आशु भटनागर I रविवार को नोएडा में मात्र 227 सदस्यो वाली एक एनजीओ का चुनाव था। पूरे शहर में गहमागहमी थी । हमको पूरे दिन वहां रह कर भी समझ नहीं आया कि वो आखिर क्यों थी ? देर रात अपेक्षा के अनुसार परिणाम आए।
परिणाम के बाद जो खिलापिला अपनी हार के प्रति आश्वस्त थे उनको हार मिली और जो अपनी जीत के प्रति खिला पिला कर मस्त थे उनको जबरदस्त बंपर जीत मिली । खैर हारने वाले खुश थे, जीतने वाले उनसे ज्यादा खुश थे
सोमवार की सुबह सो कर उठा तो सुबह-सुबह आफिस जाने से पहले ही वरिष्ठ पत्रकार ओर सलाहकार संपादक राजेश बैरागी आ धमके, बोले शराब पीनी है, मैंने चौंक कर पूछा “सुबह-सुबह” बोले नहीं नहीं पीनी तो चाय है बात नोएडा में हुए चुनाव और उसके लिए पिलाई गई शराब पर करनी है।
मैंने कहा बीती बात बिसारिए अब क्या बचा है, शराब पी ली गई है, प्रबुद्ध कहे जाने वाले वोटरों को शराब पीकर जहां मजा आया वहां वोट दे दिए हैं हारने वालों को दुख नहीं, जीतने वालों को खुशी नहीं आप क्यों बिना मतलब शराब पर चर्चा करना चाहते हैं ।
घूरते हुए बोले जीतने हारने वालों के सदस्यो को लाइव बुलाओ । हमने देर न करते हुए दोनों को स्काइप पर ऑनलाइन बुलाया । जीतने वालों को दाई तरफ हारने वालों को बाईं तरफ बिठाया । हारने वालों ने ऑब्जेक्शन किया बोले हम बाईं तरफ क्यों बैठे । मेने कहा क्योंकि दाए वाले हमेशा राइट साइड होते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार से रहा नही गया उन्होंने हमारी बात काटते हुए हारने वाले पैनल के प्रवक्ता से पूछा कि हारने के बाद आपको कैसा लग रहा है । बोले हमें तो हारने का शौक है बरसों से हारते आ रहें हैं बस अफसोस इस बात का है कि हमारे शराब और नॉनवेज में लोगों को मजा नहीं आया इसलिए प्रबुद्ध वोटर्स ने हमको वोट नहीं दिया ।
मैंने पूछा क्या प्रबुद्ध वोटर भी शराब पीकर ही वोट दे रहे थे बोले नहीं पीने की बात नहीं थी पिलाने की क्वालिटी पर बात थी । वरिष्ठ पत्रकार फिर बीच में बोल पड़े पूछने लगे क्या प्रबुद्ध वोटर के लिए मुद्दे कोई मायने नहीं रखते हैं । हारने वाले पैनल के सदस्य का मुंह लटक गया बोले मुद्दे तो हमारे लिए भी मायने नहीं रखते हैं । मुद्दा तो बस इस बार फिर से हारने का था तो बस हम हार गए ।
इतना सुनते ही मैंने हड़बड़ा कर दाईं ओर बैठे जीतने वाले पैनल के प्रवक्ता को पूछा जीतने के बाद कैसा लग रहा है सुना है आपकी शराब में लोगों को ज्यादा मजा आया है बोले इसमें शराब नहीं हमारे नेतृत्व की कार्य कुशलता ज्यादा हैं। यह हमारे अध्यक्ष के कार्य कुशलता है जिन्होंने पूरे पैनल का एक भी पैसा खर्च नहीं होने दिया।
