आशु भटनागर I मंगलवार को गौतम बुद्ध नगर वन विभाग के डिस्ट्रिक्ट फारेस्ट ऑफिसर पीके श्रीवास्तव अपने दलबल के साथ यूपीसीडा के औद्योगिक क्षेत्र में स्थित और 22 वर्षों से बंद पड़ी कंपनी डेवू (Daewoo Motors) के 200 एकड़ के प्रांगण में जांच के लिए पहुंचे । मामला फैक्ट्री प्रांगण में लगे पेड़ों के अवैध कटान पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में कथित पर्यावरणविदो की शिकायत की खबरों पर सु मोटो लेकर किए गए मुकदमे में वन विभाग की कार्यवाही पर एनजीटी के आदेश को लेकर था । 3 फरवरी को हुई सुनवाई में एनजीटी ने डीएफओ को पेड़ों के कटान की वस्तु स्थिति बताने के आदेश दिएI मामले की अगली सुनवाई 13 मई 2025 को होनी है ।


डेवू की जमीन पर हो रहे इस पूरे प्रकरण पर बारीकी से नजर रख रही एनसीआर खबर की टीम को जैसे ही डीएफओ के वहां पहुंचने की जानकारी मिली वह भी इस जांच के लिए पहुंची जहां डीएफओ और उनकी टीम के साथ पेड़ों के कटान की स्थिति जानने पहुंची हुई थी।
आपको बता दें कि वर्तमान में डेवू कंपनी का लीज कैंसल किए जाने के बाद आधिकारिक तौर पर वर्तमान में स्वामित्व यूपीएसआईडीसी के पास है ओर इसको अपने वापस होने का दावा करने वाली शकुंतलम लैंड क्राफ्ट ने आर सिल से लेनदेन के बाद यूपीसीडा द्वारा डेवू की लीज कैंसिल किए जाने को लेकर हाईकोर्ट में मुकदमा किया हुआ है ।
अगस्त 2023 में, ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) ने ई-नीलामी के ज़रिए पूरे फ़ैक्टरी परिसर को बिक्री के लिए रखा। यह एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी इंडिया लिमिटेड (ARCIL) के कहने पर किया गया था, जो ICICI और उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPSIDA) सहित कंपनियों के लिए शेष बकाया वसूलने के लिए देवू मोटर्स की फंसी हुई संपत्तियों का प्रबंधन कर रही थी। पिछले वर्ष की नीलामी में शकुंतलम लैंडक्राफ्ट ने 359 करोड़ रुपये की बोली लगाकर जीत हासिल की थी, लेकिन यूपीएसआईडीए ने परिणाम को चुनौती दी थी। यूपीएसआईडीए के सूरजपुर डिवीजन प्रमुख अनिल शर्मा ने दावा किया कि विजेता बोली पर 10 प्रतिशत प्रीमियम की पेशकश के बावजूद उन्हें नीलामी में भाग लेने से रोक दिया गया। इसके बाद यूपीसीडा द्वारा डेवू की लीज कैंसिल कर दी । कानून विशेषज्ञों के अनुसार शाकुंतलम का दावा कमजोर है और कोर्ट से इसका फैसला यूपीएसआईडीसी के पक्ष में ही देर सवेर हो जाएगा ।
तो इस सबसे अलग विवादों में फंसी इस औद्योगिक भूमि पर जुलाई 2024 में शकुंतलम लैंड क्राफ्ट के संरक्षण में 1000 से ज्यादा पेड़ काटे जाने का विवाद जब अखबारों में छापा तो समीर शर्मा की एप्लीकेशन पर एनजीटी ने सुमोटो लेते हुए इस पर कार्यवाही शुरू कर दी वन विभाग ने 18 जून 2024 को की गई जांच में बताया गया कि इसमें काटे गए 980 पेड़ में मात्र तीन पेड़ नीम के थे और दो यूकेलिप्टस के थे इनके अलावा बाकी सभी पेड़ सुबबुल के थे जिसको विलायती बबूल भी कहा जाता है। वन विभाग ने लकड़ियों से भरे एक ट्रक और ट्रैक्टर ट्राली के साथ वसीम खान नाम के व्यक्ति को भी गिरफ्तार किया । सुबबुल की खेती किसानों द्वारा चारे और ईंधन के लिए की जाती है यह बंजर जमीन पर तेजी से बढ़ने वाला पेड़ कहा जाता है ।

