वो एक मासूम बेजुबान बच्ची थी I उसमे अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा था I वो कुत्ते बेजुबान हैं या खूंखार हैं ये भी नहीं जानती थी I उसको अभी ठीक से उनको मारना या उकसाना तो छोडिये बोलना भी नहीं आया था I मगर हाय ये दुर्भाग्य! बच्ची को इस उम्र में देवी की तरह पूजे जाने की परम्परा वाले इस देश के जनता विरोधी ABC कानून, नाकारा सिस्टम और एक महत्वाकांक्षी, अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाली और तानाशाह सोच की नेत्री के पशु प्रेमी सेना के कारण बेबस माँ की एक अबोध मासूम बच्ची इस तथाकथित बेजुबान जानवर के हाथो मारी गयी I घटना का दुखद पक्ष ये है कि घर के बाहर खेल रही बच्ची का इनसे कोई विवाद नहीं था I क्षेत्र के लोगो के आरोप है कि इन आवारा कुत्तों को एक महिला खाना खिलाने आती है। इस वजह से भी वहां पर कुत्तों का झुंड जमा हो जाता है। स्थानीय लोग इस पर पहले भी अपनी आपत्ति भी जता चुके हैं।
मृत डेढ़ साल की बच्ची अपने परिवार के साथ तुगलक लेन के चमन घाट इलाके में रहती थी। उसके पिता राहुल कपड़े में प्रेस करने का काम करते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि रात को पीड़ित के घर के बाहर कुत्ते घूम रहे थे। बच्ची खाना खाकर घर से बाहर निकली कि अचानक से कुत्तों से उसपर हमला कर दिया। लोगो ने जब देखा तो तीन कुत्ते उसके शरीर को नोच रहे थे I बच्ची को सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया जहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया I
घटना के बाद एक बार फिर से ABC रूल्स के नाम पर बने तुगलगी कानूनों पर उठे प्रश्न
नॉएडा में ऐसे ही एक ७ माह के बच्चे को आवारा कुत्तो द्वारा मार डालने के बाद दिल्ली एनसीआर में ये दूसरी घटना है जब आवारा कुत्तो ने किसी मासूम को अपना शिकार बनाया है I दुःख की बात ये है कि नॉएडा की तरह इस बच्ची के माँ बाप भी बेहद गरीब है I जो किसी राजनेत्री की NGO की शह पर चलने वाले कुत्ता फीडर गैंग के खाना खिलाने के धंधे के चलते अपनी मासूम बेटी को खो दिए है जिसने अपनी ठीक से माँ पापा बोलना भी नहीं सीखा था I
बच्ची के मरने केबाद कुत्ता फीडर गैंग हमेशा की तरह इस घटना को लेकर तमाम कुतर्क और कुत्तो को लेकर धार्मिक अन्धविश्वास की कहानियो को सुनाने पर उतर आएगा, लोगो को उनके नाम पर कानून की आड़ में डराने से लेकर बददुआये देने पर सामने आएगा I वहीं जनता के पैसे से लाखों रुपये का वेतन लेकर सरकार में बैठे अधिकारियों का कुछ नहीं होगा। दिखाने के नाम पर कागजी कार्रवाई होगी और मामला फाइलों में दबकर शांत हो जाएगा। कोई पूछेगा तो वहीं, रटा-रटा बयान होगा कि वह बंध्याकरण कर रहे हैं, लेकिन कुत्ता फीडर उन्हें कार्रवाई नहीं करते देते हैं। पुलिस दबाब की बात कह कर पल्ला झाड लेगी और आम आदमी फिर किसी और दुभाग्यपूर्ण घटना के ना होने की प्रार्थना करेगा किन्तु वो भी नहीं होगा I फिर कोई घटना किसी के मासूम को उससे छीन लेगी I
इस देश में राजनेताओ और उनकी NGO ने तमाम झूठो के साथ एक झूठ को बोल कर ये कानून भी स्थापित करवाया है कि कुत्तो को रिलोकेट नहीं किया जा सकता है I उनके क्षेत्र होते है I क्योंकि इसी झूठ की आड़ में मेडिकल माफिया के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष डोनेशन पर पल रही NGO को भारत में कुत्तो को नाम पर लोगो की जान से खेलने का मौका मिलता है I
ऐसे में इनको क्या फर्क पड़ता है अगर इससे कितने घरो के चिराग बुझ जाते है ? क्या फर्क पड़ता है अगर इससे कितने माँ बाप टूट जाते है ? क्या फर्क पड़ता है अगर इससे वो लोग भी जेल चलते जाते है जिन्होंने जीवन भर जेल तो छोडिये थाने का भी मुह नहीं देखा होता है ?
दिल्ली एनसीआर की बात करें तो यहाँ हर साल कुत्तों द्वारा लोगों को काटे जाने की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन स्थिति यह है कि इसका कोई समाधान अभी तक नहीं है। प्रशासन कभी कुत्ता प्रेमियों द्वारा कार्रवाई के बीच में आने या फिर लोगों द्वारा कार्रवाई को रोकने की बात कहकर पीछा छुडा लेता है, लेकिन कार्रवाई नहीं होती। हो भी कहाँ से क्योंकि कार्यवाही को रोकने के लिए इस देश में मौजद एक राजनेत्री के सिस्टम आगे शक्तिशाली देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बेबस हैं या फिर यूँ कहे कि सरकार भले ही उनकी है सिस्टम उस राजनेता का है I
प्रश्न ये भी है कि दस वर्षो में सरकारे ABC रूल्स के नाम पर चल रहे इस गोरखधंधे को समाप्त क्यूँ नहीं करना चाहती है I क्या वाकई इन मासूमो के जीवन अधिकार कुत्तो के जीवन से जयादा महत्वपूर्ण है ? क्या सरकारे और प्रशसनिक अधिकारियों को गरीबो के बच्चो के जीवन इन कुत्तो के आगे किसी काम के नहीं है I
कुत्तो के आतंक से परेशान लोगो के लिए कानूनों की आड़ में पीडितो को फंसाने के धंधे पर रोक के लिए सरकारों, न्यायालय के पास कब समय होगा ? क्या लोकसभा चुनावों में आवारा कुत्तो को रिहाईश से बाहर शैल्टर होम्स में रखने को लेकर कोई नियम आएगा ? क्या नोएडा के समाजसेवी जोगिन्दर सिंह की तरह हर निवासी अब खूंखार कुत्तो के आतंक से अपने बच्चो को बचाने के लिए बन्दूक का लाइसेंस लेने की मांग करने लगेंगे ? क्या सरकारे, न्यायालय और नौकरशाह कुत्तो के आतंक पर किसी गृह युद्ध जैसी सम्भावना के बाद ही जागेंगे अब यही प्रश्न हर ओर है I
लोगो का कहना है कि कुत्तो के आतंक से आम जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है किन्तु क्या इस आम जनता के दर्द की आवाज़ प्रधानमंत्री या फिर सिस्टम में बैठे उन नौकरशाहों और न्याय मूर्तियों तक नहीं पहुँचते है ? या फिर मेडिकल माफिया के आगे इस देश का लोकतंत्र नतमस्तक है I क्या आतंकवादियों के लिए रात को खुलने वाले सुप्रीम कोर्ट इस बच्ची के लिए कोई स्वत: संज्ञान लेगा या फिर आम जनता को कुत्तो के आतंक के लिए दिल्ली एनसीआर की सडको पर किसानो की तरह हिंसक आन्दोलन पर उतरना पड़ेगा तभी इस देश में कोई इन मासूमो के हत्यारों पर कोई कानून लाएगा I