आशु भटनागर। 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से चर्चा में आई अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का पतन तब शुरू हुआ जब उसने भ्रष्टाचार मिटाने, शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा जैसी राजनीति के स्थान पर शराब की नीति को लागू करने में अपने हाथ जला लिए। ईमानदारी सुचिता और नैतिकता के जिस आवरण को पहनकर अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी दिल्ली की सत्ता में आई थी। सरकार बनने के बाद उसने उन सबको दरकिनार करके शराब के खेल में इस तरीके से खुद को आत्मसात किया कि लोग कटाक्ष करने लगे कि शिक्षा मंत्री दिल्ली में शराब बेचने लगे है । नेताओं समेत पार्टी की साख पर शराब बेचने का ठप्पा लगा तो आम आदमी पार्टी की अजेय समझे वाली जाने वाली राजनीति का पतन शुरू हो गया और परिणाम चुनाव में करारी हार से देखने को मिला ।
ऐसा ही कुछ अब नोएडा में भी होने लगा है। एनसीआर खबर को मिली जानकारी के अनुसार नोएडा में ई लॉटरी के जरिए आवंटित हुए ठेकों में तमाम लोगों ने इस बार पार्टिसिपेट किया और उत्तर प्रदेश सरकार की सिंडिकेट तोड़ने की पॉलिसी के चलते शराब के ठेकों में कई बड़ी कंपनियों ने पार्टिसिपेट भी किया। उत्तर प्रदेश सरकार की नई पालिसी से फायदा हुआ कि पहली बार नए व्यापारियों के शराब के ठेकों में कूदने से शराब के ठेकों का स्तर उठता दिखा। पारंपरिक ठेकों की जगह शराब के ठेकों में अब शेल्फ और बियर की बोतल को रखने के लिए फ्रिज नजर आ रहे हैं कई जगह तो बाकायदा कंपोजिट शॉप और प्रीमियम शॉप का अंतर मिटता दिख रहा है ।
ऐसे में जहां यूपी सरकार की पॉलिसी को सराहा जा रहा है वही नोएडा के एक समाजवादी पार्टी के नेता द्वारा ठेका खोले जाने से अब राजनीति में शराब और नैतिकता की चर्चा शुरू हो गई। जानकारों की माने तो दावा किया जा रहा है कि इस नेता ने पहले ही अवैध प्लाटिंग में अपना नाम कमाया हुआ है अब शराब के ठेके के साथ राजनीति के दूसरे चरण में की तैयारी में लग गए है । रोचक तथ्य है कि शराब के ठेके को खोलने की खुशी में नेताजी नवरात्रों में माता के नाम से भंडारा करने से भी नहीं चुके है । माता के भंडारे के कारण समाजवादी पार्टी के PDA की राजनीति को लेकर भी चटकारे लिए जा रहे है । चर्चा तो ये भी है कि इन्हीं पैसों के बलबूते यह नेता 27 के चुनाव में नोएडा विधानसभा से समाजवादी पार्टी से टिकट लेने की तैयारी कर रहे है ।
ऐसे में लोगों की चर्चा के बीच अब प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि नोएडा जैसे शहर में क्या राजनीति के तौर पर ऐसे चेहरे दिखाई देने जाने चाहिए जो शराब के कामों में लगे हो या फिर नेताओं के शराब में के व्यापार में कूदने को नैतिक तौर पर सही माना जा सकता है ।
नोएडा जैसे शहर में नेताओं के शराब के ठेकों में शामिल होने ओर नैतिकता यह प्रश्न और भी बड़ा हो जाता है जब भारतीय जनता पार्टी की ओर से डॉक्टर महेश शर्मा और पंकज सिंह जैसे साफ सुथरी छवि के नेता नोएडा लोगों की पहली पसंद रहे हैं तो उनके सामने चुनाव लड़ने के लिए उनसे बेहतर सामाजिक, राजनैतिक और नैतिक व्यक्ति के चुनाव में खड़े होने की अपेक्षा जनता विपक्ष से करती है ।
राजनीति में अपराध, माफिया का गठजोड़ कोई नया नहीं है । गौतम बुद्ध नगर में भी राजनीति में छोटे नेताओं या लोकल स्तर भले ही ऐसे लोगों का बोलबाला रहा है किंतु ऐसे लोग अभी तक चुनाव लड़ने में नाकाम रहे हैं। भाजपा ने हमेशा टिकट देते समय भूमाफियाओं खनन माफिया या शराब माफियाओं से दूरी बनाई है। बदलती परिस्थिति में स्वयं समाजवादी पार्टी भी लोकसभा चुनाव में टिकट देते समय एक डॉक्टर की छवि को ध्यान में रखकर प्रत्याशी का चयन कर चुकी है।
दिल्ली के ही उदाहरण से समझे तो जनता का जवाब ऐसे मामलों पर हमेशा ना रहा है देश का एक बड़ा हिस्सा आज भी शराब के लीगल व्यापार को भी अनैतिक मानता है। ऐसे में अगर किसी भी राजनीतिक दल से चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले लोग ऐसे कामों में लिप्त होते हैं तो उनसे राजनीति, समाज सेवा या फिर समाज को दिशा देने की बातें बेमानी लगती है और उनके जरिए किसी शहर के विकास की परिकल्पना करना असंभव हो सकती है।
तो फिर बात वहीं पर घूम के आती है कि क्या शराब के व्यापार में राजनेताओं की एंट्री नैतिक तौर पर सही है या फिर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की करारी हार के बावजूद भी कुछ समाजवादी नेता इस सब को सही मान रहे हैं। सही गलत जो भी हो अब इस प्रश्न का उत्तर नोएडा की जनता और एनसीआर खबर के पाठको के विवेक पर ही छोड़ा जा सकता है ।