गांव में प्रधानी और ब्लॉक प्रमुख के चुनावो के कारण कितनी दुश्मनियां और भ्रष्टाचार की कितनी कहानियां जन्म लेती हैं, यह सब जानते हैं किंतु तेजी से बढ़ते शहरों में प्रधानी और ब्लॉक प्रमुख के नए रूप आरडब्ल्यूए और एओए बनते जा रहे हैं। बीते कुछ दिनों की घटनाओं पर नजर डालिए ।
नोएडा के सेक्टर 11 की महिला आरडब्ल्यूए अध्यक्ष को दूसरे पक्ष के लोगों ने एजीएम बुलाकर बोलने तक नहीं दिया और जबरदस्ती चुनाव की घोषणा कर दी बाद में उक्त महिला का नामांकन भी कैंसिल कर दिया। महिला अध्यक्ष अंजना भागी का आरोप है कि शेष पदाधिकारी अपने भ्रष्टाचार पर बात ही ना हो इसलिए 2 साल से पहले ही चुनाव का प्रस्ताव ले आये I सेक्टर 108 में आरडब्ल्यूए के कार्यकाल पूरा होने के बावजूद विरोधी पक्ष के सुरेश छाबड़ा लगातार सेक्टर से लेकर रजिस्ट्रार के यहां तक के चक्कर लगा रहे हैं ।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट की अम्रपाली लेजर वैली में हर तीन माह में अध्यक्ष बदले जाने और काम ना होने से परेशान होकर जीबीएम बुलाकर को भंग कर दिया तो वही अरिहंत अंबर सोसाइटी में चुनाव के बाद नई कार्यकारिणी को ट्रांसफर देते समय लोगों ने पुराने सचिव अमित गुप्ता पर जानलेवा हमला कर दिया मामला पुलिस में है । नोएडा के आम्रपाली जोडिएक में पूर्व अध्यक्ष जोगिन्दर सिंह और वर्तमान एओए के सदस्यों गौरव असाती एवं अन्य के बीच हाथापाई की नौबत आई जिसमें दोनों पक्षों ने पुलिस में अपनी शिकायत दी पुलिस ने दोनों से शांति भंग के आरोप में मुचलके भरवाये ।
यह महज कुछ उदाहरण है जो बीते कुछ दिनों में बेहद चर्चित हुए हैं किंतु ऐसे उदाहरणों की लिस्ट अंतहीन है। हर सेक्टर के आरडब्ल्यूए और सोसाइटी के एओए में इस तरीके के झगड़ा और सोसाइटी में आने वाले बड़े फंड का नाजायज फायदा उठाने के लिए आपस में तमाम झगड़ा होना आम बात हो गई है। यह झगड़ा तू तू मैं में से शुरू होकर हाथापाई तक पहुंच जाते हैं और बाद में पुलिस तक भी पहुंचते हैं गौतम बुद्ध नगर पुलिस कमिश्नरेट के सूत्रों की माने तो औसतन हर रोज किसी न किसी सेक्टर या सोसाइटी में पुलिस शांति भंग के कम से कम 10 से 15 लोगों के खिलाफ मुकदमे लिख रही होती है । आंकड़ों के हिसाब से फिलहाल नोएडा ग्रेटर नोएडा में सेक्टर और सोसाइटी की राजनीति में लगे नेताओं के मुकदमों की संख्या 5000 पार कर चुकी है।
सबसे बड़ी समस्या है कि इन आरडब्ल्यूए और एओए का कोई सरकारी ऑडिट या हस्तक्षेप नहीं है पहले भी यह मांग की गई कि अगर प्राधिकरण आरडब्ल्यूए और एओए को नगर निगम के पार्षदों के तौर पर परिवर्तित कर दे तो इससे जहां एक और प्राधिकरण के काम करने की समस्याओं में कमी आएगी वही इन पर प्रशासन का हस्तक्षेप बढ़ेगा जिससे लगभग हर सेक्टर और सोसाइटी में बार-बार चुनाव समय से न होने या फिर वित्तीय अनिताओं के आरोपी के कारण होने वाले झगड़ों में कमी आएगी किंतु प्राधिकरण में भी इस पर आज तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या सरकार और अधिकारी स्वयं यह चाहते हैं कि ऐसे झगड़ा हाथापाई के बाद अब खूनी रूप में परिवर्तित हो जाए या फिर इनको लेकर उत्तर प्रदेश सरकार कोई बड़ा कदम उठाएगी ।