आशु भटनागर I कहते हैं राजा को प्रजा से कर इस तरीके से लेना चाहिए जैसे सूरज, समुद्र में से जल की वाष्प सोखता है । लेकिन क्या उत्तर प्रदेश के शो विंडो बने प्राधिकरणों में बैठे अधिकारी आमजन के लिए नीति बनाते हुए इन बातों का ध्यान रखते हैं? शायद नहीं ।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने धनी ओर उच्च मध्यम वर्ग द्वारा अपने शौक के लिए पाले जाने पालतू जानवरों (कुत्ता, बिल्ली) के मुफ्त पंजीकरण को अनिवार्य कर दिया है । शहर में पालतू जानवरों के पंजीकरण की मांग काफी समय से की जा रही थी जिसे उनके द्वारा आसपास के निवासियों को नुकसान पहुंचाने की दिशा में उनके रेबीज लगने और अन्य जानकारियां मिल सके।
किंतु बहुत संघर्ष के बाद आई कुत्ता पालिसी में यह एक दुखद तथ्य ही सामने आया है कि धनी लोगों की शौक पर प्राधिकरण शुल्क लेने से बचता दिखाई दे रहा है । लोगों का आरोप है की 5 से 50000 में वाले खरीदने वाले कुत्ते और बिल्लियों के रजिस्ट्रेशन के लिए प्राधिकरण ने अपनी आय को ठोकर क्यों मार दी है, आखिर क्या कारण है कि प्राधिकरण लोगो के शौक पर कोई शुल्क नहीं ले रहा है ?
लोगों के प्रश्न है कि क्या महंगे सेक्टर ओर सोसाइटियों में रहने वाले ये व्यक्ति प्रति कुत्ता प्रतिवर्ष ₹1000 भी शुल्क नहीं दे सकता जबकि आजकल इतने रुपए में वो एक शाम पिज़्ज़ा खाने पर निकाल देता है । फिर ऐसी क्या मजबूरी है जो ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण कुत्तों के मुफ्त रजिस्ट्रेशन पर इतना रिजिड है? क्या प्राधिकरण को कुत्तों के ऊपर वैक्सीनेशन से लेकर रखरखाव तक होने वाले खर्चों के लिए पैसा नहीं चाहिए या वह पैसा प्राधिकरण आम टैक्स पेयर के पैसे से खर्च करने में अपनी शान समझता है ताकि इन धनी लोगों से कुछ भी पैसा ना लिया जा सके।
धनी और निर्धनों के बीच प्राधिकरणों के अधिकारियों की सोच कितनी विपरीत है यह आप इस बात से समझ सकते हैं कि जहां इन तीनों प्राधिकरणों के आधिकारिक कुत्तों के पंजीकरण पर मुफ्त पंजीकरण की पॉलिसी का समर्थन करते दिखाई देते हैं वहीं इन महंगे पालतू कुत्तों से भी बदतर जिंदगी जी रहे गरीब ठेले वालों से वेंडिंग जोन के नाम पर न सिर्फ पैसे चार्ज किए जाते हैं बल्कि पंजीकरण शुल्क के अलावा अलग-अलग तरीके की अवैध वसूली भी इन पर चलती है।
ग्रेटर नोएडा में प्राधिकरण के अधिकारियों की ही छत्रछाया में लगभग 75 लाख रुपए महीने की अवैध वसूली रेडी पटरी ठेली वालों से वर्तमान में की जा रही है। धनी और निर्धन लोगों पर प्राधिकरण के अधिकारियों के ऐसे रवैया से शहर में जहां गरीब और गरीब होता है वहीं अमीरों की अय्याशियां मुफ्त में पैर पसारती हैं। निर्धनों के बच्चो के लिए पार्क ना बना पाने प्राधिकरण जिले में कुत्ता पार्क बनवाते है उनके डॉग शो आयोजित होते है जहाँ प्राधिकरण में मुफ्त में होने वाले ये पंजीकृत कुत्ते ऐसे शो में महंगे पंजीकरण के बाद हिस्सा लेते है I दरअसल धनिकों के ऐसी सुविधायो पर ध्यान ही शहरो में स्लम पैदा करता है और अपराध को भी जनम देता है I
वस्तुत शहर में कुत्ता पालन रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर से आरम्भ होते हुए इन दिनों अधिकारी, धनी लोगो ओर इंस्टाग्राम पर खुद को निब्बा निब्बी बताने वाले सो कॉल्ड पशु प्रेमियों के बीच फैशन बन चुका है। पालतू और आवारा कुत्तों के कारण शहर के सोसाइटी और सेक्टर में होने वाली दुर्घटनाएं और उसके कारण झगड़ों के कारण जहां एक और पुलिस परेशान है वही दुर्भाग्य देखिए कि 2BHK में रहने वाले ऐसे तमाम लोग एक नहीं चार-चार कुत्ते पलते हैं और लोगों के लिए समस्या खड़े करते हैं किंतु प्राधिकरण ने पंजीकरण को फ्री करके जहां एक और अमीरों की अय्याशियों को प्रश्रय दे दिया है। वहीं दूसरी ओर गरीबों से 75 लाख रुपए महीने की अवैध उगाई प्राधिकरण की अधिकारियों के नाक के नीचे उनकी शहर पर हो रही है और उस पर कोई पॉलिसी नहीं आई है ।
ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी धानी और निर्धन के बीच अपनी पॉलिसी पर फिर से ध्यान देंगे क्या कुत्तों की अय्याशियों के नाम पर पंजीकरण फ्री करके ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी इस समाज को कोई विशेष संदेश देना चाह रहे हैं क्या शहर में स्टेटस सिंबल बना कुत्ता पालना अधिकारियों के लिए मुफ्त पंजीकरण की आवश्यकता है ? अधिकारियों को यह क्यों नहीं बताना चाहिए कि शहर में पालतू और आवारा कुत्तों के लिए वैक्सीनेशन पर किए जाने वाले खर्च को अपराधीकरण कब तक टैक्स पेयर के पैसे से वसूलेगा आखिर उसके लिए इन पालतू कुत्तों के मालिकों से ही शुल्क क्यों ना वसूला जाए। सवाल यह भी है कि कुत्तों के लिए पंजीकरण माफ करने वाले अधिकारी आखिर शहर में रेडी पटरी वालों से 7500000 मासिक की वसूली कब खत्म करेंगे ? कब अधिकारियों को दंडित किया जाएगा जिनकी छत्रछाया में यह सब किया जा रहा है । कब धनी और निर्धन दोनों को प्राधिकरण एक समान भावना से देखना आरंभ करेगा ?