आशु भटनागर । अखबारों के सर्कुलेशन की मारामारी, टीवी चैनल की रेटिंग और अब सोशल मीडिया के दौर में व्यू, हिट्स दौड़ में भाग रही नोएडा की पत्रकारिता “सीमा हैदर के पांचवें बच्चे के समाचार” तक आकर अपने पतन की कहानी लिख रही है । देश की मीडिया का प्रतिनिधि करने का दावा करने वाली नोएडा की मीडिया जब सीमा के वकील के वीडियो के आधार पर समाचार बना रही हो तो आप नोएडा से चल रही देशव्यापी पत्रकारिता के अंतिम संस्कार से पहले उनको एक पाँव नमन तो कर ही सकते हैं ।
पत्रकारिता में गिरावट का दौर कहां तक जाएगा, अभी पत्रकारों को इससे नीचे गिरकर कहां तक जलील होना है, यह कोई नहीं जानता । पर सबको सर्कुलेशन से लेकर व्यू और हिट्स के लिए सीमा हैदर के नाम से लंबी लड़ाई लड़नी है। वस्तुत बिग बॉस वाली फिल्मी पत्रकारिता को अब मुख्य धारा के पत्रकार पीछे छोड़ रहे है। ऐसे ही पत्रकारिता को जन सरोकार के ऊपर महत्व दिया जाने लगा है ।
बात पत्रकारिता की तक ही सीमित रहती तो कोई बात नहीं थी किंतु उस समाचार को बेचने के लिए प्रयोग की जा रही “पाकिस्तानी भाभी बनी मां” जैसी हेडलाइन उससे भी आगे की गिरावट को बयां कर देती है।
ऐसे में नोएडा मीडिया क्लब में अध्यक्ष की लड़ाई के लिए वोटो को पाने की जोड़तोड़ के बीच पत्रकारिता के गिरते स्तर पर भी चर्चा हो यह बेहद मुश्किल कार्य है और फिलहाल इसका शुद्धिकरण का सोचना मुश्किल दिखाई दे रहा है । दुखद तथ्य यह भी है कि इसमें मीडिया क्लब के द्रोणाचार्य और शुक्राचार्य बने सभी वरिष्ठ पत्रकार मौन धारण कर चुके है या फिर संभवतः उनको भी इससे सरोकार नहीं है ।
फिल्म बंटी और बबली में ठगी के केस की जांच सीबीआई को दिए जाने पर जांच कर रहे एसीपी दशरथ सिंह मुस्कुराते हुए कहते हैं कि क्या इस देश के सभी बड़े मसले सुलझा गए हैं जो सीबीआई को इसमें इंवॉल्व किया जा रहा है ठीक यही बात नोएडा की मीडिया पर भी लागू होती है जिससे यह पूछा जाना आवश्यक है कि क्या जन सरोकारों से संबंधित समाचार खत्म हो गए हैं जो उसे “पाकिस्तानी भाभी बनी मां” जैसी हैडलाइन और समाचार चलाने पड़ रहे हैं ।
जिले में बीते 35 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे एक वरिष्ठ पत्रकार इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि पत्रकारों के साथ पाठकों की रुचि भी ऐसे समाचारों के प्रति बढ़ती जा रही है सोशल मीडिया के दौर में बिग बॉस देखने वाली पीढ़ी ऐसे ही समाचारों को पसंद कर रही है जिसके चलते पत्रकारिता का भी पतन हो रहा है।
वो कहते हैं कि अगर कोई साहित्यकार समाज के उच्च मापदंडों को ध्यान में रखकर कोई साहित्य की रचना करता है तो उसे उसे सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में गिना जाता है और वही साहित्यकार यदि अपने पाठकों की मांग पर साहित्य की उत्कृष्टता रखकर की जगह पाठकों की पसंद को केंद्र में रखकर साहित्यिक रचना करता है तो उसे बाजारू कहा जाता है । ऐसा ही फिलहाल पत्रकारिता के साथ हो रहा है पत्रकारिता गणेश शंकर विद्यार्थी के आदर्शों की जगह अब बाजारू पत्रकारिता बनकर रह गई है ।
ऐसे में अगर व्यावसायिकता की आड़ में कुछ पत्रकारों ने अपनी मर्यादाएं तोड़ने शुरू कर दी हैं तो फिर प्रबुद्ध पाठकों और समाजसेवियों को ऐसे समाचारों के प्रति खुलकर लिखना होगा ताकि आने वाली पीढियां के लिए समाज को बचाए रखा जा सके।