगा है । दरअसल कुछ सालों से लगातार होते आंदोलन से जिले में राजनीतिक विरोध की संभावनाओं को समाप्त कर दिया जिसके कारण विपक्ष लगभग शून्य हो गया है और चुनाव में भाजपा को बड़ी बढ़त मिल रही है
बृहस्पतिवार को समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधिमंडल में एक नई बात भी हुई। पार्टी सूत्रों की माने तो किसान नेताओं के शुरू में राजनीतिक दलों को आंदोलन में बैठने ना देने को लेकर कई किसी राजनीतिक दलों के नेता नाराज दिखाई दिए और आज के कार्यक्रम में भी उन्होंने दूरी बना ली । पार्टी सूत्रों के अनुसार यह नेता इन किसान नेताओं के लगातार हो रहे उभार के कारण क्षेत्र में उनकी राजनीति के सिमटने से भी नाराज थे और सीधे-सीधे किसानों की समस्याओं की आड़ में होने वाली दलाली से भी नाराज थे ।
सपा के सूत्रों का दावा है कि पार्टी के एक नेता ने वहां ना जाने के लिए स्पष्ट तौर पर कहा कि इन किसान नेताओं ने उनके चुनाव में वोट के लिए कोई काम नहीं किया यह पार्टी के लिए राजनीतिक तौर पर नुकसानदायक है ।
सूत्रों की माने तो उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी को मजबूत करने में लगे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अपने नेताओं को यह संदेश दिया है कि पार्टी के किसान मोर्चा के अंतर्गत अगर आंदोलन हो तो उससे पार्टी को फायदा है किंतु पूरी पार्टी अगर किसान नेताओं के पीछे सिर्फ समर्थन देने के लिए खड़ी दिखाई देगी तो इससे पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा ।
संगठनों से छन छन कर आ रही सूचनाओं को अगर ठीक से समझना शुरू किया जाए तो यह तय है कि अब इस क्षेत्र में प्रतिदिन पैदा होते नए किसान संगठनों और उनके नेताओं के दिन लदने लगे हैं सरकार किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है तो राजनीतिक दल और उनके स्थानीय नेता अब इन किसान नेताओं को बिल्कुल बर्दाश्त करने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं।
ऐसे में राजनीतिक दलों की बदलती रणनीति के बाद गौतम बुध नगर में पैदा हुए 45 से ज्यादा किसान संगठनों की आंदोलनकारी रूपी दुकाने कितने दिन और चर्चा में रहेंगी यह आने वाले दिनों में दिखाई देगा ।