NCRKhabar Exclusiveउत्तर प्रदेशराजनीतिराज्य

सत्यम शिवम सुंदरम : उपचुनावों के परिणामों में दलित वोट का भाजपा, आसपा के प्रति बढ़ता मोह मायावती के अस्तित्व के लिए चुनौती

आशु भटनागर। । उत्तर प्रदेश में 9 सीटों पर उपचुनाव के परिणाम ने जहां एक और भारतीय जनता पार्टी को वापस खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा दिया है वहीं समाजवादी पार्टी के पीडीए की भी हवा निकाल दी है ।  किंतु इस सब के बीच चर्चा बहुत समय बाद उपचुनाव में भाग लेने वाली बहुजन समाज पार्टी और उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती की भी हो रही है ।  प्रश्न यह है कि क्या दलित और अनुसूचित जाति के प्रभाव वाली सीटों पर मायावती बिल्कुल शून्य पर आ गई है या फिर इन सीटों पर दलित वोटो का में असमंजस की स्थिति में मायावती की राजनीति को हाशिए पर ला दिया है । प्रश्न यह भी है कि क्या दलित वोटो की हिस्सेदारी को लेकर अब मायावती और असपा के चंद्रशेखर आजाद रावण के बीच संघर्ष बड़ा हो गया है ।

दलित बाहुल्य वाली सीटों का गणित देखें तो अंबेडकर नगर की कटहरी, मीरापुर फूलपुर, कुंदरकी जैसे सीटों पर दलितों के बीच मायावती और चंद्रशेखर रावण के बीच का अन्तर्द्वन्द सामने आ रहा है। वही योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे के नारे का प्रभाव दलितों पर भी पूर्ण रूप से पड़ता दिखा है जिसके कारण मीरपुर की सीट रालोद को चली गई। कुंदरकी, फूलपुर और कटहरी की सीट भाजपा को मिली । इन सभी सीटों पर दलितों का समाजवादी पार्टी के साथ कोई  लगाव या झुकाव नहीं दिखा अगर वाकई अखिलेश यादव का पीडीए का फार्मूला काम कर रहा होता तो इन सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी की जीत संभव हो जाती ।

मात्र 6 माह में दलित वोटो का समाजवादी पार्टी कांग्रेस के गठबंधन से छिटक कर वापस भाजपा और बसपा आसपा की तरफ मुड़ना यह बताता है कि कांग्रेस के प्रभाव से जो दलित वोट सपा को मिल गया था उसने घर वापसी की राह पकड़ ली है ।

आंकड़े बता रहे हैं कि बटेंगे तो कटेंगे की चलते दलितों का 50% झुकाव भाजपा की तरफ चला गया जबकि बाकी वोटो में कहीं कम और कहीं ज्यादा मायावती और चंद्रशेखर के पास दिखा । चुनाव के बाद आ रहे आंकड़ों को अगर देखे तो मीरपुर में लगभग सवा लाख मुस्लिम वोट बताई जा रहे हैं यहां पर 50000 दलित वोट अगर समाजवादी पार्टी के पास जाते हैं परिणाम बदल जाता किंतु भाजपा समर्थित रालोद के पक्ष में दलित, जाट, पिछड़ा और सवर्ण के कांबिनेशन ने रालोद की सीट पक्की कर दी। हैरत की बात यह है कि पश्चिम की मीरापुर सीट पर  आजाद समाज पार्टी को बसपा के मुकाबले 22661 वोट  ओर कुंदरकी में तीसरा स्थान देकर दलितों ने मायावती को यह बता दिया कि कम से कम पश्चिम यूपी के दलितों की नई उम्मीदें चंद्रशेखर रावण है ।

इसी तरह अंबेडकर नगर की कटहैरी सीट पर कल चार लाख मतदाताओं में का 25% यानी एक लाख मतदाता दलित बताया जा रहा था यहां पर लगभग 40000 मुस्लिम ओर 22000 यादव वोटर था यदि दलित, यादव और मुस्लिम  जोड़ का PDA फार्मूला चलता तो समाजवादी पार्टी जीत जाती किंतु यहां भी समाजवादी पार्टी मात्र 56000 वोट ही पा सकी । जिससे स्पष्ट है कि यहां पर दलितों ने खुलकर उनका उत्पीड़न करने वाले यादव मुसलमान की माने जाने वाले समाजवादी पार्टी के खिलाफ भाजपा और बसपा को वोट किया । हैरानी की बात यह है कि जहां दलितों का वोट भारतीय जनता पार्टी को गया वहीं बसपा को भी 41000 वोट दे कर मायावती के साथ भी अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखें । इसी तरह फूलपुर के परिणाम में भी 75000 मत दलित मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी के खिलाफ वोट करते हुए भाजपा को वोट दिया और बहुजन समाज पार्टी को भी 20000 वोट दिया जो लगातार अखिलेश यादव के पीडीए के फार्मूले के खिलाफ दलितों की प्रतिबद्धता दिख रहा है ।

इन सभी आंकड़ों में मायावती भले ही दलितों का कुछ वोट ले पा रही है किंतु मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे नारे के तहत दलितों का भाजपा के प्रति बढ़ता मुंह मायावती की राजनीति के लिए खतरे का परिचायक है । और इसे उत्तर प्रदेश में उनकी दलित राजनीति के पतन का आरंभ भी कहा जा सकता है ।

यद्यपि यह कहना अभी जल्दबाजी भी होगा क्योंकि राजनीति में बड़े चुनाव में अक्सर परिणाम परिस्थिति और समय के अनुसार बदल जाते हैं किंतु फिर भी 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले मायावती को यह समझना होगा कि अब उनके लिए दलित वोटो की ठेकेदारी के आधार पर राजनीति करना मुश्किल हो रहा है। कदाचित दलित भी सक्रिय राजनीति में अपनी सामाजिक हिस्सेदारी चाहता है ।  उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के स्थानीय स्तरों पर जिस तरीके से निष्क्रियता बनी रहती है उसे काम करने वाला दलित नेता अब भाजपा को मायावती का बेहतर विकल्प मान रहा है ।

ऐसे में मायावती को भविष्य की दलित राजनीति को सुरक्षित करने के लिए यह आवश्यक है कि वह बसपा के संगठनात्मक वोटर को पुर्नजागृत करें क्योंकि बहुजन समाज पार्टी के विकल्प के तौर पर खड़ी हुई आजाद समाज पार्टी लगातार दलितों के बीच अपना प्रभाव बना रही है और अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब मायावती दलितों की पूर्व नेत्री कहे जाने लगेगी ।

दिल्ली नोएडा, गाज़ियाबाद, ग्रेटर नोएडा समेत देश-दुनिया, राजनीति, खेल, मनोरंजन, धर्म, लाइफस्टाइल से जुड़ी हर खबर सबसे पहले पाने के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें या एनसीआरखबर वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें।
Show More

NCRKhabar Mobile Desk

एनसीआर खबर दिल्ली एनसीआर का प्रतिष्ठित हिंदी समाचार वेब साइट है। एनसीआर खबर में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय,सुझाव और ख़बरें हमें mynews.ncrkhabar@gmail.com पर भेज सकते हैं या 09654531723 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I अपना सूक्ष्म सहयोग आप हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : 9654531723@paytm के जरिये दे सकते है

Related Articles

Back to top button