राजेश बैरागी I पिछले 31 वर्षों में दादरी (गौतमबुद्धनगर) की राजनीति में क्या अंतर आया है? यह सवाल इसलिए पैदा हुआ है कि गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी डॉ महेंद्र नागर का पूरा फोकस गुर्जर बिरादरी में अपने गौत्र के मतदाताओं पर केंद्रित है। यह 1993 में दादरी विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े दूध डेयरी किंग स्व. वेदराम नागर के चुनाव जैसा ही है जो नागर गुर्जर वोटों को एकजुट करने के चक्कर में सबसे महंगा चुनाव लड़ने के बावजूद हार गए थे।
गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट से तीसरी बार में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी बने डॉ महेंद्र सिंह नागर का चुनाव प्रचार नामांकन के बाद से जोर पकड़ रहा है। उनके साथ सपा का स्थानीय संगठन के साथ साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी भी पूरी शिद्दत से चुनाव अभियान में लगे हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार की शुरुआत दादरी विधानसभा क्षेत्र के नागर गुर्जर बाहुल्य गांवों की एक संयुक्त बैठक से की। दावा किया गया कि उस बैठक में 18 गांवों के महत्वपूर्ण लोग शामिल थे।माना जा रहा है कि सपा प्रत्याशी जो स्वयं नागर गौत्र से हैं, उन्होंने अपने घर को सबसे पहले ठीक करने की रणनीति के तहत ऐसा किया। हालांकि दादरी विधानसभा सीट पर गुर्जर मतदाताओं का वर्चस्व होने के बावजूद भाटी और नागर गौत्र के गुर्जर मतदाताओं में भी वर्चस्व की जंग चलती है। इससे भाटी गौत्र के मतदाताओं में गलत संदेश भी गया।
आज रविवार को दादरी विधानसभा के खैरपुर गांव में आयोजित सपा प्रत्याशी की चुनावी सभा में उठे एक मुद्दे ने 1993 में यहां से विधायक का चुनाव लड़े दूध डेयरी किंग स्व वेदराम नागर के चुनाव की याद ताजा कर दी।वे तिलपता गांव में चुनाव प्रचार करने आए तो उन्होंने गांव में ब्याही नागर गौत्र की बहन बेटियों को भेंट स्वरूप सौ सौ रुपए दिए।तब किसी मुंहफट व्यक्ति ने कहा था कि भैया को चुनाव में ही बहनों को भेंट देने की याद क्यों आई है।
बताने की आवश्यकता नहीं है कि वेदराम नागर वह चुनाव हार गए थे। सपा प्रत्याशी की ओर से आज खैरपुर गांव में ऐसे ही नागर गौत्र की महिलाओं को भेंट देने की बात कही गई। उन्होंने गांववासियों से नागर गौत्र की महिलाओं की सूची बनाकर देने को कहा। चुनाव प्रचार में मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रत्याशियों द्वारा हर प्रकार के हथकंडे अपनाए जाते हैं। अपने गौत्र की महिलाओं को भेंट देना या देने की घोषणा करना भी वोट पाने का एक हथकंडा ही है। हालांकि समाज के लोग इसे मान सम्मान से भी जोड़ते हैं जबकि अन्य गौत्र के सजातीय लोगों को यह भेदभाव अखरता भी है। चुनाव ऐसे ही विरोध समर्थन से होता हुआ मतदान तक पहुंचता है।