वरिष्ठ पत्रकार चौक कर बोले क्या मतलब क्या शराब के लिए पैनल के सदस्यों की जगह सिर्फ अध्यक्ष ने ही पैसा दिया, बोले शराब की तो बात ही नहीं हो रही है यहां तो फार्म खरीदने से लेकर प्रचार के सारे मापदंडों पर हमारा नेतृत्व बेहद कार्य कुशल है इसीलिए सभी मेंबरों ने जान लड़ा दी है वरिष्ठ पत्रकार से रुका नहीं गया वह फिर पूछ बैठे हैं तो क्या यह चुनाव शराब के साथ धनबल का भी है बोले हमें इससे मतलब नहीं है मुद्दा चुनाव जीतने का है हम लगातार जीतते आ रहे हैं और हम फिर एक बार जीत गए हैं ।
मामला गर्म होते देखा हमने दोनों सदस्यों को विदा किया वरिष्ठ पत्रकार की शराब मेरा मतलब है चाय अभी ठंडी ही हो रही थी धर्मपत्नी नई चाय आकर रख गई । इतने में ही निर्दलीय प्रत्याशी की विंडो खुली और बोले मुझे पांच ही वोट मिले तो इसका मतलब मुझे चर्चा में भी नहीं रखोगे । हम थोड़ा सपकाए थोड़ा हड़बड़ाए, हमने कहा ऐसा नहीं है फिर भी गलती के लिए क्षमा चाहते हैं ।
वरिष्ठ पत्रकार तो पहले तैयार बैठे हैं आप भी चर्चा कर लीजिए निर्दलीय प्रत्याशी ने दावा किया कि उन्हें 10 लोगों ने फोन करके कहा कि उनके वोट उन्हीं को गए हैं किंतु वोट सिर्फ पांच मिले एक तो उनका अपना वोट था ऐसे में इसमें कहीं तो घोटाला हुआ है । हमने कहा सारी रिकॉर्डिंग हुई है आप गलत कैसे कह सकते हैं बोले यही तो लोकतत्र है । चुनाव अधिकारी भी अपने व्हाट्सएप पर लूजर के लिए कटाक्ष करता हुआ स्टेटस लगा रहे हैं । हमने उन्हें सांत्वना देकर धैर्य रखने को कहा ।
वरिष्ठ पत्रकार पूछ बैठे महाराज अब क्या करेंगे निर्दलीय प्रत्याशी बोले हम क्या करेंगे हम तो सिर्फ हवन करेंगे । रामराज्य है जो जीत गया है वह भी कार्य नहीं करेगा और ये कहते ही उनका विंडो लोग आउट हो गया ।
अब चौकने की बारी हमारी थी हमने वरिष्ठ पत्रकार से पूछा कि आपके 35 साल के पत्रकारिता में अपने 22 साल पुरानी इस संस्था को कभी कोई कार्य करते देखा है ।
वरिष्ठ पत्रकार गंभीर हो कर बोले, ऐसी संस्थाएं काम करने के लिए नहीं सरकारी अधिकारियों के काम पर उंगली उठाने वालों का सेफ्टी वाल्व बनने के लिए होती है । उनके सहारे अपनी ठेकेदारियां, राजनीति और बिजनेस चमकाने के लिए होती है। इसलिए इनमें हारने वाले और जीतने वाले दोनों खुश रहते हैं , एक हारने के लिए लड़ता है और एक जीतने के लिए मगर हिस्सा सबका बराबर रहता है ।
हमने देखा उनकी चाय समाप्त हो रही थी हमने कहा चलो गुरु ऑफिस चलते हैं वहीं बैठ कर बातें करेंगे । घर में रहेंगे तो हमारे बच्चों को भी पता लग जाएगा कि उनकी किताब के 15 वे पन्ने पर लिख वाक्य ” शराब पीना, झूठ बोलना पाप है” असल मे गलत है आज के दौर में सच बोलना ज्यादा बड़ा पाप है और उससे भी बड़ा पाप ऐसे सच को यू ट्यूब पर रिकॉर्ड करना है अखबार में छाप देना है । ऐसे चैनलों को लोग ब्लॉक कर देते हैं और अखबारों को लोग हल्ला बोल जला देते हैं इसलिए गुरु किसने शराब पी किसने पिलाई उसको छोड़ो गाड़ी में बैठ कर ये गजल सुनो हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी शराब ही तो पी है …