लोकतांत्रिक भारत की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के लिए क्रिकेट कितना जरूरी है यह हमने कई बार देखा है । पड़ोसी देश बांग्लादेश में इन दिनों सब कुछ सही नही है । छात्रों के उग्र आंदोलन की आड़ में वहां कट्टरपंथियों ने सरकार बना ली और अपने ही देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को निर्वासित कर दिया, वही शेख हसीना जो आजकल भारत में शरण ली हुई है और उसके लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार लगातार भारत को प्रतिबंध की धमकियां दे रही है ।
बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद सबसे ज्यादा हमले वहां के हिंदुओं पर हुए बांग्लादेशी नेताओं ने भारत पर प्रतिबंध लगाते हुए हिलसा मछली का निर्यात रोक दिया किंतु इसे भारत की महानता कहीं या भारत सरकार की कायरता कि भारत बांग्लादेश को की क्रिकेट टीम को यहां खेलने के लिए रोक नहीं पाया ।
भारत और बांग्लादेश के दो टेस्ट मैच होने हैं जिसमें पहला मैच चेन्नई के एम ए चिदंबरम स्टेडियम में 19 सितंबर से होगा। ऐसे में एक बार फिर से यह चर्चाएं शुरू हो गई है कि क्या भारत के लिए अपने देश में हिंसक विचार और उसके खिलाफ प्रतिबंध लगा रहे देश के साथ क्रिकेट खेलना बेहद जरूरी है । ऐसे समय में जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार लगातार भारत पर तमाम आरोप लगाकर उसकी जमकर विरोध कर रही है तब यहां बांग्लादेश की टीम को बुलाकर क्रिकेट खेलने का क्या मतलब है ।
देखा जाए तो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की कई ऐसे फैसलों के लिए लगातार आलोचना होती रही है । जहां पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा था और भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होते रहते थे यहां के फिल्मी कलाकार यहां आकर काम करते रहते थे ।
भाजपा ने इसे हमेशा बड़ा मुद्दा बनाया और इसके विरोध को लेकर भारतीय जनमानस की भावनाओं को खूब समझा किंतु वहीं भाजपा अब क्या कांग्रेस का नया संस्करण बनने जा रही है जो पाकिस्तान की तरह बन रहे बांग्लादेश के साथ क्रिकेट और फिल्मी संबंध होल्ड करने को भी तैयार नहीं है ।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को जल्द ही यह संदेश देने पड़ेंगे कि अगर बांग्लादेश जैसा छोटा देश भारत को सम्मान देने को तैयार नहीं है, अगर बांग्लादेश अपने यहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार बंद करने को तैयार नहीं है तो भारत भी उसके साथ फिल्मी और क्रिकेट जैसे डिप्लोमेटिक संबंधों को होल्ड कर सकता है ।