राजेश बैरागी । नेता की असल परीक्षा कब होती है?जब चुनाव सिर पर हों और टिकट की घोषणा न हुई हो। ऐसे समय में ऐरे गेरे नत्थू खैरे तक अपने सांसद से सवाल पूछने लगते हैं। गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र के सांसद डॉ महेश शर्मा आजकल इसी परीक्षा से गुजर रहे हैं। क्षेत्र की जनता उनसे सवाल पूछती है। जनता के दो सवालों के जवाब देना बड़ा मुश्किल होता है।
पहला, पांच वर्ष कहां रहे? और दूसरा, पांच वर्षों में क्या किया? जनता के बीच अतिसक्रियता रखने वाले नेता के लिए भी ये सवाल फजीहत कराने के लिए पर्याप्त होते हैं। परंतु नेता का कौशल इसी में देखा जाता है कि वह इन दो सवालों को भी अपने पक्ष में भुना ले। धैर्य खोने से जनता उत्तेजित हो सकती है और हाईकमान नाराज हो सकता है।
जेवर विधानसभा क्षेत्र के एक गांव में हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में एक मतदाता ने सांसद डॉ महेश शर्मा से यही दोनों सवाल पूछ लिए। सांसद ने उसे मोदी और योगी के द्वारा किए जा रहे अनेक कार्य गिनवाए परंतु मतदाता हठी बालक की भांति ‘मैं तो चंद खिलौना लैहों’ की तर्ज पर सांसद से उन्हीं दोनों सवालों का जवाब चाहता था।उसका हठ ढीठता तक बढ़ गया। सांसद ने प्यार दुलार से उसे समझाने की तरकीब की परंतु काम नहीं चला। अंततः सांसद का धैर्य जवाब दे गया।
दरअसल प्रत्येक नेता को हर पांच साल बीतने पर जनता के परीक्षा भवन में जाना ही पड़ता है। यह उसकी कुशलता है कि वह जवाब न जानते हुए भी कॉपी भर दे। धैर्य चुक जाना अच्छे नेता का गुण नहीं है। यदि अपने कार्यों की उपलब्धता नहीं है तो जनता जनार्दन के समक्ष सिर झुका ले। दीनतापूर्वक किए गए समर्पण से भी जनता का हृदय पसीज जाता है।
1977 में आपातकाल के पापों से घिरी इंदिरा गांधी ने जबरन अस्पताल में भर्ती जयप्रकाश नारायण से मुलाकात की।वो जेपी को चाचा कहती थीं। उन्होंने उनसे पूछा, चाचा मैं चुनाव में जनता से क्या कहूं। जेपी ने कहा, जहां भी जाओ, जनता से क्षमा मांगते रहना।’ इंदिरा जी इस बात पर भड़क गईं। उन्होंने जेपी से कहा, जनता मेरे साथ है,हम वोट के अधिकारी हैं। जेपी ने कहा,तब तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता है।1977 के चुनाव परिणाम का यहां उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। वापस गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र में लौट चलते हैं। वहां जनता अपने सांसद से ऊपर लिखे दो सवालों के साथ और भी कई सवालों के जवाब पूछने के लिए रोजाना सांसद की राह देख रही है।