राजेश बैरागी । एक पत्नी और रखैल में मूल अंतर क्या होता है? इस प्रश्न को फिर कभी हल करने का प्रयास करेंगे। फिलहाल जनपद गौतमबुद्धनगर के एक पत्रकार सहित तीन लोगों को कमिश्नरेट पुलिस द्वारा धमकी देकर रंगदारी मांगने जैसी गंभीर धाराओं में जेल भेजने का मामला गर्म है। अपराध कर्म में जेल जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और पत्रकार भी इस प्रक्रिया से अछूते नहीं हैं।
दरअसल यह कहानी लगभग दस माह पुरानी है जब जनपद गौतमबुद्धनगर के स्वनामधन्य कबाड़ माफिया रवि काना को स्थानीय पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर उसके काले साम्राज्य को ध्वस्त किया गया।उसी समय यह भी प्रकाश में आया कि रवि काना और उसके गिरोह को कुछ ऐसे लोगों का संरक्षण प्राप्त था जो पेशे से कबाड़ के धंधे में नहीं थे। पुलिस की जांच आगे बढ़ी तो ऐसे लोगों का कच्चा चिट्ठा सामने आने लगा।
पुलिस सूत्र बताते हैं इनमें न केवल पत्रकार बल्कि राजनेता और स्वयं पुलिस विभाग के लोग भी शामिल पाए गए। लंबी जांच पड़ताल के बाद एक पत्रकार पंकज पराशर और उसके दो साथियों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस और राजनीतिक संरक्षकों का क्या होगा? आशा की जानी चाहिए कि कमिश्नरेट पुलिस ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई मुरव्वत नहीं बरतेगी।
बागपत जिले से गौतमबुद्धनगर आकर पत्रकारिता के साथ कथित तौर पर कबाड़ माफिया को संरक्षण देने के धंधे में शामिल हुए पंकज पराशर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। कुछ वर्षों में ही जाना पहचाना नाम बन जाना मुश्किल नहीं है तो आसान भी नहीं है। इसके लिए सभी प्रकार के हथकंडे आजमाए गए। एक राजनेता का संरक्षण काफी मुफीद साबित हुआ। हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि पुलिस कार्रवाई होते ही राजनेता ने उससे दूरी बना ली है।
पंकज पराशर का यह हश्र क्यों हुआ? दरअसल सफलता के पायदानों पर निरंतर कुलांचे भरने वाला अक्सर भले बुरे का अंतर करना बंद कर देता है। सत्ता संरक्षण ऐसे व्यक्ति को न केवल अहंकारी बल्कि हठी भी बना देता है। अपनी रौ में बह रहा ऐसा व्यक्ति निजाम बदलने पर भी नहीं बदलता। पंकज पराशर का अपराध चाहे जो हो, उसकी हनक और ठसक उसे जेल तक पहुंचाने में काफी मददगार साबित हुई है।