ऐसे में कथित पर्यावरणविदों का दावा था कि 2024 में आर सिल से कथित तोर जमीन खरीदे जाने बाद शकुंतलम लैंड क्राफ्ट द्वारा बिना वन विभाग की अनुमति के 200 एकड़ की जमीन के दो एकड़ के एक हिस्से से पेड़ों को काटने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई । वहीं वन विभाग के भेजे नोटिस के बाद शकुंतलम लैंड क्राफ्ट की ओर से कहा गया कि चूँकि इस औद्योगिक इकाई की बाउंड्री टूटी हुई थी इसलिए लोगों ने आकर स्वयं यह पेड़ काट दिए। यद्यपि बिना एंट्री गेट को पार किया शकुंतलम लैंड क्राफ्ट के दावे की सच्चाई भरोसा करने लायक नहीं थी क्योंकि तब फैक्ट्री में मुख्य मार्ग से घुसे बिना ट्रक या ट्रैक्टर का पर लड़कियां ले जाना संभव नहीं था । अवैध कटाई के लिए शकुंतलम लैंडक्राफ्ट के खिलाफ एच-2 मामला दर्ज किया – जो वन विभाग की प्राथमिकी रिपोर्ट (एफआईआर) के बराबर है – और वहां मौजूद सुपरवाइजर को सख्त चेतावनी दी। इसके बाद वन विभाग ने मुख्य मार्ग पर अपनी सील लगा दी बाद में यूपीसीड़ा ने भी इस पर अपनी सील लगा दी ।
“यह पहली बार है जब हमें वृक्ष संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन के लिए किसी [निजी] परिसर को सील करना पड़ा है।” “यह सिर्फ़ पेड़ों की कटाई के पैमाने के कारण नहीं है। पिछली चेतावनी के बावजूद, कटाई बंद नहीं हुई, तब हमें कार्रवाई करनी पड़ी।”
पीके श्रीवास्तव, गौतमबुद्ध नगर के प्रभागीय वन अधिकारी

मंगलवार को इस फैक्ट्री के सर्वे के दौरान रोचक तथ्य यह निकाल कर आया कि सुबबुल जैसे चारे और ईंधन की लकड़ी के ऊपर हो रहे इतने बड़े बवाल के बीच किसी को यह नहीं पता कि 200 एकड़ में बसी इस फैक्ट्री के मुख्य गेट से लेकर अंदर बने सभी निर्माण और कबाड़ हो चुके करोडो के समान आसपास रहने वाले लोगों ने चोरी कर लिए है । मात्र दो गार्ड्स के सहारे हो रही सुरक्षा की असलियत यह भी निकाल कर आई की फैक्ट्री के अंदर अंडरग्राउंड बिछी बिजली की लाइनों को निकालने के लिए चोरों ने बड़ी-बड़ी नालियां खोद दी हैं। यह शहर में चल रहे एक्टिविज्म की खोखली सच्चाई भी है जहां औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्ट्री के अंदर उगे सुबबूल के पेड़ों को लेकर इतना हंगामा हुआ हैं I वहीं 980 की संख्या की असलियत भी वहां कटे पेड़ों को देखकर सामने आई जहां वन विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि दरअसल जड़ से अगर कोई पेड़ तीन या चार भागों में विभक्त होता है तो उसको अलग-अलग पेड़ में ही गिना जाता है और सुबबूल के पेड़ की खासियत है कि वह जमीन से कई शाखों में निकलता है इस पेड़ की आयु भी लंबी नहीं होती है और यह साल 2 साल में ही सूख भी जाता है ।

