यमुना प्राधिकरण पर कल से किसान आंदोलन के बीच आया बड़ा निर्णय : सुप्रीम कोर्ट ने कहा,  यमुना एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण सही, विकास को पटरी से नहीं उतारा जा सकता

आशु भटनागर
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आशु भटनागर । 3 दिन से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर चल रहे किसान आंदोलन और बृहस्पतिवार से यमुना प्राधिकरण पर होने जा रहे अगले पड़ाव के बीच सुप्रीम कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिकरण कोर्ट सही ठहराते हुए सभी 140 याचिकाओं को खारिज कर दिया है ।

सुप्रीम कोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के यमुना एक्सप्रेसवे और उसके आसपास के इलाके में एकीकृत विकास के लिए जमीन अधिग्रहण की वैधता को बकररार रखा है। इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के दो अलग-अलग फैसलों के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद मंगलवार को फैसला सुनाया। इस मामले में जमीन मालिक, यमुना प्राधिकरण ने अपील दाखिल की थी।

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जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने अपीलकर्ताओं के दो समूहों द्वारा दायर दीवानी अपीलों पर सुनवाई की। अपीलकर्ताओं (भूमि मालिकों) के एक समूह ने कमल शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2010) में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय की सत्यता पर सवाल उठाया, जिसमें परियोजना के महत्व का हवाला देते हुए अत्यावश्यकता प्रावधानों के तहत अधिग्रहण बरकरार रखा गया। जबकि, अपीलकर्ताओं के अन्य समूह (YEIDA) ने उसी हाईकोर्ट के अन्य खंडपीठ के श्योराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2010) में पारित निर्णय को चुनौती दी, जिसमें हाईकोर्ट ने अधिग्रहण को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि अत्यावश्यकता खंड का अनुचित रूप से प्रयोग किया गया।

चूंकि यमुना एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से आगरा तक लाखों यात्रियों को पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण हृदय रेखा है, इसलिए इस अधिग्रहण पर सवाल उठाना अनुचित होगा कि यह यमुना एक्सप्रेसवे से सटी भूमि के एकीकृत विकास के लिए नहीं था।

“इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यमुना एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से आगरा तक लाखों यात्रियों को पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण हृदय रेखा है। एक्सप्रेसवे प्रतिष्ठित आगामी जेवर हवाई अड्डे को आस-पास के क्षेत्रों से भी जोड़ता है। यह मान लेना कि यमुना एक्सप्रेसवे एक साधारण राजमार्ग है, जिसमें वाणिज्यिक, आवासीय और अन्य ऐसी गतिविधियों के लिए आस-पास की भूमि के एक साथ विकास की कोई गुंजाइश नहीं है, अकल्पनीय होगा। इतनी बड़ी और विशाल परियोजना के लिए निश्चित रूप से आस-पास के क्षेत्रों की भागीदारी की आवश्यकता होगी, जिससे उत्तर प्रदेश राज्य का समग्र विकास होगा।”

सुप्रीम कोर्ट

क्या है यह पूरा मामला

यह मामला 2009 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 17(1) और 17(4) के तहत शुरू किए गए अधिग्रहण से संबंधित था। भूमि मालिकों ने आपातकालीन प्रावधानों के दुरुपयोग का हवाला देते हुए अधिग्रहण का विरोध किया। याचिकाकर्ता का दावा था कि उनकी भूमि आबादी की है। बिना जांच के अधिग्रहण के लिए उपयुक्त नहीं थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संबंधित मामलों में अलग-अलग फैसले सुनाए थे। कमल शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में अदालत ने अधिग्रहण को वैध ठहराते हुए मुआवजे में वृद्धि की थी, जबकि श्योराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में एक अन्य पीठ ने अधिग्रहण को खारिज कर दिया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था।

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आशु भटनागर बीते 15 वर्षो से राजनतिक विश्लेषक के तोर पर सक्रिय हैं साथ ही दिल्ली एनसीआर की स्थानीय राजनीति को कवर करते रहे है I वर्तमान मे एनसीआर खबर के संपादक है I उनको आप एनसीआर खबर के prime time पर भी चर्चा मे सुन सकते है I Twitter : https://twitter.com/ashubhatnaagar हम आपके भरोसे ही स्वतंत्र ओर निर्भीक ओर दबाबमुक्त पत्रकारिता करते है I इसको जारी रखने के लिए हमे आपका सहयोग ज़रूरी है I एनसीआर खबर पर समाचार और विज्ञापन के लिए हमे संपर्क करे । हमारे लेख/समाचार ऐसे ही सीधे आपके व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए वार्षिक मूल्य(रु999) हमे 9654531723 पर PayTM/ GogglePay /PhonePe या फिर UPI : ashu.319@oksbi के जरिये देकर उसकी डिटेल हमे व्हाट्सएप अवश्य करे