सुशोभित। लगता है राहुल गांधी चुनावी-मोड से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं। वे ‘राजनीति’ और ‘राष्ट्रनीति’ का भेद भी समझ नहीं पा रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष के रूप में संसद में अपने पहले भाषण से उन्होंने अपने कई समर्थकों को निराश किया, वहीं विरोधियों को आक्रमण करने का अवसर दे दिया।
राहुल ने कहा- “जो लोग ख़ुद को हिन्दू कहते हैं…”
इस तरह की बातें कहने की क्या ज़रूरत है और वह भी हिन्दू शब्द का इस्तेमाल करके?
हमने यह तो कभी नहीं सुना कि “जो लोग ख़ुद को मुसलमान कहते हैं…”
उलटे हमें तो बार-बार यह बताया जाता है कि ‘आतंकवादी’ लोग ‘सच्चे मुसलमान’ नहीं हैं और “हर मुसलमान आतंकवादी नहीं है”, फिर राहुल को यह कहने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई कि- “जो लोग ख़ुद को हिन्दू कहते हैं, वो हिंसा और नफ़रत फैला रहे हैं।”
बात बिगड़ती देखकर तुरंत ही राहुल ने कहा कि वे भाजपा-आरएसएस की बात कर रहे हैं और भाजपा-आरएसएस सम्पूर्ण हिन्दू समुदाय नहीं है, पर तब तक तीर तरकश से निकल चुका था।
राहुल ने ये भी कहा कि “आप हिन्दू हो ही नहीं…”- अब राहुल गांधी देश को यह भी बताएँगे कि कौन हिन्दू है और कौन नहीं? और उनकी दृष्टि में हिन्दू होने की परिभाषा क्या है? मुझे संशय है कि उन्हें इस बारे में कुछ गम्भीर ज्ञान होगा।
तब भी इस बात को स्वीकारा जा सकता था, अगर वो इतने ही दम से यह कहते पाए जाते कि- “जो लोग ख़ुद को मुसलमान कहते हैं…” या “आप मुसलमान हो ही नहीं…”। चाहें तो इसमें सही स्थान पर ‘ईसाई’ शब्द रखकर भी वाक्य बना सकते हैं।
जो किसी आक्षेपकारी वाक्य में उतने ही दमखम से ‘मुसलमान’ शब्द नहीं कह सकता, उसको ‘हिन्दू’ शब्द कहने का भी अधिकार नहीं है!
राहुल ने भगवान शिव का चित्र भी लहराया और ‘अभयमुद्रा’ का हवाला दिया। उन्हें शिव के ‘ताण्डव’ का भी कुछ ज्ञान होगा, इसमें संदेह है।
सत्तारूढ़ पार्टी की नीति-रीति से निराश कई लोगों ने- जिनमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है- विपक्ष में कोई और उजला चेहरा न पाकर लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी का समर्थन किया था। उनमें से कई लोग आज मेरी तरह राहुल गांधी की इस बकवास से मायूस हुए होंगे।
चुनाव ख़त्म हुए, यह संसद चलाने और रचनात्मक-राजनीति करने का समय है। लेकिन राहुल- जिनके पास जीवन में पहली बार कोई संवैधानिक पद आया है- ने एक बार फिर स्वयं को अपरिपक्व सिद्ध कर दिया है।
सुशोभित की फेसबुक वाल से