राजेश बैरागी । क्या नोएडा के आरडब्ल्यूए के संघ के तौर पर निर्वाचित होने वाली फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजीडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशन (फोनरवा) एक दिखावटी संस्था है या सांसद विधायक और अधिकारियों से संबंध बनाकर दलाली करने का साधन है? सेक्टरों के आरडब्ल्यूए चुनाव के विवाद में इस संघीय संस्था का गूंगा बहरा हो जाने से इसकी आवश्यकता पर ही प्रश्न खड़े हो गए हैं।
नोएडा के लगभग सवा सौ आवासीय सेक्टरों की आरडब्ल्यूए की संघीय संस्था फोनरवा के अस्तित्व को लेकर आजकल काफी सवाल उठ रहे हैं। पूछा जा रहा है कि यह संस्था वास्तव में है किस लिए। इस संस्था के चुनाव में सभी आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष और सचिव मतदान करते हैं। अध्यक्ष और महासचिव समेत फोनरवा के पदों पर आसीन होने के लिए प्रत्याशियों द्वारा सभी हथकंडे आजमाए जाते हैं। पदों पर बने रहने के लिए संस्था के विधान की मनचाही व्याख्या की जाती हैं।
सांसद और विधायक भी फोनरवा के चुनाव में खासी दिलचस्पी रखते हैं। यह नोएडा की सभी आरडब्ल्यूए की प्रतिनिधि सभा होने का दावा करती है जबकि प्रत्येक आवासीय सेक्टर में वहां की आरडब्ल्यूए अपनी क्षमता अनुसार अपने सेक्टर वासियों के लिए काम करती ही हैं। फिर फोनरवा का उपयोग क्या है? क्या यह यह नोएडा वासियों की प्रतिनिधि संस्था होने के तौर पर कोई खास महत्व रखती है? क्या इसके पदाधिकारी इसी बूते पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ अपने संबंधों को स्थापित कर लाभान्वित होते हैं और क्या इसी के बल पर नोएडा प्राधिकरण, पुलिस आदि सरकारी तंत्र से लाभ उठाते हैं?
सीधे तौर पर कहा जाए तो क्या यह संस्था अपने पदाधिकारियों के लिए पुलिस प्रशासन और राजनीतिक लोगों के लिए दलाली करने का माध्यम बन गई है?जिन आरडब्ल्यूए के पदाधिकारियों के बूते इस संस्था का अस्तित्व बनता है,उन आरडब्ल्यूए के चुनाव में यह संस्था गांधी जी के तीन बंदरों का अनुसरण करती दिखाई पड़ती है। दरअसल इसके पदाधिकारियों को अपने धंधों और अपने वजूद को बचाए रखने के सिवाय कुछ सूझता नहीं है। कभी कभार किसी विभाग या सांसद विधायक के साथ बैठक कराने और कोरे आश्वासनों पर चल रही इस संस्था के प्रति नोएडा के निवासी भी बहुत गंभीर नहीं रहते हैं।