राजेश बैरागी । पुलिस कहीं भी बिक्री न होने की बात कहती रही और दीपावली धुआं धुआं और पटाखा पटाखा होती रही। कमिश्नरेट पुलिस व्यवस्था में अच्छी बात यह है कि प्रशासन की सिरदर्दी बिल्कुल भी नहीं रही है।देर रात तक रह रहकर भारी से बहुत भारी तक पटाखे चलते रहे। हवा चल रही थी इसलिए पटाखों का शोर तो सुनाई देता रहा परंतु धुआं ठहरा नहीं। इतने लोगों तक पटाखे बिना सार्वजनिक बिक्री के कैसे पहुंचे होंगे? कमिश्नरेट पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस बार पटाखों का ऑनलाइन बाजार बहुत गर्म है।
दादरी (गौतमबुद्धनगर) के बाजार में दीपावली का सामान बेच रहे एक दुकानदार ने कान में फुसफुसा कर कहा,-पटाखे भी लेने हो तो बताना।’ हर्ष और उल्लास का प्रदर्शन क्या पटाखे चलाकर ही हो सकता है? दरअसल पटाखा हमारी दबी कुचली मनोभावनाओं का विस्फोटक प्रदर्शन है। यह पड़ोसी से प्रतिस्पर्धा में पीछे न रहने का प्रमाण भी बन सकता है और मैत्री प्रतियोगिता का हिस्सा भी बन सकता है। हालांकि लंबी समयावधि तक फटने वाले पटाखों का आविष्कार भी हो चुका है परंतु पटाखे का असल आनंद क्षणों में फट जाने से ही आता है। इससे वायुमंडल कितना घायल होता है?
गौतमबुद्धनगर के प्रदूषण नियंत्रण विभाग के एक अधिकारी का मानना है कि हाईराइज सोसायटियों और औद्योगिक इकाइयों में चलने वाले विद्युत जेनरेटर,मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएं और खेतों में जलने वाली पराली के मुकाबले एक दिन चलाए जाने वाले पटाखे पर्यावरण को बहुत मामूली नुकसान पहुंचाते हैं। फिर भी पटाखों को लेकर सबसे ज्यादा हो हल्ला मचता है। क्या यह किसी भी स्तर पर पर्यावरण को बचाने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है? पुलिस प्रशासन इसी टैग लाइन पर काम करता है और समाज अपनी मान्यताओं तथा भावनाओं की लीक पर चलता है। दोनों के संघर्ष में ऑनलाइन बाजार बीच की भूमिका निभाता है और एक मामूली सा दुकानदार भी कान में फुसफुसा कर कह देता है कि पाबंदी के बावजूद वह भी समाज की भावनाओं के साथ ही है।