ऐसे में स्वामित्व को लेकर कानूनी मसले पर हाथ जला चुकी शकुंतलम लैंडक्राफ्ट पर एनजीटी की आड़ में एक्टिविस्ट और पर्यावरणविदों का खेल इस पूरे विवाद में “तेली का तेल जले और मशालची का दिलजले” वाली कहावत को सिद्ध करता नजर आता है ।
यक्ष प्रश्न यह भी है कि क्या देश में एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है जो पुलिस, वन विभाग जैसी एक्शन लेने वाली एजेंसी के ऊपर हर मामले को कोर्ट तक पहुंचा कर इसमें अपने हित साधने के प्रयास करने लगा है । वस्तुत जो कोर्ट पुलिस या वन विभाग द्वारा किसी पक्ष में एक तरफा कार्यवाही के बाद अंतिम रास्ता होना चाहिए था उसे प्रथम रास्ता क्यों बनाया जा रहा है । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को भी इस बात की चिंता करनी पड़ेगी कि आखिर कुकुरमुत्ता की तरह उगते जा रहे इन कथित पर्यावरणविदों के द्वारा किए जाने वाले छोटे-छोटे मुकदमों के पीछे की पॉलिटिक्स किया है। कहीं ये पर्यावरण के नाम पर उद्योगपतियों को परेशान करने की रणनीति तो नहीं है । गौतम बुध नगर में अर्बन नक्सल को लेकर पहले ही कई तरीके की चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं जिनका मुख्य उद्देश्य मानवता पर्यावरण जैसी कई घटनाओं के पीछे हमेशा माहौल बना कर रखना रहता है ओर क्या इसी सबके चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मीडिया सलाहकार दिलीप मंडल ने ऐसे कथित पर्यावरणविदो और एनजीओ को पर्यावरण आतंकवाद एनजीओ का नाम दिया है ।

इस पूरे प्रकरण पर हुए मुकदमे से संबंधित कुछ ज्वलंत प्रश्न
- क्या 980 पेड़ काटे जाने के मुकदमे में एनजीटी को अभी तक यह नहीं बताया गया है की मात्र तीन पेड़ नीम के हैं और दो यूकेलिप्टस के, बाकी सभी 975 पेड़ सुबबूल के है । सुबबूल चारे और ईंधन के लिए प्रयोग किए जाने वाला पेड़ है जो बंजर जमीन में आराम से उग सकता है।
- अवैध रूप से पेड़ काटे जाने की स्थिति में वन विभाग ऐसे आरोपियों के खिलाफ मुकदमा लिखवाता है जिसके बाद अधिकतम 6 माह की सजा और कुछ जुर्माना हो सकता है। ऐसे में इस पूरे प्रकरण को बड़ा करने वाले कथित पर्यावरणविदो के इस मामले को कोर्ट में ले जाकर सोशल मीडिया ट्रायल की अतिसक्रियता के पीछे के उद्देश्य क्या है ?
- कथित पर्यावरणविदों की अति सक्रियता क्षेत्र में क्या पुलिस और वन विभाग के अधिकारों पर अतिक्रमण नहीं है, अगर है तो एनजीटी की आड़ में इनको बढ़ावा कौन ओर क्यों दे रहा है ?
- औद्योगिक क्षेत्र में सुबबुल पेड़ों के कटान को लेकर वन विभाग को उलझाए रखने के पीछे कहीं किसी अन्य घटना से ध्यान भटकाने की साजिश तो नहीं हैI
- जिन सुबबुलू के पेड़ों को किसान अपनी जोत के आधार पर काट सकता है उनके लिए क्या किसी उद्योगपति को मात्र इसलिए अपराधी बना दिया जाए कि उसने खरीदी हुई जमीन में काम करने के लिए मात्र चारे और इंधन के लिए उपयोग में आने वाले इन पेड़ों को अति उत्साह में बिना अनुमति कटवा दिया ।
- वन विभाग ने भी मौके पर मौजूद ट्रक और ट्राली समेत दोनों ड्राइवर को गिरफ्तार करके कार्रवाई करने के बाद उस दौरान स्वामित्व रख रही शाकुंतलम लैंड क्राफ्ट के खिलाफ कोई बड़ी कार्यवाही क्यों नहीं की है ।
- भूमि के स्वामित्व को लेकर यूपीएसआईडीसी से कोर्ट में मुकदमा लड़ रही शकुंतलम लैंड क्राफ्ट इस पूरी भूमि की सुरक्षा को लेकर किसी भी तरीके का प्रयास करती क्यों नहीं दिख रही । अगर उसको अपने पक्ष में फैसले की कोई उम्मीद है तो वह फैक्ट्री के अंदर के सामान की चोरी रोकने के कड़े कदम क्यों नहीं उठा रही है ।
- और अंत में शकुंतलम लैंड क्राफ्ट आज तक पेड़ों के कटान को लेकर पुलिस, वन विभाग, मीडिया और एनजीटी के समक्ष कोई सही बात क्यों नहीं रख पाई है ।