आशु भटनागर । नोएडा के मेघदूतम पार्क में लगी आग ने एक बार फिर से नोएडा प्राधिकरण ओर उद्यान विभाग की लापरवाह कार्यशैली पर चर्चाओं को जन्म दे दिया है । यूं तो अक्सर सरकारी कार्यालय में और सरकारी कार्य क्षेत्र में लगने वाली आग के पीछे कोई ना कोई बड़े घोटाले को छिपाने का खेल सामने आ ही आता है। किंतु एक नोएडा के बेहद पाश सेक्टर 50 में 27 एकड़ में बने इस पार्क के बीचो-बीच लगे सात सजावटी पाम के पेड़ों में लगी आग में कई प्रश्न खड़े कर दिए है ।
नोएडा के सेक्टर 50 स्थित मेघदूतम पार्क में कचरे से लगी आग। #NCRKhabar #PassengerSafetyMatters Streaming @noidapolice @noida_authority सिमरन सिंह #ManmohanSingh pic.twitter.com/vi0N1vS5xp
— NCRKHABAR (@NCRKHABAR) December 26, 2024




दरअसल 2020 में केविड के बाद से नोएडा में पार्कों को लेकर जो रणनीतियां अपनाई गई उसे पर लगातार प्रश्न खड़े होते रहे हैं । पूर्व सीईओ और रितु माहेश्वरी ने वेदवन पार्क बनाकर नोएडा को चर्चा में तो ला दिया किंतु वेदवन के कारण कितने अन्य पार्क अपने रेगुलर काम से अछूते रहने लगे इसकी चर्चाएं कभी नहीं हो पाई।
नोएडा प्राधिकरण के उद्यान विभाग की उदासीनता ने नोएडा के सामान्य पार्कों को तो छोड़िए, नोएडा के पॉश सेक्टर में बने पार्कों तक को इस हालात में ला दिया कि वह बदहाली की तरफ मुड़ते गए। नोएडा के एक और सेक्टर 15 के सामने बने अमिताभ पार्क की दुर्दशा पर एनसीआर खबर ने पहले भी समाचार प्रकाशित किया कि किस तरीके से वह पार्क अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है ।
अगर नोएडा के दूसरे पॉश कहे जाने वाले सेक्टर 50 के इस मेघदूतम पार्क में आग ना लगी होती तो आज इसकी चर्चाएं भी नहीं हो रही होती। एनसीआर खबर की टीम ने आग लगने के बाद इस पूरे पार्क का दौरा किया तो जाना कि पॉम के इन पेड़ों में लगी आग को लेकर कई तरीके के प्रश्न खड़े हो सकते हैं, किंतु वह प्रश्न इतने महत्वपूर्ण नहीं जितना पार्क की रखरखाव को लेकर नोएडा प्राधिकरण और उद्यान विभाग की कार्यशैली पर उठने वाले प्रश्न महत्वपूर्ण है ।
नोएडा में पार्कों के टेंडर लेने वाले ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने और ठेकेदारों के सत्ता पक्ष के विशेष संगठनों से जुड़े होने की चर्चाएं सामने आने के बाद पार्कों के टेंडर में रख रखाव की शर्तों और टेंडर की कास्ट के बीच भी अंतर बताया जाता है । लोगों का दावा है कि पार्कों के रखरखाव और संरक्षण के नाम पर सिर्फ साफ सफाई की बातें टेंडर में लिखी जाती हैं और ठेकेदार उस काम को भी सही से नहीं कर पाते ।
जानकारी के अनुसार सेक्टर 50 के रहने वाले नागरिकों ने इस पर की दुर्दशा पर लगातार प्रश्न उठाएं नोएडा प्राधिकरण के साथ पत्राचार तक किया, किंतु पार्क की मूल समस्याओं पर कभी भी ध्यान नहीं दिया गया है ।
नागरिकों की माने तो 27 एकड़ से बने मेघदूतम पार्क में सेक्टर की हर सोसाइटी से एक गेट खुलता है जिसके कारण इसमें आने और जाने के रास्तों की कमी नहीं है । इसके साथ ही उद्यान विभाग द्वारा नोएडा के पार्कों में सुरक्षा के लिए मात्र एक या दो गार्ड रखने की रणनीति का नुकसान इस पार्क को भी हुआ यहां भी सुरक्षा के नाम पर दो गार्ड दिखाई देते हैं जो पार्क के मुख्य द्वारों पर बैठने के अलावा कुछ नहीं कर पाते ऐसे में पार्क के अंदर क्या हो रहा है उसकी जानकारी किसी के पास नहीं होती है
नोएडा प्राधिकरण से तीन प्रश्न
बीते 1 साल में नोएडा के उद्यानों की इतनी उपेक्षा क्यों है ?
