आशु भटनागर। बीते दिनों नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण में कई अधिकारियों के स्थानांतरण हुए जिसको लेकर तमाम चर्चाएं रही। दावा यहां तक किया गया कि स्थानांतरण को लेकर औद्योगिक विकास मंत्री नंदकिशोर नंदी और मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के बीच विवाद सार्वजनिक भी हुआ और चर्चाओं के बाद ट्रांसफर हुए अधिकारी अपनी अपनी नई जगह चले गए। किंतु बुधवार को कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद कई प्रश्न खड़े हो गए। कथित तौर पर व्यापारियों के संगठन होने के दावा करने वाली एक संस्था के लोग जिलाधिकारी को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी के स्थानांतरण के विरोध में ज्ञापन देने पहुंचे और उनसे स्थानांतरण आदेश को वापस लेने की मांग की गई ।
पूरा घटनाक्रम यह है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी नवीन कुमार सिंह के स्थानांतरण आदेश को निरस्त करने के ज्ञापन देने नाम पर IBA नामक एक संस्था के अध्यक्ष अमित उपाध्याय गौतमबुद्ध नगर जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा से मिले और उन्हें दावा किया कि नवीन कुमार सिंह के कार्यकाल में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण में पारदर्शिता तुरंत समाधान और प्रशासनिक सहयोग में जो सुधार आया है वह अभूतपूर्व और अनुकरणीय है ऐसे में उनके स्थानांतरण से औद्योगिक विकास की गतिविधियां प्रभावित होगी। ज्ञापन में कहा गया नवीन कुमार सिंह जैसे कुशल जनोंमुखी और सक्रिय अधिकारी का कार्यकाल क्षेत्र के उद्योगों के लिए वरदान साबित हुआ है जिसे जारी रखा जाना चाहिए ।
इस पूरे प्रकरण के बाद प्रश्न यह है कि इतने स्थानांतरण में संस्था को सिर्फ एक अधिकारी के स्थानांतरण पर आपत्ति क्यों हुई । संस्था को यह भी बताना चाहिए कि क्या सिस्टम किसी भी एक अधिकारी के होने या ना होने से ही चलता है यदि सिर्फ एक अधिकारी के होने ना होने से सिस्टम सही या गलत हो रहा है तो प्राधिकरण में मौजूद अन्य 2000 कर्मचारी रखने की जरूरत क्या है?
साथ ही उत्तर प्रदेश में विधायक पंकज सिंह की संतुति पर जब अधिकारियों के अधिकतम 3 वर्ष में ट्रांसफर स्थानांतरण की नीति को लाया गया है तो इस तरीके के ज्ञापनों का औचित्य क्या है, ऐसे ज्ञापन न सिर्फ नए आने वाले अधिकारियों की क्षमता को लेकर ऐसे संगठनों द्वारा संदेह किए जाने को इंगित करते हैं बल्कि इसमें कथित तौर पर ऐसे संगठनों के निजी हित छुपे होने के भी इशारे करते हैं ।
देखा जाए तो किसी भी सरकारी संस्थान में अधिकारियों का स्थानांतरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अधिकारियों के ट्रांसफर पर लोगों के व्यक्तिगत संबंधों के चलते दुख प्रकट करना गलत नहीं है किंतु उसे संगठन के नाम पर ज्ञापन देने की ये नयी परम्परा संविधान, लोकतंत्र और इन प्रधिकरणों के लिए बेहद घातक है। जिले के संरक्षक होने के नाते जिलाधिकारी को भी ऐसे संगठनो से ज्ञापन लेते समय सचेत रहने की आवश्यकता है नहीं तो आने वाले समय में अन्य अधिकारी भी इसी तरीके के संगठनों को आगे करके अपने-अपने स्थानांतरण को रुकवाने की एक नई परंपरा शुरू कर सकते हैं जिससे लोकतंत्र को बड़ा खतरा है ।