राजेश बैरागी । लोकतंत्र की एक सुंदरता यह भी है कि चुनाव में विजयी होने के लिए निकटतम प्रतिद्वंद्वी से आपको एक वोट ही अधिक चाहिए। गौतमबुद्धनगर जिला न्यायालय बार एसोसिएशन के कल 22 दिसंबर को हुए वार्षिक चुनाव में यही देखने को मिला। अध्यक्ष पद जीते उमेश भाटी को कुल पड़े मतों का एक तिहाई मिला। इसके विपरीत उनके प्रतिद्वंद्वियों को कुल मिलाकर दो तिहाई वोट मिले परंतु वे हार गए।
पिछले चुनाव में अध्यक्ष बने कालूराम चौधरी ने आधे से अधिक मत प्राप्त किए थे। पिछले कुछ वर्षों से गौतमबुद्धनगर जिला न्यायालय बार एसोसिएशन का चुनाव काफी महत्वपूर्ण होने लगा है। इस चुनाव पर अधिवक्ताओं के साथ साथ राजनीतिक दलों, जनप्रतिनिधियों और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों की भी दृष्टि लगी रहती है।
चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अधिवक्ता ही होते हैं परंतु चुनाव के दौरान उनके शिविरों में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं का आवागमन रहता है। क्या बार एसोसिएशन जनपद की राजनीति की प्रयोगशाला भी होती है?
आमतौर पर देखने में आता है कि बार एसोसिएशन में सक्रिय अधिकांश अधिवक्ताओं का राजनीतिक दलों से भी जुड़ाव रहता है। बार के अध्यक्ष व सचिव पदों पर लड़ने व जीतने वाले अधिवक्ताओं का एमपी एमएलए चुनाव में उपयोग किया जाता है।
गौतमबुद्धनगर जिले में अधिवक्ताओं और राजनीतिक लोगों का एक दूसरे को चुनावी सहयोग का आदान-प्रदान होता ही है।दो दिन पहले अध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी के शिविर में राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं का जमावड़ा दिखाई दिया था। हालांकि इस प्रत्याशी के हिस्से में हार आयी। इस प्रत्याशी के शिविर में एक महिला अधिवक्ता अपने लिए वोट मांग रही थी।
बेहद शालीन और प्रभावशाली ढंग से वह साथी अधिवक्ताओं को अभिवादन करने के बाद अपना परिचय देती और फिर स्वयं को कनिष्ठ उपाध्यक्ष पद का प्रत्याशी बताकर वोट देने का आग्रह करती।उसे कुल पड़े 2008 वैध मतों में से 1243 मत मिले। उसने अपने प्रतिद्वंद्वी को 478 वोटों से हराया।उस महिला अधिवक्ता का नाम सीमा चौहान है।इस चुनाव की एक खास बात और, अध्यक्ष पद पर जीते उमेश भाटी को अधिकांश युवा अधिवक्ताओं ने वोट दिया। उन्हें अधिकांश महिला अधिवक्ताओं ने भी वोट दिया। उनकी जीत ने बार एसोसिएशन के चुनाव में अपना एकाधिकार चलाने वाले बुर्जुआ अधिवक्ताओं का वर्चस्व समाप्त कर दिया।