सभी उद्यानों में ठेकेदारों के सही काम न करने ओर उनको हटाए जाने की कहानी एक जैसी क्यों है ?
उद्यानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक-एक दो-दो सुरक्षा गार्ड पर ही क्यों है ?
जानकारों की माने तो निवासियों ने इन पेड़ों की सूखी डंडियों को काटने का प्रार्थना पत्र उद्यान विभाग के अधिकारियों को दिया था जिस पर समय रहते कोई एक्शन नहीं लिया गया । ऐसे में आग लगने पर जिम्मेदारी किसकी तय हो इस पर सबके अपने-अपने पक्ष हैं ।
नोएडा के अमिताभ पार्क की बदहाली पर रिपोर्टिंग के समय भी एनसीआर खबर को पता लगा था कि पार्क की रखरखाव का ठेका जिस ठेकेदार को दिया गया था वह बीते कई महीनो से कार्य नहीं कर रहा था जिसके चलते प्राधिकरण ने नए ठेकेदार को टेंडर अलॉट किया। ठीक इसी तरीके से मेघदूतम पार्क को लेकर भी जानकारी सामने आ रही है कि इस पार्क में भी रखरखाव को लेकर पुराने ठेकेदार की जगह नए ठेकेदार को कार्य अलॉट किया गया है ऐसे में एक प्रश्न यह भी है कि क्या यह आग ठेकेदारों की आपसी प्रतिस्पर्धा में लगी है ?
इसी के साथ एक बड़ा प्रश्न नोएडा में RWA और सामाजिक संस्थाओं के जरिए प्राधिकरण में अपने-अपने प्रभाव को दिखाने में लगे फोनरवा (Fonrwa) और डीडीआरडब्लूए (DDRWA) जैसे संगठनों की प्रतिस्पर्धा पर भी उठता है। नोएडा के सेक्टर की समस्याओं को लेकर अक्सर ऐसे संगठनों के बीच नोएडा प्राधिकरण से अपनी मांगे मनवाने को लेकर तमाम राजनीति होती दिखाई देती है । अधिकारी भी काम करने की जगह इन दोनों संगठनों के अध्यक्षों और सचिवों को संतुष्ट करते ज्यादा दिखाई देते हैं।
तो क्या नोएडा प्राधिकरण और नोएडा के उद्यान विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच ठेके बदले जाने से लेकर काम ना करने के हालातो पर इन संगठनों की राजनीति और उनके प्रभाव के ठेके पाने वाले ठेकेदारों की कहानी भी इस खेल में शामिल हो जाती है ।
क्योंकि स्थानीय निवासियों की मांग के बाबजूद नोएडा प्राधिकरण, उद्यान विभाग, वन विभाग द्वारा इस आग लगने पर किसी भी प्रकार की कोई एफआईआर दर्ज न करवाने की रणनीति इन सभी पर बड़े प्रश्न उठाती है साथ ही यह प्रश्न भी उठाती है कि आग लगने से ज्यादा आग लगाकर किस तरीके के दबावों को खड़ा करने का खेल फिलहाल नोएडा में चल रहा है इसकी जांच भी आवश्यक है।