राजेश बैरागी I क्या सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने लिए आवश्यक आधारभूत ढांचा सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है और क्या सबको शिक्षा अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी केवल शिक्षकों की ही है? समय से विद्यालय पहुंचने की अनिवार्यता के तहत शिक्षकों को ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने के आदेश के विरुद्ध आंदोलन कर रहे शिक्षकों ने सरकारी विद्यालयों की वास्तविक स्थिति सामने रखकर सरकार को ही आईना दिखाना शुरू कर दिया है। शिक्षकों का दावा है कि ऑनलाइन उपस्थिति के माध्यम से सरकार शिक्षा का निजीकरण करना चाहती है।
अपने विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए प्रयासरत उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने शिक्षकों पर ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने का चाबुक चला दिया है। एक आदेश के अनुसार प्रत्येक शिक्षक को विद्यालय पहुंचने के 15 मिनट के अंदर अपनी फेस आईडी के साथ ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराना अनिवार्य कर दिया गया है। इससे विलंब होने पर शिक्षक का वेतन काटने और उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।
दरअसल यह शिकायत आम है कि शिक्षक अपने कर्तव्यों का निर्वाह ठीक से नहीं करते हैं।देर सबेर विद्यालय पहुंचना, कभी भी बिना सूचना अवकाश ले लेना और विद्यालय पहुंचकर भी शिक्षण कार्य में रुचि न लेना जैसे आरोप शिक्षकों पर लगते रहते हैं। इन्हीं कारणों से सरकारी विद्यालयों के स्तर में काफी गिरावट आई है। सक्षम लोगों से लेकर सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, राजनेता और स्वयं शिक्षक भी अपने बच्चों को सरकारी के स्थान पर निजी विद्यालयों में पढ़ाने को महत्व देते हैं। क्या सरकारी विद्यालयों के गिरते स्तर के लिए केवल शिक्षकों की लापरवाही ही जिम्मेदार है? ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने की अनिवार्यता लागू होने के विरोध में आंदोलन कर रहे शिक्षकों ने विद्यालयों के प्रति सरकारी रवैए की ही पोल खोलनी शुरू कर दी है। शिक्षक सरकार से पूछ रहे हैं कि क्या सरकारी विद्यालयों में बच्चों को पुस्तकें, फर्नीचर,न टपकने वाले भवन, निर्बाध बिजली आपूर्ति, निर्बाध इंटरनेट नेटवर्क उपलब्ध करा दिया गया है? विद्यालयों तक पहुंचने के क्षतिग्रस्त मार्गों की क्या स्थिति है?
विद्यालयों में बच्चों की संख्या और उपस्थिति बढ़ाने के लिए बाल श्रम और बाल मजदूरी पर रोक लगाने के क्या उपाय किए गए हैं? विद्यालयों में प्रधानाध्यापक पदों पर प्रोन्नति, डाटा फीडिंग क्लर्क की नियुक्ति, सफाई कर्मचारी की उपलब्धता और शिक्षकों की गृह जनपद में नियुक्ति के नियमों का पालन होना भी शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों में शामिल हैं जिन्हें सरकार द्वारा पूरा नहीं किया जा रहा है। शिक्षक किसी नयी योजना लागू करने से पहले शिक्षकों से विचार विमर्श न करने, अवकाश के दिनों में कराए जाने वाले कार्य का भत्ता या प्रतिकर न देने, आकस्मिक आधे दिन का अवकाश न मिलने और सबसे ऊपर सेवानिवृत्ति पर शिक्षकों को सम्मानित अथवा प्रशस्ति पत्र तक न देने से आहत हैं।
शिक्षकों द्वारा उठाए जा रहे इन मुद्दों पर सरकार मौन है। उधर शिक्षकों ने सरकार द्वारा उनकी समस्याओं पर प्रभावी कार्रवाई न होने तक ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने से इंकार कर दिया है। दरअसल किसी भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक और शिक्षा विभाग दो महत्वपूर्ण हिस्से हैं। शिक्षकों के लापरवाह और शिक्षण कार्य में रुचि न लेने के लिए शिक्षकों से अधिक शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। बेसिक शिक्षा अधिकारी, जिला विद्यालय निरीक्षक और उनके कार्यालयों में दिनभर शिक्षकों को प्रताड़ित कर उनके साथ लेनदेन की सौदेबाजी चलती रहती है। निजी विद्यालयों से होने वाली अवैध आमदनी के चलते भी सरकारी विद्यालयों की दशा बिगाड़े रखने की साज़िश भी शिक्षा विभाग का ही एक मुख्य उपक्रम है।(