आशु भटनागर I कहते हैं अगर किसी चीज की चाहत आप दिल से करो तो पूरी कायनात उसे आपसे मिलने की कोशिश करती है किंतु जिले में मौजूद भाजपा के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता के मामले में किस्मत ऐसा काम करते दिख नहीं रही है । सब जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल गौतम बुद्ध नगर से डॉक्टर महेश शर्मा का टिकट काटकर अपने लिए भाजपा से टिकट के जुगाड़ में लगे हैं । इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके के प्रयोजन सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है शहर में बीते 6 महीने से नमो सेवा केंद्र की स्थापना कर गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने शहर के लोगों को यह बताने की कोशिश की कि वह लोगों की समस्याओं को हल कर सकते हैं इसके साथ ही कई जगह शहर में उनके पोस्टर लगे दिखाई दिए जिसमें मोदी के विजन को गोपाल कृष्ण अग्रवाल आगे बढ़ाएंगे जैसे नारे भी लिखे दिखाई दिए है । पर क्या गोपाल कृष्ण अग्रवाल शहर में संगठन से लेकर जनता तक लोगों की पसंद बन पा रहे हैं या फिर 2014 से टिकट के प्रयास में लगे गोपाल कृष्ण अग्रवाल 2024 में भी किनारे लगा दिए जाएंगे, इस पर चर्चा से पहले उनके प्रयासों को समझते है
व्यक्तित्व
गोपाल कृष्ण अग्रवाल 2014 से गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से टिकट मांग रहे हैं वह संघ से आने वाले एक कार्यकर्ता के पुत्र होने के नाते भाजपा से लगातार टिकट की मांग करते रहें, किंतु परेशानी यह है कि सिर्फ संघ से आने और उनके ज्यादा पढ़े लिखे होने मात्र से चुनावी गणित साधा नहीं जा सकता हैI गौतम बुद्ध नगर की राजनीति में जितने पेंच हैं उसमें गोपाल कृष्ण अग्रवाल अभिमन्यु की भांति हर बार चक्रव्यूह के अंदर ही फंस कर रह जाते हैं । इसका उदाहरण इस तरीके से है कि जब पार्टी के संगठन में गोपाल कृष्ण अग्रवाल के प्रयासों के बारे में पूछा जाता है तो अध्यक्ष स्तर तक के लोग उनको गंभीर दावेदार मानने से इनकार कर देते हैं एनसीआर खबर से एक प्रश्न के जवाब में भाजपा में संगठन के बड़े नेता ने हंसते हुए कहा कि अरे वह तो हर बार ही टिकट मांग रहे होते हैं उनका कुछ नहीं होगा।
राजनैतिक पहचान
गोपाल कृष्ण अग्रवाल की भाजपा के साथ साथ क्षेत्र मे समग्र राजनीतिक पहचान का ना होना भी एक बड़ी समस्या है गौतम बुद्ध नगर भाजपा में राजनीति करने वाले तमाम लोग यह कहते हैं कि गोपाल कृष्ण अग्रवाल की पहचान जिले में उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के बावजूद नगर मैं उनका कोई नहीं जानता है तीन बार से वो हर बार चुनावो से पहले अवतरित होते है और टिकट किसी और का होने के बाद फिर गायब हो जाते हैं हर राजनीतिक तौर पर उनकी यही पहचान उनके टिकट के आने आती है दिल्ली भाजपा के सूत्रों की माने तो कभी अरुण जेटली के करीबी होने के कारण उनको यह जरूर कहा गया था कि आप भी टिकट की तैयारी करो किंतु ना अब अरुण जेटली रहे हैं ना उनके द्वारा दिया गया आश्वासन I ऐसे में संघ के बैकग्राउंड से आने वाले गोपाल कृष्ण अग्रवाल के सामने उनकी राजनीतिक पहचान एक बड़ा संकट है वही भाजपा द्वारा राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को टिकट देने का अनुभव भी अच्छा नहीं रहा है उनसे पहले एक अन्य राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पत्र 2019 में मोदी लहर के बाद बावजूद चुनाव हार चुके हैं
जातीय समीकरण
गौतम बुध नगर सीट पर पिछली बार 22 लाख मतदाता थे इसके अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें एकमात्र सीट नोएडा को नगरीय माना जाता है, जहां वोट जाति नहीं भाजपा के नाम पर पड़ता है। इसके अलावा दादरी, जेवर खुर्जा और सिकंदराबाद सभी सीटों को ग्रामीण या मिश्रित मतदाता के रूप में जाना जाता है और इन चारों ही विधानसभा क्षेत्र में जातीय गणित महत्वपूर्ण होता है I ऐसे में अगर नोएडा के 8.50 लाख वोटो को निकाल दिया जाए तो जातीय गणित में गोपाल कृष्ण अग्रवाल का दावा कमजोर पड़ जाता है। वही वैश्य जाति से भी जिले या फिर यूं कहा जाए पूरे यूपी में के अंदर गोपाल कृष्ण अग्रवाल का कद कैप्टन विकास गुप्ता के सामने कुछ नहीं है । और दिल्ली भाजपा के गलियारों में चर्चा है कि कप्तान विकास गुप्ता स्वयं गाजियाबाद और मेरठ सीटों में से किसी एक सीट पर अपने लिए टिकट मांग रहे हैं ऐसे में इस पूरे समीकरण में गौतम बुद्ध नगर में वैश्य जाति से किसी को भी टिकट मिलना संभव नहीं है।
जनता में अविश्वास
गौतम बुध नगर ने बीते 35 वर्षो से चुनावी पर अपनी राय रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेश बैरागी ने एनसीआर खबर से कहा की गौतम बुध नगर की राजनीति अल्पकालिक राजनेता की जगह पूर्ण कालिक नेता की है । इस जिले को सबसे पहले नवाब सिंह नागर,फिर सुरेंद्र सिंह नागर और उसके बाद डॉक्टर महेश शर्मा जैसे पूर्ण कालिक नेता मिले ।
ऐसे में अब जब जनता डॉक्टर महेश शर्मा के टिकट के बदलाव की राह देख रही है तो उसको उनके मुकाबले भी किसी पूर्णकालिक नेता की ही आवश्यकता है ऐसे नेता जो शहर में ध्यान दें ।
एनसीआर खबर के रिसर्च यूनिट को इन मापदंडों पर गोपाल कृष्ण अग्रवाल के साथ यह समस्या देखी कि वह राष्ट्रीय प्रवक्ता तो रहे हैं किंतु प्रवक्ताओं में भी उनको राजनीतिक मुद्दों की जगह आर्थिक मुद्दों पर ही आगे किया जाता है उनके मुकाबले गौरव भाटिया और संबित पात्रा पार्टी के लिए लगातार सबसे पहले खड़े होते हैं जिसके कारण जिले की जनता में अभी तक गोपाल कृष्ण अग्रवाल को लेकर कोई विश्वास जागृत नहीं हुआ है ।
ऐसे में राजनीतिक तौर पर गोपाल कृष्ण अग्रवाल जनता के बीच कितने पहुंचे हैं और पार्टी में उनके दावे को लेकर कहां तक स्थिति बन रही है। इन सब का आकलन गोपाल कृष्ण अग्रवाल को स्वयं करना पड़ेगा क्योंकि डॉक्टर महेश शर्मा जैसे समृद्ध राजनीतिक व्यक्तित्व का विकल्प बनने के लिए क्या पार्टी उन्हें अवसर देगी या फिर बीते दो बार की तरह इस बार भी गोपाल कृष्ण अग्रवाल को निराशा ही हाथ लगेगी यह आने वाले दिनों में पता लग जाएगा।